राष्ट्रीय एकता में हिंदी, मराठी भाषा एवं देवनागरी लिपि का योगदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

उज्जैन। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय आभासीय गोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय- राष्ट्रीय एकता में हिंदी, मराठी भाषा एवं देवनागरी लिपि का योगदान था। कार्यक्रम में राष्ट्रीय मुख्य संयोजक, डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख के जन्म दिवस पर उनका सारस्वत सम्मान किया गया।

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा, हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने अपना मंतव्य देते हुए कहा- हमें हिंदी, मराठी भाषा और नागरी लिपि ने सदियों से देश दुनिया को जोड़ने में अविस्मरणीय योगदान दिया है। राष्ट्र के भक्ति आंदोलन ने उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य सेतु स्थापित किया। देवनागरी लिपि के के माध्यम से देश-विदेश की अनेक भाषाएं परस्पर जुड़ गई हैं। इनके योगदान को स्वीकार कर जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए।

संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. हरि सिंह पाल नई दिल्ली ने कहा कि – भारत की 22 भाषाओं की लिपि देवनागरी लिपि है और अन्य बोलियों एवं भाषाओं को देवनागरी लिपि में भी लिखने के प्रयास होने चाहिए। बृजकिशोर शर्मा, पूर्व शिक्षा अधिकारी एवं अध्यक्ष, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, उज्जैन ने कहा- हिंदी राष्ट्रीय एकता के कार्यों की परंपरा की कड़ी है।

मुख्य अतिथि, सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक नॉर्वे ने “झोलियां की हो कमी, उपहार इतने मिलें” काव्य पाठ किया।
डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, कार्यकारी अध्यक्ष, नागरी लिपि परिषद् और मुख्य संयोजक, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा – देवनागरी लिपि, हिंदी भाषा और मराठी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए सभी को मिलकर और प्रयत्न करने होंगे।

प्रस्तावना में डॉ. शहनाज शेख, नांदेड़, महाराष्ट्र, महासचिव महिला इकाई ने कहा- हिंदी की प्रकृति ही देश की एकता की परिचायक है। डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, चेन्नई ने कहा- जिस भाषा के माध्यम से आजादी मिली वह हिंदी भाषा और नागरी लिपि है। डॉ. प्रभु चौधरी महासचिव राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा- देवनागरी लिपि अपनी वैज्ञानिकता के कारण अंतर्राष्ट्रीय लिपि बनने योग्य है। डॉ. अनसूया अग्रवाल ने कहा- विकास के साथ-साथ भाषा की उपयोगिता बढ़ती जाती है। इसमें हमें अपनी जिम्मेदारी शेख जी की तरह निभानी चाहिए। हरेराम वाजपेयी, अध्यक्ष, हिंदी परिवार इंदौर ने कहा- हिंदी हिमालय से लेकर गंगासागर तक पहुंचती है और भाषाओं को भी स्वयं में मिलाकर चलती है।

शिव शंकर अवस्थी ने कहा- आज लेखकों को वो सम्मान हासिल नहीं है जो भारत में उन्हें दिया जाना चाहिए।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. रश्मि चौबे, कार्यकारी अध्यक्ष, महिला इकाई राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. रश्मि चौबे द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ। अतिथि परिचय डॉ. प्रभु चौधरी, राष्ट्रीय महासचिव, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन ने, आभार प्रदर्शन श्वेता मिश्रा, पुणे, महाराष्ट्र ने किया। कार्यक्रम में डॉ. मुक्त कान्हा कौशिक, राष्ट्रीय प्रवक्ता, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, डॉ. मोहन बहुगुणा, अरुण सराफ, जयवीर सिंह आदि अन्य अनेक विद्वान उपस्थित रहे।

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