हिंदी दिवस पर विशेष : राष्ट्रभाषा हिंदी की वर्तमान दशा- दिशा

शोधार्थी, कलकत्ता विवि

राष्ट्रभाषा का शाब्दिक अर्थ है राष्ट्र की भाषा, जो भाषा देश के बहुसंख्यक लोगों द्वारा व्यवहार में लायी जाती है। भारत की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। किंतु सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही अघोषित रूप से भारत की राष्ट्रभाषा है और यह कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं व बोलियों की जननी है।

भारत की राजभाषा के रूप में हिन्दी
हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में 14 सितम्बर सन् 1949 को स्वीकार किया गया। इसके बाद संविधान में राजभाषा के सम्बन्ध में धारा 343 से 352 तक की व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये 14 सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

धारा 343(1) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) होगा। संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं।

{संविधान का अनुच्छेद 120} किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है।

हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किये जाने का औचित्य

हिन्दी को राजभाषा का सम्मान कृपापूर्वक नहीं दिया गया, बल्कि यह उसका अधिकार है। यहां अधिक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है, केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा, जो उन्होंने एक ‘राष्ट्रीय भाषा’ के लिए बताये थे-

(1) अमलदारों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।

(2) उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए।

(3) यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों।

(4) राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए।

(5) उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए।

इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है।

अनुच्छेद 343. संघ की राजभाषा

1.संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।

2.खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था ।

अनुच्छेद 351. हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश

संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।

राजभाषा आयोग

संविधान के अनुच्छेद 344 में राष्ट्रपति को राजभाषा आयोग को गठित करने का अधिकार दिया गया है। राष्ट्रपति अपने इस अधिकार का प्रयोग प्रत्येक दस वर्ष की अवधि के पश्चात् करेंगे। राजभाषा आयोग में उन भाषाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं। इस प्रकार राजभाषा में 18 सदस्य होते हैं।

राजभाषा आयोग का कार्य

राजभाषा आयोग का कर्तव्य निम्नलिखित विषयों पर राष्ट्रपति को सिफ़ारिश देना होता है—

•              संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा के अधिकारिक प्रयोग के विषय में,

•              संघ के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेज़ी भाषा के प्रयोग के निर्बन्धन के विषय में,

•              उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में और संघ की तथा राज्य के अधिनियमों तथा उनके अधीन बनाये गये नियमों में प्रयोग की जाने वाली भाषा के विषय में,

•              संघ के किसी एक या अधिक उल्लिखित प्रयोजनों के लिए प्रयोग किये जाने वाले अंकों के विषय में,

•              संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच अथवा एक राज्य तथा दूसरे राज्यों के बीच पत्राचार की भाषा तथा उनके प्रयोग के विषय में, और

•              संघ की राजभाषा के बारे में या किसी अन्य विषय में, जो राष्ट्रपति आयोग को सौंपे।

राष्ट्रपति ने अपने इस अधिकार का प्रयोग करके 1955 में राजभाषा आयोग का गठन किया था। बी. जी. खेर को उस समय राजभाषा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इस आयोग ने 1956 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी थी।

राजभाषा पर संयुक्त संसदीय समिति

राजभाषा आयोग की सिफ़ारिशों पर विचार करने के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाता है। इस समिति में लोकसभा के 20 तथा राज्यसभा के 10 सदस्यों को शामिल किया जाता था। संसदीय समिति राजभाषा आयोग द्वारा की गयी सिफ़ारिशों का पुनरीक्षण करती है।

राज्य की भाषा

संविधान के अनुच्छेद 345 के अधीन प्रत्येक राज्य के विधानमण्डल को यह अधिकार दिया गया है कि वह संविधान की आठवीं अनुसूची में अन्तर्विष्ट भाषाओं में से किसी एक या अधिक को सरकारी कार्यों के लिए राज्य भाषा के रूप में अंगीकार कर सकता है।, किन्तु राज्य के परस्पर सम्बन्धों में तथा संघ और राज्यों के परस्पर सम्बन्धों में संघ की राजभाषा को ही प्राधिकृत भाषा माना जाएगा। 10 राज्यों .प्र., म.प्र., बिहार, झारखण्ड, छत्तिसगढ, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखण्ड व हिमाचल प्रदेश की राजभाषा हिंदी है।

न्यायालयों तथा विधानमण्डलों की भाषा

संविधान में प्रावधान किया गया है कि जब तक संसद द्वारा क़ानून बनाकर अन्यथा प्रावधान न किया जाए, तब तक उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की भाषा अंग्रेज़ी होगी और संसद तथा राज्य विधानमण्डलों द्वारा पारित क़ानून अंग्रेज़ी में होंगे। किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की अनुमति से उच्च न्यायालय की कार्रवाई को राजभाषा में होने की अनुमति दे सकता है।

