एसबीआई की ताज़ा रिसर्च रिपोर्ट – भारत में आर्थिक असमानता में कमी आई

अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च रेटिंग रिपोर्ट्स में भारत पिछड़ा – भारतीय रिसर्च रिपोर्ट्स में भारत आगड़ा
एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट को देखें तो, टारगेट विकसित भारत में तेजी परंतु दावोस रिपोर्ट 2023 को देखें तो स्थिति विपरीत फिर भी हम लक्ष्य प्राप्ति में अगड़े – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनियां भारत की हर स्थिति परिस्थिति व गतिविधि पर नजर लगाए हुए हैं, क्योंकि हर क्षेत्र में भारत विकास का झंडा लिए तेजी से आगे बढ़ रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में 10वें से 5वें नंबर पर आकर अब तीसरे नंबर की ओर बढ़ रहा है, जिसका जीता जगता सबूत नीति आयोग द्वारा पिछले 5 वर्ष में 13.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा के ऊपर उठने की रिपोर्ट और अब दिनांक 8 जनवरी 2024 को देर शाम एसबीआई की ताजा रिसर्च रिपोर्ट में भारत में आर्थिक असमानता में कमी, मध्यम वर्गीय लोगों का विकास, आईटी रिटर्न भरने में तीन गुना ऊछाल सहित अनेक बातें अपनी रिपोर्ट में अनेक आधारों का विस्तृत उल्लेख कर बताया है।

परंतु अगर हम स्विट्जरलैंड में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2023 की रिपोर्ट सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट रिपोर्ट याने दावोस रिपोर्ट को देखें तो असमानता बड़ी हुई है, ठीक उसी तरह अगर हम अंतरराष्ट्रीय रिसर्च एजेंसियों की रेटिंग एजेंसियों की रिपोर्ट उठाकर देखें तो हर साल की रिपोर्ट में भारत की स्थिति का आकलन बहुत कम होता है यही कारण है की सूची में भारत बहुत पिछड़ा नजर आता है, अनेक रीसर्च रिपोर्ट्स पर भारत ने नाराजगी भी व्यक्ति की है। खैर इस बात की तस्वीर हमें मिशन 2047 की दिशा में बढ़ते कदमों से आभास हो जाएगा कि हम अगड़े हैं या फिर पिछड़े। परंतु मेरा मानना है कि हम अपने लक्ष्य को लेकर बेहद संजादिगी और विश्वास से आगे बढ़ रहे हैं जो आगे चलकर दुनियां देखेगी, क्योंकि ऐसे भी हम दिखाने में नहीं, काम करने में विश्वास रखते हैं। चूंकि एसबीआई की 8 जनवरी 2024 की हालिया रिपोर्ट विकसित भारत की ओर बढ़ रहे परिणाम की सफलता की पुष्टि करती है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, एसबीआई रिपोर्ट को देखें तो टारगेट विकसित भारत में सक्रियता परंतु दावोस रिपोर्ट 2023 को देखें तो स्थिति विपरीत फिर भी हम लक्ष्य प्राप्ति में आगे हैं।

साथियों बात अगर हम दिनांक 8 जनवरी 2024 को देर शाम जारी एसबीआई की ताजा रिसर्च रिपोर्ट की करें तो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने भारत के लोगों की आय पर रिसर्च किया है। नए अध्ययन से पता चला है कि हाल के वर्षों में लोगों की आय में असमानता कम हुई है और आमदनी बढ़ रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय मिडिल क्लास की स्थिति मजबूत हो रही है जिसके वजह से यह संभव हो पाया है। देश के सबसे बड़े भारतीय स्टेट बैंक ने अपने एक रिसर्च रिपोर्ट में दावा किया है कि देश में आर्थिक असमानता में कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक इनकम टैक्स रिटर्न के डेटा के जरिए लोगों के टैक्सेबल इनकम पर नजर डालें तो लोगों के इनकम में असमानता एसेसमेंट ईयर 2014-15 से लेकर एसेसटमेंट ईयर 2022-23 के दौरान 0.472 से घटकर 0.402 पर आ गई है। एसबीआई ने अपने रिसर्च रिपोर्ट में कहा कि महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में के-आकार की रिकवरी के बारे जो सवाल खड़े किए जा रहे दावे दोषपूर्ण, पूर्वाग्रह से ग्रसित और मनगढ़ंत है।

