बिहार में फिर से जद (यू) और राजद के मिलेंगे ‘सुर’?

पटना। बिहार में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दल विभिन्न मुद्दे पर जहां आमने-सामने नजर आ रहे हैं वहीं राजग में शामिल जनता दल (युनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) कई मुद्दों पर एकसाथ नजर आ रहे हैं। हालांकि, इस बारे में कोई खुलकर कहने को तैयार नहीं है लेकिन नेताओं के बयान के बीच इसके संकेत मिलने लगे हैं कि राजग और जेडीयू के बीच सबकुछ ठीक नहीं है।

बिहार में अब एक बार फिर सवाल उठने लगा है कि क्या जद (यू) फिर से राजद के साथ गलबहियां करेगी? कहा जा रहा है कि आमतौर किसी भी मुद्दे पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आक्रामक नहीं होते हैं, लेकिन जनसंख्या नियंत्रण तथा जातीय जनगणना को लेकर स्पष्ट तथा भाजपा से अलग राय रखकर इसके स्पष्ट संदेश दे दिए हैं कि जद (यू) अलग राह भी अपना सकती है।

उत्तर प्रदेश की सरकार ने जब जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कानून बनाने की बात कही थी तभी नीतीश कुमार ने इस मामले को लेकर खुद मोर्चा संभाला और सामने आकर अपनी राय रखते हुए कहा कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की नहीं बल्कि महिलाओं को शिक्षित करने की जरूरत है।

इधर, नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना को लेकर भी केंद्र सरकार से इस मामले को लेकर फिर से विचार करने की नसीहत तक दे डाली।

मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा, “हम लोगों का मानना है कि जाति आधारित जनगणना होनी चाहिए। बिहार विधान मंडल ने 18 फरवरी 19 एवं पुन: बिहार विधान सभा ने 27 फरवरी 2020 को सर्वसम्मति से इस आशय का प्रस्ताव पारित किया था तथा इसे केन्द्र सरकार को भेजा गया था। केन्द्र सरकार को इस मुद्दे पर पुनर्विचार करना चाहिए।”

उल्लेखनीय है कि राजद पहले से ही जातीय जनगणना की मांग करती रही है। इस बीच, विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि जब जानवरों की गणना हो सकती है तो ओबीसी और इबीसी की क्यों नहीं। केंद्र सरकार की मंशा इसे लेकर ठीक नहीं है।

इधर, जदयू के वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि जदयू के स्टैंड साफ है कि जातीय जनगणना होनी चाहिए। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भाजपा और जदयू दोनों अलग-अलग दल हैं अब इसमें अलग-अलग नीतियां हैं।

भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन खुलकर तो बहुत कुछ नहीं कहते हैं कि लेकिन इशारों ही इशारों में उन्होंने जदयू को नसीहत देते हुए कहा कि, “जाति-धर्म व्यक्तिगत और सामाजिक मसले हैं, इसके राजनीतिक प्रयोग से हर जिम्मेवार राजनीतिक दल को बचना चाहिए। धार्मिक राजनीति का खामियाजा देश ने पाकिस्तान दे कर चुकाया है और हजारों जानें जातिगत राजनीति की भेंट चढ़ी हैं।”

उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि राजनीतिक भूख के लिए समाज में विभेद फैलाना कहां तक उचित है। भाजपा के नेताओं का कहना है कि भाजपा और जदयू कई मसलों पर अलग-अलग राय रखते हैं, दोनों अलग-अलग दल है।

बहरहाल, बिहार में राजग की सरकार चल रही है, लेकिन दो मुद्दांे पर दो घटक दलों की राय अलग-अलग है। ऐसे में कहा जा रहा है कि जदयू और राजद के सुर एकबार फिर से मिलने लगे हैं। कहा भी जाता है कि राजनीति में कब, कौन किसके दोस्त और कब किसके दुश्मन हो जाएं, कहा नहीं सकता। ऐसे में अब देखना होगा कि बिहार की सियासत किस करवट बैठती है।

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