महाराणा प्रताप जयंती विशेष…

“गिरा जहाँ पर खून वहाँ का पत्थर-पत्थर जिंदा है!
जिस्म नहीं है मगर नाम का अक्षर-अक्षर जिंदा है!
जीवन में ये अमर कहानी अक्षर-अक्षर गढ़ लेना!
शौर्य कभी सो जाए तो राणा-प्रताप को पढ़ लेना!”

आशा विनय सिंह बैस, रायबरेली। मेवाड़ राजपरिवार अपनी वीरता और गौरव के लिए सदियों से जाना जाता रहा है। राणा हम्मीर सिंह, राणा कुंभा, राणा सांगा जैसे वीर और योग्य शासकों ने अपनी भूमि के गौरव को कभी कम नहीं होने दिया। भारत के सबसे वीर योद्धाओं में से एक महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया का जन्म इसी राजपरिवार में 9 मई 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। महाराणा प्रताप, राणा सांगा के पोते और राजा उदय सिंह द्वितीय और जयवंता बाई सोंगारा के बड़े पुत्र थे। महाराणा प्रताप के तीन छोटे भाई और दो सौतेली बहनें थीं।

भारत की आन-बान-शान और वीरों के वीर महाराणा प्रताप का जन्मदिन साल में दो बार मनाया जाता है। 9 मई 2023 को उनकी 486वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। यह तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार है। वहीं बहुत से लोग उनका जन्मदिन हिंदू पंचांग के अनुसार जेठ मास की तृतीया को गुरु पुष्य नक्षत्र में मनाते हैं।

महाराणा प्रताप को सन 1572 में मेवाड़ का शासक बनाया गया। महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व बेहद तेजस्वी था। बलिष्ठ काया, शक्तिशाली, बहादुरी और युद्ध कला में प्रताप का कोई सानी नहीं था। यह भी कहा जाता है कि महाराणा प्रताप अपनी तलवार से दुश्मनों के एक झटके में घोड़े सहित दो टुकड़े कर देते थे। जब प्रताप का राज्याभिषेक किया जाने लगा तो उन्होंने मेवाड़ की प्रजा को यह वचन दिया कि, वे तब तक महलों में निवास नहीं करेगे जब तक मुगलों के अधीन मेवाड़ को वापिस नहीं ले लेते।

दिल्ली का बादशाह अकबर जानता था कि वह ऐसे जिद्दी और मातृभूमि के लिए प्राणों की बाजी लगाने वाले सच्चे शासक को अपनी ओर आसानी से नहीं मिला सकता है, अतः उसने चार बार राजस्थान के ही महत्वपूर्ण शासकों को संधि का प्रस्ताव देकर मेवाड़ भेजा। मगर राणा ने मुगल शासक के समक्ष झुकने से इंकार कर दिया।

बैटल ऑफ दिवेर’ और ‘थर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़’ : हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप के शौर्य का ही परिणाम था कि अकबर की भारी-भरकम सेना होने के बावजूद भी उन्हें कभी गिरफ्तार ना कर सके। ना ही वे मेवाड़ पर पूर्ण अधिकार जमा सके। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1576 में हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात मुगलों ने कुंभलगढ़ गोगुंदा उदयपुर और आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था, लेकिन अकबर और उसकी सेना महाराणा प्रताप का बाल भी बांका नहीं कर सकी।

कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने जंगल में घास की रोटी खाई और जमीन पर सोकर रात जरूर गुजारी, लेकिन अकबर के सामने कभी हार नहीं मानी। भामाशाह से मिली धनराशि से उन्होंने पुनः बड़ी फौज तैयार की। बीहड़ जंगल, भटकाव भरे पहाड़ी रास्तों और स्थानीय निवासियों की गोरिल्ला युद्ध के हमलों से और रसद लूट कर उन्होंने मुगल सेना की हालत खराब कर दी थी।

दिवेर का ऐतिहासिक युद्ध : दिवेर का ऐतिहासिक युद्ध 1582 में हुआ था। इस युद्ध में मुगल सेना की अगुवाई अकबर का चाचा सुल्तान खान कर रहा था। महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को दो हिस्सों में बांट रखा था। एक हिस्से का नेतृत्व स्वयं महाराणा प्रताप और दूसरे का नेतृत्व उनके बेटे अमर सिंह कर रहे थे। इस युध्द में उन्होंने मुगलों के छक्के छुड़ा दिये थे। मुगल सेना युध्द क्षेत्र से भाग खड़ी हुई। इसके पश्चात उन्होंने उदयपुर समेत कई अहम जगह पर अपना अधिकार स्थपित कर लिया था।

प्रताप के सम्बन्ध में कर्नल टॉड लिखते है कि- “आल्प्स पर्वत के समान अरावली में कोई भी ऐसी घाटी नहीं, जो प्रताप के किसी न किसी वीर कार्य, उज्ज्वल विजय या उससे अधिक कीर्तियुक्त पराजय से पवित्र न हुई हो। हल्दीघाटी मेवाड़ की धर्मोपल्ली और दिवेर मेवाड़ का मैराथन है।”

आधुनिक भारतीय इतिहास के महानतम योद्धा, शूरवीरता के अद्वितीय प्रतीक, स्वाभिमान और आत्मविश्वास की साक्षात प्रतिमूर्ति, एकलिंग जी के दीवान महाराणा प्रताप की 483वीं जन्मजयंती पर देशवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

#शत शत नमन

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