लखनऊ बुक फेयर के माध्यम से रविंद्रालय पर बने महत्त्वपूर्ण कलाकृति बनी चर्चा का विषय

– उत्तर प्रदेश में आधुनिक कला जगत का प्रतिनिधित्व करती कलाकृतियों के रखरखाव आवश्यक है
– लखनऊ मे आधुनिक कला संग्रहालय भी बनाया जाये और अनेक महान कलाकारों की कला कृतियों की संरक्षण और दस्तावेजीकरण करते हुए राष्ट्रीय सम्पदा मे भी शामिल किया जाना चाहिए और पर्यटन की दृष्टि से भी इसे रेखांकित किया जाये

लखनऊ। जैसा कि कला जगत इस वर्ष 2024 में देश के प्रख्यात कलाकार के.जी. सुब्रमण्यन की जन्मशती मना रहा हैं। इस असाधारण व्यक्ति के जीवन और विरासत का सम्मान करना उचित है क्योंकि के.जी. सुब्रमण्यन एक उत्कृष्ट शिक्षक, उल्लेखनीय कलाकार और भारतीय आधुनिक कला के एक अग्रणी दूरदर्शी रहे हैं। उनका प्रभाव हमेशा प्रेरणादायक बना रहता है, जो उनकी कलात्मक दृष्टि के स्थायी महत्व और उनके रचनात्मक प्रयासों की कालातीत प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। इसी को ध्यान में रखते हुए शनिवार को शुरू हुए लखनऊ बुक फेयर में कलाकारों द्वारा इस महान् कलाकार की अद्वितीय किन्तु उपेक्षित पड़ी कलाकृति की ओर ध्यान आकर्षित कर एक महत्वपूर्ण कार्य किया है।

चूँकि के.जी. सुब्रमण्यन की जन्मशती वर्ष पर देश भर में कई महत्त्वपूर्ण कलात्मक गतिविधियां हो रही हैं इसी तत्वावधान में लखनऊ उत्तर प्रदेश में भी कलाकार सुब्रमण्यन को उनके द्वारा 1963 में रविंद्रालय पर बनाई गयी महत्त्वपूर्ण टेराकोटा म्यूरल “किंग ऑफ द डार्क चेम्बर (9×91फीट)” के माध्यम से याद कर रहे हैं। इस अवसर पर पुस्तक मेले में इस कलाकार और कलाकृति से जुड़ी जानकारियों को प्रदर्शित किया गया है। पुस्तक मेले के उद्घाटन समारोह में आये मुख्य अतिथि महेश कुमार गुप्ता आईएएस एसीएस उत्तर प्रदेश सरकार ने भी अवलोकन किया।

चित्रकार, क्यूरेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि यह वर्ष कला जगत के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। पद्मश्री,पद्म भूषण एवं पद्म विभूषण से सम्मानित विश्व विख्यात भारतीय कलाकार कल्पथी गणपति सुब्रमण्यन (के जी सुब्रमण्यन) (15 फरवरी 1924 – 29 जून 2016) का इस वर्ष जन्मशती वर्ष है। हम उनके असीम रचनात्मक प्रतिभा को याद करते हैं। हम गर्व महसूस करते हैं कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चारबाग स्टेशन के सामने बने रवींद्रालय पर महत्वपूर्ण कलाकृति बनाया गया है। यह राष्ट्रिय ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्त्वपूर्ण है। यह भित्तिचित्र के जी सुब्रमण्यन के करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

रवींद्रनाथ टैगोर के नाटक किंग ऑफ द डार्क चैंबर पर आधारित, यह टैगोर के लिए एक व्यक्तिगत श्रद्धांजलि है, जिन्होंने गांधी के साथ उनके जीवन और विचारों पर एक महान प्रभाव डाला था, और सामान्य रूप से थिएटर और कला के कार्य पर एक रूपक बनाया था। यह म्यूरल करीब 13000 छोटे छोटे ग्लेज्ड टैराकोटा के डिजाइन दार ब्लॉक का 9 फूट बाई 81 फुट, एक विराट कला का उत्तम संयोजन का उदाहरण है। यह म्यूरल कला साहित्य संस्कृति नजाकत भरे लहजे के लखनउ शहर की धरोहर है। इसे सहेज कर रखना जरुरी है। मेरी जिम्मेवार संस्था से अपील है की इस राष्ट्रीय धरोहर का अच्छे से रख रखाव करे तथा भविष्य में आने वाली कलाकार पीढ़ी को कला दर्शन और प्रेरणा मिले। साथ ही प्रदेश के कलाकारों की हार्दिक इच्छा भी है कि लखनऊ मे आधुनिक कला संग्रहालय भी बनाया जाये और अनेक महान कलाकारों की कला कृतियों की संरक्षण और दस्तावेजीकरण करते हुए राष्ट्रीय सम्पदा मे भी शामिल किया जाना चाहिए और पर्यटन की दृष्टि से भी इसे रेखांकित किया जाये।

अंत में, के.जी. सुब्रमण्यन की कलात्मक यात्रा भारतीय कला और संस्कृति की स्थायी विरासत के प्रमाण के रूप में कार्य करती है। उनका गहन योगदान कलाकारों और उत्साही लोगों को समान रूप से प्रेरित करती है, जो तेजी से विकसित हो रहे वैश्विक परिदृश्य में भारतीय कलात्मक परंपराओं की कालातीत प्रासंगिकता की पुष्टि करता है।

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