देखो खिल-खिल मुस्काता कदम्ब फूल

श्रीराम पुकार शर्मा, हावड़ा। कदंब का पेड़, जिसे ‘प्रेम का वृक्ष’ भी कहा जाता है। कारण कदंब का नाम प्रेम के उत्प्रेरक कामदेव के साथ जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि कामदेव ने प्रेमवर्द्धक और कामवर्द्धक अपने तीर को चलाने के लिए उन्होंने कदम्ब के पेड़ को ही धनुष के रूप में इस्तेमाल किया था। तभी तो प्रेम-तत्व से परिपूर्ण श्रीकृष्ण के बालकाल से संबंधित ब्रज में कदम्ब के पेड़ की बहुत महिमा है। अपनी बालोचित अठखेलियों और क्रिया-कलापों से ब्रज की कुंज गलियन को देवलोक सदृश सुखमय बनाने वाले कान्हा कभी इन्हीं कदम्ब की सघन छाँव में अपनी आँखें बंद कर बांसुरी की वह मोहिनी तान छेड़ा करते थे, जिससे सम्पूर्ण प्रकृति मय चरचरों सहित सम्मोहित हो उठती थी। ब्रज कुमारियों राधा-गोपियों और ब्रज कुमारों की बात ही क्या? कदम्ब के वृक्ष पर ही गोपियों के वस्त्र चुराने की घटना या सुदामा के साथ चने खाने की घटना और फिर जमुना में रहने वाला विषधर कालिया नाग पर छलांग लगाकर उसे नाथने जैसी मनभावन घटनाएँ संपादित हुई हैं।

कदंब के पेड़ राधा और कृष्ण के बीच दिव्य-प्रेम का संवाहक और प्रत्यक्ष गवाह रहा है। कृष्ण की विविध लीलाओं से जुड़े होने के कारण कदम्ब ब्रजभाषा और मुख्य रूप से कृष्ण भक्ति साहित्य का एक विशेष पात्र ही है, जिसके बिना कृष्ण-भक्ति काव्य अधूरा ही रहेगा। कृष्ण भक्त के प्रसिद्ध कवि ‘रसखान’ तो कदंब के डालों के ही पक्षी के रूप में जन्म लेकर अपने जीवन को सार्थक करना चाहते हैं ।
‘जो खग हों तो बसेरो करो मिलि कालिंदी कूल कदम्ब की डारन’

कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला प्रसिद्ध शोभाकर वृक्ष है। यह ‘रूबियासी परिवार’ से संबंधित है और इसका वैज्ञानिक नाम ‘एंथोसेफेलस कैडंबा’ है। सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेज़ी से बढ़ने वाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल हुआ करती है। इसकी पत्तियाँ कुछ बड़ी और स्वाभाविक रूप में चिकनी, चमकदार, मोटी और उभरी नसों वाली होती हैं। कदंब का पेड़ अपने गेंद आकृत, मुलायम, सुगंधित फूलों के कारण प्रेम और रिश्तों के परिप्रेक्ष्य में भी पूजनीय माना जाता है। मध्य काल में ब्रज के लीला स्थलों के अनेक उपवनों में इसे बड़ी संख्या में लगाया गया था। साधारणतया उनमें सर्वाधिक श्वेत-पीले रंग के फूलदार कदंब ही पाये जाते हैं। वे उपवन ‘कदंबखंडी’ कहलाते हैं। फिर राधा-कृष्ण के स्मरण और उनकी भक्ति में भी अनेक स्थानों पर उनके भक्तों के द्वारा कदंब के पेड़ लगाए जाते रहे हैं।

श्रीराम पुकार शर्मा, लेखक

वर्षा ऋतु में कदंब की डाली-प्रडालियों पर कुछ पीले तो कुछ नारंगी रंग में गुच्छे के रूप में इसके सुगंधमय सुंदर-सुंदर फूल आते हैं । इनमें मीठी-मीठी और मादक खुशबू होती है। कहा जाता है कि मेघ-गर्जन से इसके फूल अचानक खिल उठते हैं, मानो सोते से जाग जाते हैं। इनका उपयोग सदियों से पारंपरिक चिकित्सा, विशेषकर आयुर्वेद में और फिर इत्र तथा अन्य सुगंध बनाने में किया जाता है। इसके अलावा इसके फूलों का उपयोग धार्मिक तथा सामाजिक समारोहों में भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हिंदू और बौद्ध-धर्म के अनुसार इसका बहुत ही आध्यात्मिक महत्व माना जाता है।

कदंब कई भारतीय पौराणिक, लोककथाओं और ऐतिहासिक साहित्य में अपना जीवंत स्थान रखता है। आध्यात्मिक दृष्टि से कदंब भगवान विष्णु, देवी पार्वती और काली का भी यह प्रिय वृक्ष है। एक पौराणिक कथा के मुताबिक स्वर्ग से अमृत पीकर लौट रहे विष्णु के वाहन गरुड़ जी की चोंच से कुछ बूंदे कदम्ब के वृक्ष पर गिर गई थी। इस कारण इसे अमृत तुल्य माना जाता है।

(प्रातः भ्रमण-स्थल पर कदंब के पेड़ पर लटके नारंगी फूलों से प्रभावित, 9 जून, 24)

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