मनहरण घनाक्षरी छन्द : डीपी सिंह

मनहरण घनाक्षरी छन्द

गंगा-जमुना भी देखी, और भाई-चारा देखा
सदियों से भाइयों का चारा बनते रहे

कैराना कश्मीर छोड़ा, लाखों ने शरीर छोड़ा
बचे जो वो बदलते, अपने पते रहे

सियासत होती रही, मानवता रोती रही
जलती चिताओं पर वो, हाथ सेंकते रहे

हम भी तो कायरों-से, बँध कर दायरों से
संविधान की दुहाई, देते देखते रहे

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