रिपोर्ट में कहा गया कि महामारी के बाद भारतीय अपनी बचत को अचल संपत्ति समेत फिजिकल एसेट्स में निवेश कर रहे हैं। एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 महामारी के बाद कम ब्याज दरों का लाभ उठाने के लिए भारत में भी वैश्विक रुझान के मुताबिक अपनी बचत को फाइनेंशियल एसेट्स से निकालकर लोग फिजिकल एसेट्स में लगा रहे हैं। एसबीआई ने अपने रिपोर्ट में कहा कि एसेसटमेंट ईयर 2014-15 के दौरान 3.5 लाख रुपये से कम आय सेगमेंट वाले 36.3 फीसदी टैक्येपयर्स अब इस इनकम ग्रुप से बाहर आ गए हैं और ऊपर के आय वाले सेगमेंट में चले गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 3.5 से 5 लाख रुपये और 5 से 10 लाख रुपये के सालाना इनकम वाले सेगमेंट में 15.3 फीसदी टैक्सपेयर्स शिफ्ट कर चुके हैं। 5.2 फीसदी लोग 10 से 20 लाख रुपये इनकम के सेगमेंट में जा चुके हैं। बाकी लोग 20 लाख रुपये सालाना इनकम से ऊपर वाले ब्रैकेट में जा चुके हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक 4 लाख रुपये से कम आय ग्रुप में शामिल 21.1 फीसदी लोग में 6.6 फीसदी 4 से 5 लाख रुपये इनकम वाले ब्रैकेट में जा चुके हैं। 7.1 फीसदी 5 से 10 लाख रुपये सालाना इनकम के ग्रुप में शिफ्ट कर चुके हैं। 2.9 फीसदी 20 से 50 लाख रुपये सालाना इनकम के सेगमेंट में शामिल हो चुके हैं और 0.8 फीसदी 50 लाख से 1 करोड़ रुपये सालाना इनकम के ग्रुप में आ चुके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक एसेसमेंट ईयर 2022 में 7 करोड़ टैक्सपेयर्स ने इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल किय था जिसकी संख्या एसेसमेंट ईयर 23 में बढ़कर 7.40 करोड़ हो चुकी है. और एसेसमेंट ईयर 2023-24 में 8.20 करो। इस बीच, 10 करोड़ रुपये से अधिक आय वाले शीर्ष 2.5प्रतिशत करदाताओं की हिस्सेदारी 2013-14 के 2.81 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 2.28प्रतिशत रह गई है। इसी अवधि के दौरान, 100 करोड़ रुपये से अधिक आय वाले शीर्ष 1प्रतिशत करदाताओं की हिस्सेदारी 1.64 प्रतिशत से कम होकर 0.77प्रतिशत रह गई है।

रिपोर्ट कहती है, महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में के-आकार के सुधार पर बार-बार होने वाली बहस दोषपूर्ण, पूर्वाग्रह से ग्रसित और मनगढ़ंत है। यह चुनिंदा तबकों के हितों को बढ़ावा देने वाली भी है जिनके लिए भारत का बेहतरीन उत्थान, जो नए वैश्विक दक्षिण के पुनर्जागरण का संकेत देता है, काफी अप्रिय है। के-आकार के पुनरुद्धार का मतलब अर्थव्यवस्था के विभिन्न समूहों की असमान वृद्धि है। इसमें अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ते हैं जबकि अन्य क्षेत्रों में गिरावट जारी रहती है या उन्हें संघर्ष का सामना करना पड़ता है। एसबीआई की रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 महामारी के बाद कम ब्याज दरों का लाभ उठाने के लिए भारत में भी वैश्विक रुझान के मुताबिक अपनी बचत को वित्तीय परिसंपत्तियों ने निकालकर भौतिक परिसंपत्तियों में लगाने का रुझान देखा गया है। केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड डेटा के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि इनकम टैक्स का आधार साल दर साल बढ़ रहा है. वहीं, इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या वर्ष 2021-22 के 70 मिलियन यानी सात करोड़ से बढ़कर 2022-23 में 74 मिलियन हो गई है. आंकलन वर्ष 2023-24 के लिए 31 दिसम्‍बर 2023 तक कुल 82 मिलियन इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल की गई हैं।

