कला के पुरोधा राज बिसारिया जी के योगदान को भूल पाना असंभव – भूपेंद्र अस्थाना

लखनऊ। यह संसार एक रंगमंच है और हम सब अपने-अपने किरदार निभाने आये हैं… यह बात शनिवार को साक्षात चरितार्थ दिखी। जब एक कलाकार अपने सभी किरदार को बखूबी निभा कर इस संसार से विदा होता है। बड़े ही दुखी मन से शनिवार को राज बिसारिया जी का अंतिम दर्शन करने का मौका मिला। हालांकि हर इंसान अपने अपने किरदार को अपने अपने ढंग से निभाने का प्रयास कर रहा है , यह कोई आज की ही बात नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही एक अकाट्य सत्य है। इन्ही कुछ किरदारों में कुछ खास व्यक्तित्व के लोग भी होते हैं जिन्हे उनके किरदार के नाते सदियों तक अपने स्मृतियों में रखा जाता है। उनके महत्वपूर्ण योगदान को कोई नहीं भूल पाता है ।

ऐसे ही एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के धनी रहे प्रतिष्ठित कलाकार, भारतेन्दु नाट्य अकादमी के संस्थापक निदेशक व सुप्रसिद्ध रंगकर्मी पद्मश्री राज बिसारिया जी, जो अब हमारे बीच नहीं रहे। शुक्रवार की शाम उनके निधन की खबर से समस्त कला जगत में शोक की लहर फैल गयी। रंगमंच के पुरोधा रहे राज बिसारिया जी का जाना भारतीय कला जगत की अपूर्णीय क्षति है। वे सभी कलाओं के मर्मज्ञ रहे। रंगमंच में उनके किए गए प्रयोग और उनके सृजनात्मकता ही उनकी अलग पहचान बनी। वे स्वयं मे एक जीवंत संस्थान थे।

2006 में दृश्यकला के क्षेत्र में आने के बाद मुझे लगातार कला साहित्य संस्कृति के लगभग सभी दिग्गज कलाकारों से मिलने और उनके समकक्ष बैठने, उनसे सुनने और उनके अनुभवों से सीखने का भी अवसर मिला। वैसे भी लखनऊ कलाकारों और साहित्यकारों की नगरी रही है । यहाँ की पहचान इन्ही सृजनकर्मियों के कारण ही रही। इन्ही में बिसारिया जी भी रहे। वैसे तो राज साहब से बहुत मिलना नहीं रहा लेकिन जब भी मौका मिला,उनका प्रेम अथाह मिला। 1अक्टूबर 2019 को मैं चित्रकार रणवीर सिंह बिष्ट जी के स्मृति में एक कार्यक्रम आयोजन कर रहा था जिसके लिए आदरणीय राज साहब को कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित करने के लिए एक मुलाक़ात करने के लिए जब उन्हे फोन किया तो उन्होने बड़े ही विनम्र भाव से कहा आप आ जाइए घर। जब उनके आवास पहुंचा तो वे बड़े खुश हुए और लगभग 1 घंटे अपने पास बैठा कर अपने उन दिनों की बातें बताई जब रणवीर सिंह बिष्ट के साथ लगातार काम किया करते रहे।

बता दें कि यह दोनों ही शख़्स अपने अपने क्षेत्र में एक विशेष स्थान रखते थे। जब प्रो बिष्ट जी पर बात हुई तो बिसारिया जी ने उस दौर की यादों को सामने रखी जब एक साथ मिलना जुलना और कला पर चर्चाएं होतीं थीं। उन्होंने कहाँ कि श्री बिष्ट जी मेरे हरदिल अज़ीज मेरे गुरु और दोस्त थे। उनका कार्य उनके जीवन ,उनकी तलाश, उनकी कलाकृतियों में बहुत पहले से दिखाई पड़ने लगी थी। उन्होंने बताया था कि जब मैं रंगमंच में सक्रिय होने का प्रयास कर रहा था तब उस समय के सक्रिय लोगों में बिष्ट साहब प्रमुख थे, उसी दौरान उनसे मिलना हुआ था। तब से बिष्ट जी से मुलाक़ातों का सिलसिला जारी रहा। उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। वे मुझे प्रोत्साहित करते रहे। एक कार्यक्रम हुआ था जिसमें बिष्ट साहब की पेंटिंग लगाई गई थी। ऐसे बहुत से किस्से राज साहब ने मुझसे साझा किया था। साथ ही उस दौर के कला वातावरण की भी बात बताई।

चलते-चलते उन्होने कहा कि थोड़ा अस्वस्थ जरूर हूँ लेकिन अपने गुरु अपने मित्र के लिए उन्हे याद करने के लिए और उनके बारे में बताने के लिए मैं अवश्य आऊँगा। उसके बाद 5 जून 2022 को चित्रकार किशोर साहू के चित्रों की प्रदर्शनी रंगमय क्षितिज के उदघाटन के लिए सराका आर्ट गैलरी में उदघाटन भी राज साहब ने किया था और कलाकार के एक एक चित्रों पर खूब बातें की और खूब प्रोत्साहित भी किया था। राज साहब अपने रंगकर्म से देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। जिनके रंगकर्मी शिष्य भी आज इनके द्वारा दिये गए शिक्षा से देश विदेश मे अपना प्रमुख स्थान और पहचान बनाये हुए हैं। ऐसे व्यक्तित्व के धनी प्रतिष्ठित रंगकर्मी पद्मश्री राज बिसारिया जी रहे। उन्हे भूल पाना असंभव है ।

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