इन सवालों का क्या है जवाब सरकार?

राज कुमार गुप्त

सवाल केंद्र सरकार से ही अधिक है परंतु राज्य सरकारें भी अपनी-अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती हैं और सवाल भी ऐसे-ऐसे हैं जिन्हें आप को सरकार से पूछने से पहले, अगर आप किसी पार्टी का चश्मा पहने हुए हैं तो उसे खोल कर अलग रखना होगा तभी आप स्वहित में, जनहित में और देशहित में समस्याओं को देख सकेगें और सवाल पूछ सकेगें। कारण अगर आप सत्ताधारी पार्टियों के चश्मे से देखेंगे तो चारों ओर हरियाली ही नजर आएगी।

  • अतः चश्मा उतारो फिर देखो यारो आधी हक़ीकत आधा फसाना!
  • कोरोना की गाइडलाइन सभी दलों की रैलियों या चुनाव प्रचार पर क्यों नहीं लागू होती?
  • जब देश में केंद्र या राज्य सरकारों का चुनाव समय पर हो सकता है तो नौकरी में भर्ती की परीक्षा समय पर क्यों नहीं हो सकती?
  • 21वीं सदी की 21 साल गुजर रही है आज भी सभी पार्टियां बेरोजगारी, शिक्षा स्वास्थ्य जैसे मसलों पर चुनाव ना लड़ के धार्मिक, जातीयता या छेत्रीयता के नाम पर चुनाव लड़ रही है क्यों?
  • * शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निजी संस्थाओं द्वारा लूट पर कोई भी सरकार गाइडलाइन क्यों नहीं जारी करती?
  • रिसाइकल नहीं होने वाले प्लास्टिक उत्पादों या गुटका उत्पादों को बैन करने के बजाय सिर्फ जनता से ही इस्तेमाल न करने का आग्रह या दुकानदारों पर जुर्माना क्यों?
  • सांसदों द्वारा सांसद निधि का क्षेत्र में सही इस्तेमाल ना करना या फंड केंद्र में वापस लौट जाना।
  • विधायकों, पार्षदों, ग्राम प्रधानों और मुखियाओं द्वारा भी निधि का दुरुपयोग करना या फंड वापस केंद्र को लौट जाना।
  • कुछ राज्य सरकारों द्वारा जनहित की केंद्रीय योजनाओं को अपने-अपने राज्यों में लागू ना करना और अपनी विफलताओं का दोष हमेशा केंद्र पर थोपना।
  • केंद्र में चाहे जिस किसी भी पार्टी की सरकार रही हो। इसमें बंगाल अब तक अब्बल नंबर पर रही है।
  • जनता के सेवक कहलाने वाले सांसदों, विधायकों को कार्यकाल खत्म होने के बाद पेंशन क्यों?
  • ऐसे और भी अनगिनत मुद्दे हैं साहेब जिन्हें आप अपनी-अपनी पार्टियों के चश्मों को खोलकर देखिए आपके आसपास मुँह चिढ़ाती हुई खड़ी मिलेगी और इन्हें तभी महसूस कर सकते हैं जब आप खुली हुई अपनी ही आंखों से देखेंगे वरना आजादी के बाद से 74 वर्षो से पार्टी के चश्मे से तो देख ही रहे हैं।
  • इस तरह के और भी जितनी समस्याएं या मुद्दे हैं इन सभी को हमें अपने-अपने स्तर पर विभिन्न सामाजिक मंचों से, अखबारों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया के माध्यम से उठाते रहना होगा, यदि आप किसी पार्टी के पदाधिकारी या सक्रिय कार्यकर्ता है तो अपने पार्टी के अंदर या मंचों पर भी इन मुद्दों को उठा सकते हैं।
  • जब तक देश की बहुसंख्यक जनता जागृत नहीं होगी तब तक ज्यादातर सरकारी नौकरी करने वाले लोग और जनता के सेवक कहलाने का दावा करने वाले ज्यादातर नेतागण देश के नागरिकों के मालिक और माई बाप बने रहेंगें और अपनी तिजोरी भरते रहेंगे।

(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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