चमोली/जोशीमठ। जोशीमठ के लिए आज हर कोई मिलकर प्रार्थना कर रहा है। पूरा शहर बर्बाद हो रहा है। जमीनोजद हो रहे इस शहर को अब बचा पाना कठिन सा लग रहा है। हालांकि केंद्र और राज्य दोनों की सरकारें इससे बचाने के लिए पूरी कोशिश कर रही है। वहीं आदि गुरु शंकराचार्य मठस्थली भी भू-धंसाव का शिकार होने लगी है। मठस्थली में मौजूद शिव मंदिर करीब छह इंच धंस गया है। और यहां रखे हुए शिवलिंग में दरारें आ गई हैं। मंदिर के ज्योर्तिमठ का माधवाश्रम आदि शंकराचार्य ने बसाया था। यहां देशभर से विद्यार्थी वैदिक शिक्षा व ज्ञानार्जन के लिए आते हैं।
वर्तमान में भी 60 विद्यार्थी यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। दरअसल आदि गुरु शंकराचार्य मठस्थली के भीतर ही शिवमंदिर है। इस मंदिर में कई लोगों की मान्यता है । वर्ष 2000 में शिवलिंग जयपुर से लाकर स्थापित किया गया था। इतना ही नहीं, मान्यता अनुसार शंकराचार्य आज से 2500 वर्षों पूर्व जिस कल्प वृक्ष के नीचे गुफा के अंदर बैठकर ज्ञान की प्राप्ति की थी। आज उस कल्प वृक्ष का अस्तित्व मिटने की कगार पर हैं।
इसके अलावा परिसर के भवनों, लक्ष्मी नारायण मंदिर के आसपास बड़ी- बड़ी दरारें पड़ गई हैं। ज्योतिर्मठ के प्रभारी ब्रह्मचारी मुकुंदानंद ने बताया कि मठ के प्रवेश द्वार, लक्ष्मी नारायण मंदिर और सभागार में दरारें आई हैं। इसी परिसर में टोटकाचार्य गुफा, त्रिपुर सुंदरी राजराजेश्वरी मंदिर और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की गद्दी स्थल है।
मंदिर के पुजारी वशिष्ठ ब्रहमचारी ने जानकारी देते हुए बताया कि पिछले करीब 12-13 माह से यहां धीरे-धीरे दरारें आ रहीं थीं। मगर किसी को यह अंदाजा तक नहीं था कि हालात यहां तक पहुंच जाएंगे। पहले दरारों को सीमेंट लगाकर रोकने का प्रयास किया जा रहा था। लेकिन पिछले सात-आठ दिन में हालात बिगड़ने लगे हैं। मंदिर करीब छह से सात इंच नीचे की ओर धंस चुका है। दीवारों के बीच गैप बन गया है। मंदिर में विराजमान शिवलिंग भी धंस रहा है।’
पहले उस पर चंद्रमा के आकार का निशान था जो कि अब अचानक बढ़ गया है। वहीं नृसिंह मंदिर परिसर में भी फर्श धंस रहा है। मठभवन में भी दीवारों में दरारें आने लगी हैं। यह फर्श 2017 में डाला गया था, जिसकी टाइलें बैठने लगी हैं। कुल मिला कर जोशीमठ को हमारी प्रार्थनाओं की और उससे भी ज्यादा सख्त कार्यवाही की जरूरत है ताकि समय रहते हालात काबू में लाए जा सकें।