साथियों बात अगर हम 2023 में जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम दावोस रिपोर्ट की करें तो दावोस, स्विट्जरलैंड में इस साल के वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की शुरुआत के साथ जारी ऑक्सफैम इंटरनेशनल की सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अरबपतियों की संख्या 2020 में 102 से बढ़कर 166 हो गई है, जहां ये वर्ष 2000 में केवल 9 थी। भारत में सबसे अमीर 1 प्रतिशत के पास अब देश की कुल संपत्ति का 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है और सिर्फ 5 प्रतिशत भारतीयों के पास देश की 60 प्रतिशत से अधिक संपत्ति है। रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में जीएसटी में कुल 14.83 लाख करोड़ रुपये का लगभग 64 प्रतिशत नीचे की 50 प्रतिशत आबादी से आया, जिसमें शीर्ष 10 से केवल 3 प्रतिशत जीएसटी आया। लैंगिक असमानता पर, रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला श्रमिकों को एक पुरुष कार्यकर्ता द्वारा कमाए गए प्रत्येक 1 रुपये के लिए केवल 63 पैसे मिलते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में जीएसटी में कुल 14.83 लाख करोड़ रुपये का लगभग 64 प्रतिशत नीचे की 50 प्रतिशत आबादी से आया, जिसमें शीर्ष 10 से केवल 3 प्रतिशत जीएसटी आया।

लैंगिक असमानता पर, रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला श्रमिकों को एक पुरुष कार्यकर्ता द्वारा कमाए गए प्रत्येक 1 रुपये के लिए केवल 63 पैसे मिलते हैं। जिस वक्त दुनिया एक साथ कोविड महामारी और जलवायु परिवर्तन, रहने की बढ़ती लागत, यूक्रेन रूस युद्ध जैसे संकटों से घिरी हुई है, फिर भी दुनिया के सबसे अमीर और अमीर हो गए हैं तथा कॉर्पोरेट मुनाफा लगातार बढ़ रहा है। एक दशक में अरबपतियों की संपत्ति लगभग 10 गुना बढ़ गई। मोटे तौर पर 20 प्रतिशत भारतीय अरबपति निजी स्वास्थ्य सेवा और दवा उद्योग से आते हैं, जिसे कोविड -19 महामारी की शुरुआत के बाद बहुत बढ़ावा मिला था। अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी की संपत्ति अकेले महामारी के दौरान आठ गुना बढ़ गई। शिक्षा-स्वास्थ्य कीचुनौतियां। रिपोर्ट में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच के मामले में, भारत 163 देशों में से 135वें स्थान पर है। गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुंच के मामले में, भारत को 163 देशों में से 145वें स्थान पर रखा गया था। आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के मामले में देश की रैंक 123 है। भारत में गरीब, जीवित रहने के लिए मूलभूत आवश्यकताओं को भी वहन करने में असमर्थ हैं।

भूखे भारतीयों की संख्या 2018 में 190 मिलियन से बढ़कर 2022 में 350 मिलियन हो गई। लेकिन ये असमानता अचानक से नहीं बढ़ी है, 1991 के बहुप्रचारित उदारीकरण के दौरान श्रम की जगह पूंजी और अकुशल श्रम की जगह कुशल श्रम को बढ़ावा देने वाली नीतियों के चलते ये तेजी से बढ़ रही। सरकारें, गरीबी मिटाने की बातें तो करती रहीं, परंतु मिटा नहीं पाईं। जब अस्सी करोड़ भारतीयों को अनाज मुफ्त देना पड़ रहा तो हम इस स्थिति को समझ सकते हैं। देश की साठ फीसद से अधिक आबादी ग्रामीण है, कुल साढ़े छह लाख गांव हैं और ढाई लाख पंचायतें, फिर भी कुछ मुट्ठी भर लोगों के पास देश का धन है, विकास की गंगा भी वहीं बह रही, शहर तो स्मार्ट बनाए जा रहे हैं मगर कई बुनियादी समस्याओं से गांव और उसकी पंचायतें आज भी लड़ रहीं।देश में केवल करोड़पतियों की संख्या बढ़ने से काम नहीं बनेगा। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भले भारत की स्थिति पांचवीं हो गई हो, मगर विकास का हिस्सा बहुतों तक अभी पहुंच नहीं रहा है।

अतः अगर हम उपरोक्त विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि एसबीआई की ताज़ा रिसर्च रिपोर्ट – भारत में आर्थिक असमानता में कमी आई अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च रेटिंग रिपोर्ट्स में भारत पिछड़ा – भारतीय रिसर्च रिपोर्ट्स में भारत अगड़ा। एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट को देखें तो, टारगेट विकसित भारत में तेजी परंतु दावोस रिपोर्ट 2023 को देखें तो स्थिति विपरीत फिर भी हम लक्ष्य प्राप्ति में अगड़े।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार/आंकड़े लेखक के स्रोतों से है और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

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