जब पढ़ाई और काम ऑनलाइन हो सकता है तो चुनाव प्रचार क्यों नहीं?

होना तो यही चाहिए था कि निर्वाचन आयोग कोरोना की गंभीर स्थितियों को देखते हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को 6 महीने या सालभर बाद करवाने का निर्णय लेती और अगर इसमें कोई संवैधानिक बाधाएं आ रही थी तो केंद्र सरकार से कहकर इस विश्वव्यापी आपात स्थिति में इस पर संसद द्वारा अध्यादेश लाया जाना चाहिए था।

पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के चलते सभी पार्टियों ने अपने समर्थकों को इकट्ठा किया और कोरोना गाइडलाइन की जमकर धज्जियां उड़ाई और बंगाल में तो यह अभी भी जारी है अतः बाध्य हो कर कलकत्ता उच्च न्यायालय मंगलवार को प्रशासन को सभी राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान स्वास्थ संबंधी सभी दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करने और करवाने का आदेश देना पड़ा।

मुख्य न्यायाधीश टीबीएन राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने इस संबंध में दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कई आदेश दिया। पीठ ने कहा कि हम एक असाधारण स्थिति से गुजर रहे हैं और इसके लिए असाधारण उपायों की जरूरत है। कारण कोविड-19 के चलते पूरे विश्व में आज आपात स्थिति चल रही है और भारत में भी यह स्थिति पिछले साल के मुकाबले ज्यादा ही जोर पकड़ रहा है।

हाँ यह जरूर है कि लोगों में कोरोना का भय काफी कम हो गया है और यही वजह है कि लोग बेखौफ होकर बिना किसी सुरक्षा नियमों का पालन करते हुए सार्वजनिक जगह पर भीड़ इकट्ठा कर रहे हैं। आने वाले महीनों में शादियों की पार्टी की तैयारियां भी काफी जोर-शोर से हो रही है। कुंभ का आयोजन भी धड़ल्ले से चल रहा है।

रमजान के महीने में भी भीड़ बढ़ेगी, यानी कुल मिलाकर देखा जाए तो देश में ना हीं आम जनता और ना ही केंद्र और राज्य सरकारें अब कोरोनावायरस पर गंभीर दिख रही है और इस इसी का खामियाजा आने वाले कुछ महीनों में पूरे देश को उठाना पड़ेगा।

आज जब देश में कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो चुकी है, देश 2020 के मुकाबले 2021 में कुएँ से निकलकर खाई में गिर चुकी है और इसके लिए देश की केंद्र सरकार समेत सभी राज्य सरकारें और ज्यादातर जनता खुद भी जिम्मेदार है।
इस गैर जिम्मेदाराना हरकतों के लिए देश का सत्ता पक्ष और विपक्ष तथा ज्यादातर गैरजिम्मेदार नागरिक जिम्मेदार हैं।

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