राजभाषा हिन्दी की विकास-यात्रा

स्वतंत्रता पूर्व

1833-86 : गुजराती के महान कवि श्री नर्मद (1833-86) ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार रखा।

1872 : आर्य समाज के संस्थापक महार्षि दयानंद सरस्वती जी कलकत्ता में केशवचन्द्र सेन से मिले तो उन्होने स्वामी जी को यह सलाह दे डाली कि आप संस्कृत छोड़कर हिन्दी बोलना आरम्भ कर दें तो भारत का असीम कल्याण हो। तभी से स्वामी जी के व्याख्यानों की भाषा हिन्दी हो गयी और शायद इसी कारण स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश की भाषा भी हिन्दी ही रखी।

1893 : काशी नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना

1918 : मराठी भाषी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से घोषित किया कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी।

1935 : मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री रूप में सी० राजगोपालाचारी ने हिन्दी शिक्षा को अनिवार्य कर दिया।

स्वतंत्रता के बाद

14.09.1949  संविधान सभा ने हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। इस दिन को अब हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

1971 सरकार के आदेशों और कानूनो के हिंदी अनुवाद हेतु केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो का गठन।

1977 श्री अटल बिहारी वाजपेयी, तत्कालीन विदेश मंत्री ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को हिंदी में संबोधित किया।

1986 कोठारी शिक्षा आयोग की रिपोर्ट। 1968 में पहले ही यह सिफारिश की जा चुकी थी कि भारत में शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाएं होनी चाहिए। उच्च शिक्षा के माध्यम के संबंध में नई शिक्षा नीति (1986) के कार्यान्वयन – कार्यक्रम में कहा गया – “ स्कूल स्तर पर आधुनिक भारतीय भाषाएं पहले ही शिक्षण माध्यम के रूप में प्रयुक्त हो रही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि विश्वविद्यालय के स्तर पर भी इन्हें उत्तरोत्तर माध्यम के रूप में अपना लिया जाए।

1986-87 इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार प्रारम्भ किए गए।

2000 राजभाषा विभाग का पोर्टल का लोकार्पण किया गया जिसमें विभाग से संबंधित विभिन्न जानकारियां द्विभाषिक रूप में उपलब्ध कराई गई ।

2003 मंत्रिमंडल ने एन.डी.ए. तथा सी.डी.एस. की परीक्षाओं में प्रश्न पत्रों को हिंदी में भी तैयार करने का निर्णय लिया।

2004 मातृभाषा विकास परिषद् द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने यह पाया कि वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के गठन का उद्देश्य हिंदी एवं अन्य आधुनिक भाषाओं के लिए तकनीकी शब्दावली में एकरूपता अपनाया जाना है। यह एकरूपता तकनीकी शब्दावली के प्रयोग के लिए आवश्यक है। उच्चतम न्यायालय ने निदेश दिया कि आयोग द्वारा बनाई गई तकनीकी शब्दावली भारत सरकार के अंतर्गत एन.सी.ई.आर.टी तथा इसी प्रकार की अन्य संस्थाओं द्वारा तैयार की जा रही पाठय पुस्तकों में प्रयोग में लाई जाए।

2004-05 कंप्यूटर की सहायता से हिंदी स्वयं सीखने के लिए कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार करवा कर उसके निशुल्क प्रयोग के लिए उसे राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।

2005 कम्प्यूटर पर हिंदी के सुगम प्रयोग हेतु 525 हिंदी फोंट, फोंट कोड कनवर्टर, अंग्रेजी – हिंदी शब्दकोश, हिंदी स्पेल चेकर को निशुल्क प्रयोग के लिए वेब साइट पर उपलब्ध करा दिया गया।

मंत्र-राजभाषा अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद सॉफ्टवेयर लघु उद्योग एवं कृषि क्षेत्रों के लिए प्रयोग एवं डाउनलोड हेतु राजभाषा विभाग की वैब साइट पर उपलब्ध करा दिया।

मार्च 2014 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक परिपत्र जारी कर सरकारी विभागों व मंत्रालयों को सोशल मीडिया पर हिंदी को प्रमुखता देने को कहा, जिस पर कई गैर-हिंदी भाषी राज्यों ने विवाद खडा कर दिया।

2014 में ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को हिंदी में सम्बोधित किया।

इंटरनेट पर हिंदी के इस्तेमाल को बढावा देने के लिये देवनागरी में .भारत डोमेन की शुरुआत की गयी।
नई शिक्षा नीति 2020 भारत की शिक्षा नीति है। इसे भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को घोषित किया गया। यह भारतीय शिक्षा प्रणाली को 1986 में जारी हुई नई शिक्षा नीति के बाद पहला नया बदलाव प्रदान करती है। नयी शिक्षा नीति के अंतर्गत शिक्षण के माध्यम के रूप में पहली से पांचवीं तक मातृभाषा का इस्तेमाल किया जायेगा।

