कलावार्ता : वर्तमान समय में कला पर निरंतर सार्थक संवाद की आवश्यकता है

कला एवं कला संस्कृति को विस्तार देने के लिए कलाकारों, कला रसिकों के साथ साथ आमजन मानस में कला के प्रति जागरूक करने के लिए ऐसे आयोजन की आवश्यकता निरंतर है

लखनऊ। आज के समय में सृजन कार्य ज़ोरों पर किए जा रहे हैं और दृश्यकला में कलाकार अनेकों प्रयोग कर रहे हैं और जो निरंतर जारी हैं। बस जरूरत है तो उनके सार्थक और सकारात्मक प्रोत्साहन की चाहे वह कला सृजन है, लेखन हो, समीक्षा हो, प्रदर्शनी हो या अन्य कोई भी माध्यम। कला की एक अच्छी समीक्षा, टिप्पणी की जरूरत होती है और कला पर निरंतर सार्थक संवाद की जिससे समाज मे एक स्वस्थ और सुंदर कला वातावरण का निर्माण हो सके। कलाकार और समीक्षकों के बीच सार्थक संवाद की भी अति आवश्यकता है क्योंकि दोनो का योगदान महत्वपूर्ण होता है। आज पहले की अपेक्षा अच्छी समीक्षा, आलोचना नहीं हो रही, क्यों? समाचार पत्रों और पत्रिकाओं से भी इस प्रकार के कॉलम और कोना धीरे धीरे समाप्त कर दिया गया है? कला और संस्कृति पर लोगों को अच्छी समझ नहीं बन पा रही? इसलिए कला संवाद, कला चर्चा निरंतर और हर जगह आयोजन किए चाहिए। ख़ास तौर पर उत्तर प्रदेश में इसकी आवश्यकता बहुत है।

गुरुवार को लखनऊ स्थित वर्णाभिनय आर्ट गैलरी में चल रही अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी के समापन दिवस पर कला वार्ता कार्यक्र्म के दौरान उक्त बातें अतिथि वक्ता रूप में आए युवा कलाकार, क्यूरेटर व कला लेखक भूपेंद्र कुमार अस्थाना और कला समीक्षक, संपादक – नाद रंग आलोक पराड़कर ने कही। दोनों वक्ताओं ने भारतीय कला परिपेक्ष, कला समायोजन, लखनऊ की कला दृष्टि तथा कलाओं के अंतर्संबंध पर मुखरता से अपनी बात रखी। भूपेंद्र अस्थाना ने तमाम कलाकारों के उत्तर प्रदेश मे दिये गए महत्त्वपूर्ण योगदान को याद करते हुए उत्तर प्रदेश लखनऊ का कला इतिहास पर भी विस्तार से दृष्टि डाली और उसमे कॉलेज ऑफ आर्ट्स लखनऊ के योगदान, उत्तर प्रदेश के प्रमुख कलाकार संघ व अन्य कुछ समूहों, कला एवम संस्कृति के प्रति जागरूकता तथा भारतीय कला इतिहास में लखनऊ व उत्तर प्रदेश के कलाकार के योगदान पर बात की।

उन्होने कहा कि हम सभी कलाकारों को कला के प्रति सजगता अवश्य रखनी चाहिए और साथ ही अन्य विधाओं के प्रति भी जागरूक होने कि आवश्यकता है। कला के विकास में कलाकारों की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कला सृजन के साथ साथ दृश्य कला और अन्य कलाओं के पर भी बातचीत और संवाद निरंतर होते रहना चाहिए। इसी क्रम में आलोक पराड़कर (कला समीक्षक) ने मुख्य रूप से कलाओं के अंतरसंबंध पर बात की, उन्हें कैसे और विस्तार दें इस पर चर्चा की। इसमें दर्शको की भूमिका महत्वपूर्ण है। सभी कलाकारों को अपने से भिन्न कलाओं का दर्शक बनना एक जरूरी भाग है। कलाओं को आगे ले जाने के लिए पराड़कर ने लखनऊ में धीरे धीरे नई कला वीथिकाओं के प्रारंभ पर अपनी खुशी जाहिर की और इन कला दीर्घाओं में लगातार कला गतिविधियों पर बात की। कला दीर्घा से कला रसिक कैसे जोड़े जाएँ, जिससे कला एवं कला संस्कृति को विस्तार दिया जा सके, इस पर बात रखी। कलादीर्घाओं में कला विद्यार्थीयों की कम उपस्थिती होने पर भी चिंता जाहिर की ।

वर्णाभिनय आर्ट गैलरी का मुख्य उद्देश्य समाज में दृश्य कला संस्कृति को विस्तार देना है जिससे समाज में कला संस्कृति के प्रति नई दृष्टि का विस्तार हो सके साथ ही कलाकरों को एक साथ एक प्लेटफॉर्म पर साथ लाना है। जिससे सकारात्मक संवाद सहित अन्य गतिविधियों को स्थापित किया जा सके। इसके लिए वर्णाभिनय प्रयासरत है।

ज्ञातव्य हो कि वर्णाभिनय कला वीथिका में चल रही कला प्रर्दशनी का समापन गुरुवार को कला वार्ता से किया गया। इस प्रदर्शनी में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र , बंगाल के 32 कलाकारों के 32 कला कृतियों को शामिल किया गया था। जिसमे वरिष्ठ , युवा कलाकार तथा विजुअल आर्ट्स स्टूडेंट्स के चित्र थे। कलावर्ता कार्यक्रम के शुरुआत में अतिथि वक्ता के रूप में आये मुख्य भूपेंद्र कुमार अस्थाना, आलोक पराड़कर को राजेंद्र मिश्र ने पौधा देकर उनका स्वागत किया। वर्णाभिनय सचिव सिद्धार्थ देव ने भी दोनों ही अतिथि प्रवक्ता का अभिनंदन किया। वर्णाभिनय की सदस्या आरती सिंह ने भी भारत भूषण का स्वागत पौधा देकर किया। इस बीच वर्णाभिनाय के डायरेक्टर एम.एम. मंसूरी ने अतिथिगण एवं सभी कलाकार व कला रासिकों का अभिनंदन व धन्यवाद् किया। इस दौरान डॉ. भारत भूषण, राजेंद्र मिश्र, राज वर्मा, विभाष पांडेय, मदन आर्टिस्ट, आदित्य भूषण, सिद्धार्थ देव, आरती सिंह, लाइवा खान, निशी, आकांक्षा दिवाकर, राहुल राय, मनोज गोंड, विशाल गुप्ता, प्रवीण खरे, मदन, हर्षिता गुप्ता व अन्य कलाकार उपस्थित रहे।

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