अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। देश के मुख्य आर्थिक केंद्र के रूप में कोलकाता की जड़ें उसके उद्योग, आर्थिक एवं व्यापारिक गतिविधियों और मुख्य बंदरगाह के रूप में उसकी भूमिका में निहित है। यह मुद्रण प्रकाशन और समाचार पत्र वितरण के साथ-साथ मनोरंजन का केंद्र है। कोलकाता के भीतरी प्रदेश के उत्पादों में कोयला, लोहा, मैग्निज, अभ्रक, चाय और जूट शामिल है। 1950 के दशक से बेरोजगारी एक सतत व बढ़ती हुई समस्या है। कोलकाता में बेरोजगारी बहुत हद तक महाविद्यालय शिक्षा प्राप्त और लिपिक व अन्य सफेदपोश व्यवसायों के लिए प्रशिक्षित लोगों की समस्या है।
एक समय था जब बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग रोजगार की तलाश में कोलकाता और इसके उपनगरीय क्षेत्रों की ओर अपनी रुख करते थे। लेकिन इस प्रदेश की जूट मिलों एवं अन्य कल कारखानों के हाल बेहाल हो जानें के बाद वह बात नही रही। राज्य में रोजगार नही होने के कारण अब यहां के युवक नौकरी की तलाश में दूसरे प्रदेश में जाने लगे हैं। ऐसे में जरूरी है की राजनेता सिर्फ स्वार्थ की राजनीति नही करें बल्कि यहां रोजगार के अवसर विकसित करने की सच्ची पहल करें।
इसके साथ ही यहां स्वास्थ शिक्षा और भ्रष्ट्राचार में सुधार लाया जाय और स्कूलों में छात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। आजादी के 76 साल गुजर गए पर आम आदमी आज भी हाशिए पर ही पड़ा हुआ है। आजादी के साथ ही हमारे जनप्रतिनिधियों ने विकास के लिए जिन संकल्पों को लिया था उसमें आंशिक सफलता ही मिल पाई क्योंकि ये जनप्रतिनिधि खुद के विकास में अपना समय लगा दिए चाहे वो ग्रामीण क्षेत्र हो या नगरपालिका क्षेत्र। इनके प्रतिनिधि आज शून्य से करोड़ों के मालिक हैं, जिसकी जांच तो बनती ही है, मगर जांच करे कौन और करवाएं कौन?
पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार के सत्ता परिवर्तन के बाद लोगों ने बहुत सपने देखे थे किंतु ऐसा कुछ नही हुआ। कोलकाता का ऊपरी स्वरूप तो बदला है, लेकिन उद्योग व्यापार के विकास के मामलों में यह नगरी पीछे है। अनेकता में एकता बनाए रखने के लिए राजनेताओं को जाति-धर्म के नाम पर होने वाले विभेद की राजनीति को हमेशा के लिए बंद करनें पड़ेंगे और ‘बांग्ला पक्षों’ जैसे अलगाववादी संगठन पर प्रतिबंध लगाना होगा। महंगाई और बेरोजगारी की समस्याओं के साथ आज पर्यावरणीय प्रदूषण जैसी कई समस्याओं का हल ढूंढना एक चुनौती पूर्ण कार्य है।
कोलकाता में वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या है। जब तक गांव-गांव बिजली पानी, प्रत्येक नागरिक को दो जून का भोजन और उनके हक का एक-एक पैसा उन तक नहीं पहुंच जाता, जब तक प्रत्येक छात्र-छात्राएं स्कूल की दहलीज तक नहीं पहुंच जाते और जब तक प्रत्येक मरीज को बेहतर चिकित्सा सेवा नही मिल जाती तब तक विकास की बात करना बेमानी है। सुखद बात यह है की आज की युवा पीढ़ी जात-पात और संप्रदायवाद की भावना से ऊपर उठ कर कोलकाता को विकास के पहले पायदान पर देखना चाहते हैं। आशा बहुत बड़ी चीज है और मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की आने वाले समय में विकास की नित नई-नई इबारत लिखी जाएगी।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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