विश्व सभ्यता को देशभक्ति का महान संदेश दिया है, महारानी लक्ष्मीबाई ने : प्रो. शर्मा

  • अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में हुआ भारत की वीरांगनाएँ : इतिहास एवं संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर मंथन

डॉ. प्रभु चौधरी, उज्जैन। सृजनधर्मियों की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी भारत की वीरांगनाएँ : इतिहास एवं संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। आयोजन के विशिष्ट अतिथि प्रवासी साहित्यकार सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, साहित्यकार डॉ. बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई, साहित्यकार श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, डॉ. सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉक्टर संगीता इंगले, प्रतिभा मगरे, पुणे, डॉ. भरत शेणकर, अहमदनगर एवं राष्ट्रीय महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे।

अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। संगोष्ठी का सूत्र संयोजन डॉ. रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। मुख्य अतिथि साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई ने स्त्रियों के आत्म स्वाभिमान की रक्षा के लिए अद्वितीय प्रयास किया, जिससे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। प्रत्येक भारतवासी को देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले वीरों के स्मृति स्थलों पर जाकर मत्था टेकने जाना चाहिए। लक्ष्मीबाई को याद करना देश और नारी की अस्मिता के साथ जुड़ना है। वे स्त्रियों को देश की आजादी के साथ पारस्परिक एकता का संदेश देकर गई हैं।

विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्याख्यान देते हुए कहा कि भारत की स्वतंत्रता, स्वदेश के प्रति अनुराग और स्वाभिमान को जगाने के लिए अनेक वीरांगनाओं ने बलिपथ को चुना था, उनमें महारानी लक्ष्मीबाई की शहादत अद्वितीय है। लक्ष्मीबाई ने संपूर्ण विश्व सभ्यता को देशभक्ति की सर्वोपरिता का महान संदेश दिया है। उन्होंने भारतवासियों की सुप्त चेतना को जाग्रत करने का काम किया था। देश की आजादी की पुकार उनके अंतर्मन की आवाज थी। उन्होंने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी, किंतु उनके द्वारा जाग्रत की गई चिंगारी बुझी नहीं।

वह नए दौर में राष्ट्र भक्तों के हाथों में ज्वाला बन कर भड़की। उन्होंने वीर शिवाजी की शौर्य गाथाओं से प्रेरणा ली थी और नए दौर में अपने महान कार्यों से सिद्ध कर दिखाया। अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करते हुए उन्होंने घोड़े की रस्सी अपने दाँतों से दबाई हुई थीं। वे रणचण्डी के रूप में दोनों हाथों से तलवार चलाते हुए एक साथ दोनों तरफ वार कर रही थीं। उनके अपूर्व शौर्य और वीरता की गाथा को सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविता में बहुत मार्मिक ढंग से उतारा है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि भारत की आजादी का इतिहास महान वीरांगनाओं के बिना अधूरा है। उन्होंने रूढ़ पुरुषवादी धारणाओं को ध्वस्त किया। देश के लिए प्राणार्पण करने वाली महारानी लक्ष्मीबाई द्वारा गठित सैनिक दल में स्त्रियां बड़ी संख्या में थीं, जिसे उन्होंने दुर्गा दल नाम दिया था। उन्होंने अंग्रेजों को अपनी दृढ़ता और विद्रोही चेतना का लोहा मनवाया।

विशिष्ट अतिथि श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ऑस्लो, नॉर्वे ने कहा कि लक्ष्मीबाई के चरित्र को सुनकर हृदय में जोश उत्पन्न हो जाता है। उन्होंने जो मार्ग दिखाया है, आज उसके अनुरूप चलने की आवश्यकता है। स्त्रियों को सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में अवसर मिलने चाहिए। वे राष्ट्रीय चेतना जगाकर गई हैं। उन्हें सदैव याद किया जाएगा।

डॉ. बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने कहा कि लक्ष्मीबाई भारतीय वसुंधरा को गौरव प्रदान करने वाली महान वीरांगना थी। वे अपने महान उद्देश्य के प्रति सचेत, निष्ठावान और कर्तव्यपरायण रहीं। उनका पराक्रम सदैव अविस्मरणीय रहेगा। डॉ. सुनीता मंडल, कोलकाता ने कहा कि वीरांगनाओं को याद कर अतीत की प्राणधारा पुनर्जीवित हो जाती है। लक्ष्मीबाई के कार्यों को देश के जन-जन के हृदय में उतारने की आवश्यकता है, तभी हमारा राष्ट्र सुरक्षित रह सकेगा।

राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई ने अपूर्व पराक्रम का परिचय दिया था। उनकी परंपरा इतिहास के पृष्ठों में ही समाप्त नहीं हुई। वे आज भी राष्ट्रप्रेम का प्रतीक बनकर हमारे मध्य जीवित हैं।

डॉ. प्रतिभा मगर, पुणे ने कहा कि वीरांगनाओं के मध्य जीजामाता या जिजाऊ का अविस्मरणीय योगदान रहा है। वे बालपन से ही शूरवीर और कुशाग्र बुद्धिमती थी। ममता और न्याय की वे साक्षात देवी थी। उन्होंने शिवाजी जैसे तेजस्वी पुत्र को संस्कार देकर भारत भूमि के लिए एक नए युग का सूत्रपात किया।

डॉ. सविता इंगले ने कहा कि भारत भूमि ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मर मिटने वाले अनेक अमर वीरों को जन्म दिया है। लक्ष्मीबाई ने कोमल हृदय की मनु से शौर्यवान महारानी तक लंबी यात्रा तय की। उन्होंने महिलाओं के लिए व्यायामशाला बनाई थी, जहां युद्ध कौशल सिखाया जाता था। वे भारत की सभ्यता और संस्कृति के लिए समर्पित थीं। लक्ष्मीबाई महिला सशक्तीकरण का श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

डॉ. भरत शेणकर, अहमदनगर ने कहा कि एक वीरांगना के रूप में लक्ष्मीबाई का योगदान सर्वोपरि रहा है। वे अंग्रेजों के विरुद्ध निरंतर संघर्ष करती रहीं। वे शौर्य की पराकाष्ठा थी। उनकी राष्ट्रभक्ति को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। आयोजन में अल्पा मेहता, भुवनेश्वरी जायसवाल, कृष्णा श्रीवास्तव ने महारानी लक्ष्मीबाई के पराक्रम पर केंद्रित कविताएं सुनाई।

प्रारंभ में संगोष्ठी की प्रस्तावना संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। सरस्वती वंदना पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। स्वागत भाषण एवं अतिथि परिचय डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तुत किया। आयोजन में डॉ. विमल चंद्र जैन, इंदौर, डॉ. रीना सुरड़कर, डॉ. सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉ. सुषमा कोंडे, पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, प्रतिभा मगर, पुणे, भुवनेश्वरी जायसवाल, श्रीमती गरिमा गर्ग, पंचकूला, हरियाणा, डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद आदि सहित अनेक साहित्यकार, शिक्षाविद, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।
संगोष्ठी का संचालन डॉ. रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने किया।

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