निश्चित रूप से हिंदी देश की राष्ट्रभाषा है किंतु प्रांतीय भाषाओं का भी अपना महत्व है। देश में 75 करोड से अधिक लोग हिंदीभाषी हैं तथा 10 राज्य उ.प्र., म.प्र., बिहार, झारखण्ड, छत्तिसगढ, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखण्ड व हिमाचल प्रदेश हिंदीभाषी राज्य माने जाते हैं जहां की राजभाषा हिंदी है। इसके अतिरिक्त गुजरात, महराष्ट्र, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, प. बंगाल, असम आदि में भी हिंदी भाषियों की पर्याप्त संख्या है। इसलिये राजनीतिक दल हिंदी पर ज्यादा जोर देते हैं और उन्हे लुभाने का प्रयास करते हैं।

साहित्य, संस्कृति के क्षेत्रों में शिखर छूने के बावजूद ज्ञान-विज्ञान, प्रबंधन, प्रौद्योगिकी, वाणिज्य, उद्योग आदि क्षेत्रों में हिंदी का उपयोग सीमित है। जबकि आज के युग में भाषा का बहुआयामी होना उसके विस्तार के लिये बहुत आवश्यक है। सरकार ने हिंदी कम्प्यूटर पर हिंदी के सुगम उपयोग हेतु हिंदी फोंट, फोंट कोड कनवर्टर, अंग्रेजी – हिंदी शब्दकोश, हिंदी स्पेल चेकर को निशुल्क प्रयोग के लिए वेब साइट पर उपलब्ध कराया है।

शासकीय स्तर पर खासकर तकनीकी, न्यायालयीन, कर राजस्व आदि क्षेत्रों में मान्य मानक शब्दावली की हिन्दी में अनुपलब्धता ने राजभाषा के प्रयोग में बड़ी बाधा खड़ी की हुई है। संवैधनिक सिथति के अनुसार विभिन्न मंत्रालयों द्वारा राजभाषा हिंदी को विभिन्न क्षेत्रां जैसे-, चिकित्सा, मानविकी, रेल, सूचना व प्रसारण-विज्ञान, गणित, डाक व तार आदि की तकनीकी पारिभाषिक शब्दावली की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है। हिंदी टाइपराइटर, टेलीप्रिंटर, कम्प्यूटर आदि की सहायता से भी कार्यालयी स्तर पर राजभाषा हिंदी को बढ़ावा दिया जा रहा है। परंतु वर्तमान स्थिति को पूरी तरह संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। हिंदी दिवस मना लेना ही पर्याप्त नहीं है। इसका व्यापक प्रचार व अनुप्रयोग आवश्यक है।

हिंदी के राष्ट्रभाषा रूप की अवधरणा मुख्यत: राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान विकसित हुर्इ। संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्रा में बांध्ने, और अपनी जातीय असिमता को जगाकर स्वतंत्राता प्राप्त करने की प्रेरणा देने के लिए सभी राजनेताओं, विद्वानों व साहित्यकारों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया। यह हमारी विडंबना रही है कि देश में राजभाषा के रूप में हिन्दी को संविधान लागू होने के पूर्व कभी भी आधिकारिक मान्यता नहीं मिली थी। मुगलों के समय राजभाषा के रूप में अरबी-फारसी का बोलबाला था, तो अंग्रेजों ने अंग्रेजी और उर्दू को राजकाज चलाने में इस्तेमाल किया। दरअसल, हिन्दुस्तान में हिन्दी जनभाषा के रूप में मान्य रही और पुष्ट होती चली गई।

1935 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में गंधीजी ने कहा था कि “ विभिन्न प्रांतो के पारस्परिक सम्बंध के लिये हम हिंदी सीखें, ऐसा करने से हिंदी के प्रति हमारा कोई पक्षपात प्रकट नही होता। हिंदी को हम राष्ट्रभाषा मानते हैं और वह राष्ट्रीय होने के लायक है।“ किंतु आज भी सरकार ने राष्ट्रभाषा के रूप में राजभाषा को स्वीकार नहीं किया है, मगर जनता ने इसे राष्ट्रभाषा के रूप में अंगीकार ‍कर लिया है। इसकी व्यापक स्वीकृति शीघ्र इसे विश्वभाषा का दर्जा प्रदान करवा देगी।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की प्रसिद्ध कविता मातृभाषा के प्रति का यह दोहा हिन्दी सम्बन्धित आन्दोलनों और आयोजनों में अनगिनत बार प्रेरणास्रोत की तरह उद्धृत किया जाता रहा है, जो आज भी हमें अपनी मतृभाषा के प्रचार-प्रसार के लिये अग्रसर रहने को प्रेरित करता है-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।

रामअशीष प्रसाद
संपादक
कोलकाता हिंदी न्यूज़.कॉम

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