पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में शिवपुर अंचल के ओलाबीबी तल्ला में अवस्थित प्रसिद्ध हजार हाथ काली माता मंदिर 115 साल पुराना है। काली की इस मूर्ति की महिमा दक्षिण भारत में भी कम प्रसिद्ध नहीं है। मंदिर का इतिहास 1880 में शुरू हुआ था। कहा जाता है कि शिवपुर के ओलाबीबी तल्ला में मुखर्जी परिवार के आशुतोष मुखर्जी ने मां चंडी को सपने में हजार हाथों वाली काली का रूप देखा था।
चंडी पुराण के अनुसार देवी दुर्गा ने असुर वध के दौरान कई रूपों को धारण किया था, जिनमें से एक रूप हजार हाथों वाली काली माता का भी था। देवी के इस रूप का उल्लेख चंडी पुराण के बाईसवें अध्याय में भी मिलता है। आशुतोष मुखोपाध्याय को स्वप्न आदेश हुआ था लेकिन उस समय उनके पास मंदिर बनाने और मां चंडी को हजार हाथों वाली काली के रूप में स्थापित करने का आर्थिक रूप से सामर्थ नहीं था।
लेकिन किसी अज्ञात कारण से उस समय मंदिर बनाने के लिए स्थानीय हालदार परिवार आगे आया। मंदिर बनाने के लिए स्थानीय निवासी भी तन, मन और धन से जुट गए और इस प्रकार से माता का मंदिर और मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू हुआ। कहा जाता है कि शुरू में मंदिर और मूर्ति मिट्टी का बनाया गया था लेकिन वो जब टूट गया तो दुबारा मंदिर और मूर्ति की बालू और सीमेंट का पक्का बनाया गया।
मंदिर के उत्तरी दीवाल में हजार हाथों से युक्त माता की मूर्ति का बायां पैर बैठे हुए शेर के ऊपर तथा दाहिना पैर महापदम्म के ऊपर है। मूर्ति की ऊँचाई करीब बारह फुट है। देवी के बाएं हाथ मे खड्ग और दाहिने हाथ में पंचशूल है। दोनो कंधों पर नागराज हैं, माथे पर मुकुट। देवी के हाथों में बाला, कानों में कानपाशा, नाक ने नथिया है। माता का त्रिनेत्र उक्त सुंदर आभा मंडल है, परंतु काली माता की तरह जिव्हा बाहर की ओर निकली हुई नहीं है।
विग्रह का रंग हरा है, परन्तु माता का आभामंडल सौम्य और शांत है। माता के विशाल विग्रह के ऊपर राजछत्र लटका हुआ है। इस तरह बुद्ध पूर्णिमा के दिन हजार हाथों वाली काली माता मंदिर की स्थापना हुई थी। इस काली मंदिर में आज तक जीवित पशु की बलि प्रथा नहीं है।यूँ तो मंदिर में नित्य ही दोनो समय पूजा अर्चना होती है, परंतु साल में दो दिन, बुद्ध पूर्णिमा को स्थापना दिवस पर और काली पूजा के दिन इस मंदिर में माँ काली की पूजा करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इस दो दिन मंदिर की भव्यता देखते बनती है।
आज भी आशुतोष मुखर्जी के परिवार द्वारा ही इस मंदिर की सेवा की जाती है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर काफी जाग्रत है, माँ काली भक्ति भाव से माँगने वालों को खाली हाथ नहीं लौटाती है।
श्रावण माह के शुक्लपक्ष पर देवी को तमिल भोग लगाया जाता है : मंदिर के बाहर मंदिर का नाम बंगला, हिंदी, अंग्रेजी के अलावा दक्षिण भारतीय भाषा में भी लिखा है। दक्षिण की प्रसिद्ध गायिका शुभलक्ष्मी भी यहाँ माता का दर्शन करने आ चुकी है, साथ ही अनेको तमिल भक्त इस मंदिर में आते रहते हैं। श्रावण महीने के पावन पक्ष पर शुक्रवार को तमिलनाडु से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। उस दिन माता को विशेष तमिल पकवानों का भोग लगाया जाता है।
उस दिन माता को खट्टा चावल, तीखा चावल, मीठा चावल, सांभर बडा, दही चावल, आलू का फ्राई इत्यादि दक्षिण भारतीय व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। इस मंदिर में प्रतिदिन सुबह 6:30 बजे, दोपहर 2:00 बजे तथा रात 8:00 बजे पूजा, आरती होती है। आरती के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है। माता के भोग में प्रतिदिन मछली, चावल विभिन्न प्रकार के फल और मिठाई चढ़ाई जाती है।