Jungle Mahal Exclusive : देवाशीष चौधरी की सांगठनिक दक्षता से दंग सभी, क्या बदलेगा समीकरण ??

तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : राजनीति में बाजी कभी भी पलट सकती है, यह तो सभी जानते हैं । लेकिन इतनी जल्दी, इसकी कल्पना शायद किसी ने नहीं की थी। जंगल महल की राजनीति की बात करें तो शासक दल तृणमूल कांग्रेस के भीतर लगभग गर्दिश में मान लिए गए देवाशीष चौधरी ने गौतम चौबे मृत्यु वार्षिकी पर आयोजित मशाल जुलूस में दिग्गज दलीय नेताओं का जुटान कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया है।

इसी के साथ यह कयास भी लग रहे हैं कि क्या यह टीएमसी के भीतर बदलते समीकरण का संकेत है।
बता दें कि देवाशीष चौधरी टीएमसी के वरिष्ठतम नेताओं में शामिल है। जबरदस्त संगठन क्षमता के चलते पार्टी ने शुरू से उन्हें संगठन में तो बड़ी जिम्मेदारी दी लेकिन बात जब भी सत्ता की आई, तो किसी न किसी बहाने उन्हें हमेशा दरकिनार कर दिया गया। यहां तक कि उनसे ज्यादा महत्व उनकी अंगुली पकड़ कर राजनीति सीखने वालों को दी गई।

भारी उठा – पटक के बाद विगत विधानसभा चुनाव में भी जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो समर्थकों के साथ देवाशीष का भी धैर्य जवाब दे गया। पार्टी प्रवक्ता पद से तो उन्होंने इस्तीफा दिया ही, सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी भी जताई। लिहाजा आशंका के अनुरूप ही पार्टी खड़गपुर सदर की जीती सीट भी हार गई। इसके बाद से ही तरह – तरह की चर्चा और अटकलें टीएमसी के भीतर लगाई जा रही थी।

माना जा रहा था कि चुनाव में पार्टी के लिए अपेक्षित सक्रियता नहीं दिखाने का चरम दंड उन्हें कभी भी मिल सकता है। उन्हें संगठन से भी दर किनार किया जा सकता है। इस बीच हाल में घोषित टीएमसी टाउन कमेटी में केवल देवाशीष ही नहीं उनके करीबियों को भी साइड लाइन पर धकेल दिए जाने से अफवाहों को मानो पंख लगने लगे लेकिन बाजी पलट गई विगत 11 सितंबर को।

दिवंगत नेता गौतम चौबे की मृत्यु वार्षिकी पर आयोजित मशाल जुलूस पर देवाशीष ने न सिर्फ समर्थकों की भीड़ जुटाई बल्कि जिले के तमाम कद्दावर नेताओं को भी एक मंच पर लाने में सफल रहे। मशाल जुलूस में जिले के वो नेता भी शामिल हुए , जिन्हें देवाशीष का धुर विरोधी माना जाता है। इससे उनके विरोधी ही नहीं बल्कि समर्थक भी हैरान हैं।

यह टीएमसी के भीतर बदलते समीकरण का संकेत तो है ही, इस मान्यता पर मुहर भी कि देवाशीष चौधरी को नजर अंदाज करना आसान नहीं। इस मुद्दे पर खुद देवाशीष कुछ कहने से इन्कार करते हैं लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि आज टीएमसी पर वे काबिज होना चाहते हैं जिनकी उम्र टीएमसी के संघर्षकाल के दौरान 5 – 6 साल रही होगी।

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