बक्साहा के जंगल का मानव जीवन पर प्रभाव

  • वैश्विक स्तर पर ओजोन स्तर में क्षरण के प्रभाव से जीवों की इम्यूनिटी क्षीण होगी एवं लाइलाज बीमारियां उत्पन्न होंगी
  • क्षेत्र में अराजकता, नक्सलवाद एवं आतंकवाद पनपेगा
डॉ अश्वनी कुमार दुबे,  पर्यावरणविद
खजुरहो, छतरपुर, मध्यप्रदेश, भारत

बक्साहा जंगल भौगोलिक सीमा छतरपुर, सागर और दमोह जिले के अंतर्गत आता है। पर्यावरणीय, आर्थिक, वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, शैक्षणिक, सौंदर्यात्मक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं औषधीय महत्व रखने वाला यह मनोरम स्थल अतुलनीय है। बक्साहा में बहुत से पेड़ पौधों के समुदाय पाए जाते हैं जिनमें संकटापन्न, अतिसंवेदनशील, विरल, संकटग्रस्त, संकटमुक्त एवं मध्यवर्ती जातियों के साथ हजारों कीट पतंगा जो कि पारिस्थितिक तंत्र में पॉलिनेशन की महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं पाये जाते हैं । यह जंगल वैज्ञानिक एवं पर्यावरण दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण तब हो जाती है जब इन पर आश्रित आदिवासियों के लिए वन संपदा जीवन उपार्जन का प्रमुख माध्यम बन जाता है। एक वृक्ष प्रतिदिन 230 लीटर का ऑक्सीजन देता है जिसमें 7 लोगों को प्राणवायु मिलती है।

बक्सवाहा के 382.131 हेक्टेयर जमीन जिसमें वन विभाग के अनुसार लगभग 215875 वृक्षों से आच्छादित है, को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 50 साल के लिए अस्सी हजार करोड़ रुपए में सतना के एक समूह को लीज पर दिए जाने का करार किया है । मानवीय हस्तक्षेप के कारण विकास के नाम पर हमेशा से ही पृकृति को दोहन होता रहा है तो यहां पर भी प्राकृतिक संपदा के साथ-साथ पूरा जैवमंडल प्रभावित होने की प्रबल संभावना बढ़ जाएगी इतना ही नहीं बल्कि यहां के लोगों को रोजगार उपलब्ध भी नहीं हो पाएगा पन्ना जिले में कई सालों से हीरे के उत्खनन का काम एन एम डी सी के किया जा रहा है।

हीरा को तराशने का केंद्र बनाने बनाने के लिए कई बार घोषणा की जा चुकी है उसके बावजूद वहां पर शासन द्वारा इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए और पन्ना जिला हमेशा से पिछड़ता ही जा रहा है। ऐसी स्थिति में बक्सवाहा के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं प्रतीत नहीं होती और यदि कंपनी के द्वारा रोजगार उपलब्ध कराया जाता है तो यह निम्न स्तर चपरासी या सफाई कर्मचारी के रोजगार स्थानीय स्तर पर करते हैं। अधिकारी अधिकांशतः बाहर के रहते हैं।

जंगल पारिस्थितिकीय तंत्र के माननीय हस्तक्षेप से यहां का भूजल स्तर निम्न हो जाएगा । जमीन बंजर होने लगेगी। मृदा, वायु और जल प्रदूषण बढ़ेगा। भारी तादाद में जंगल कटने से तापक्रम में वृद्धि होगी। प्राकृतिक आपदाएं बढेंगी। बाढ़ आने की संभावना होगी और तो और कोविड 19 से भी भयंकर बीमारियां इस क्षेत्र में पनपने लगेगी जो मानव जाति के लिए खतरनाक साबित होगी। ऑक्सीजन संकट गहराने लगेगा। जलवायु परिवर्तन से कृषि कार्य प्रभावित होगा। पर्यावरण असंतुलित होने लगेगा।

वैश्विक स्तर पर ओजोन छिद्र पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा परिणामस्वरूप ओजोन के प्रभाव से मानव एवं अन्य जीवों की इम्यूनिटी क्षीण होगी जिससे लाइलाज बीमारियां उतपन्न होंगी। मजदूरों एवं किसानों के साथ स्थानीय पलायन बढ़ेगा। रोजगार न मिलने से क्षेत्र में अराजकता, नक्सलवाद एवं आतंकवाद की संभावना भी बढ़ सकतीं है। भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए कई शासकीय एवं अशासकीय अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संस्थाओं के कार्य करने के बावजूद भी पेड़ पौधों की महत्वपूर्ण जातियां विलुप्त हुई हैं।

छतरपुर जिले के अलावा भारत के विभिन्न स्थानों पर पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठन एवं व्यक्तियों को अपने पर्यावरण संरक्षण करने की चिंता सताने लगी है। पृकृति आधारित विकास माॅडल तैयार कर यहां के क्षेत्र का विकास किया जा सकता है ।
केंद्र, राज्य और स्थानीय शासन प्रशासन को चाहिए कि इस विशाल पारिस्थितिक मंडल को बचाने का सकारात्मक प्रयास करना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण कर्तव्य हमारा।

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