हिन्दी की दशा एवं दिशा

प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” । हिंदी का प्रयोग करना चाहिए — यह राजनीतिज्ञों और अधिकारियों का आप्तवचन है — होना भी चाहिए। प्रयोग शब्द राजभाषा के लिए वैसे तो उचित नहीं क्योंकि प्रयोग यह संकेत देता है कि हिंदी हमारे पास नहीं रही उसे किसी रूप में प्रयोग में लाना चाहिए — वास्तविकता यही है। बाजार भाषा के रूप में अब अंग्रेजी ही मुख्य भाषा है। हम अंग्रेजी के बिना बाजार में एक पग नहीं चल सकते। कभी अपनी भाषा देखें — बाजार में हिंदी केवल अनुपूरक है वह भी उनकी लिए जिनको अंग्रेजी नहीं आती। बाजार में अशिक्षित भी हिंदी प्रयोग करे तो कोई सामान नहीं मिलेगा।

महान राष्ट्रवादियों के उत्पाद के ऊपर चिपके पर्चे भी शुद्ध रोमन में होते हैं। बाजार से हिंदी गायब है।सामाजिक समारोहों यहाँ तक कि शादी आदि में भी हिंदी केवल भाँवर डलवाती है — शेष सारे कार्य अंग्रेजी शब्दावली में। साहित्य जो स्वयं को भाषा का संरक्षक मानता है ग़ज़ल के नाम पर या तो उर्दू में है या अंग्रेजी में। अब तो पुस्तकों का नाम भी अंग्रेजी में होने लगा है। खेती किसानी में तो अंग्रेजी का पहले से ही बोलबाला है। पूरी कृषक शब्दावली अंग्रेजी की है। ज्ञान विज्ञान तो पहले से ही हिंदी से घृणा करते थे।

प्रश्न यह है कि हिंदी का प्रयोग करें तो जीवन के किस क्षेत्र में। जब सारी शब्दावली ही मर गयी, मजदूर लेबर हो गये, परंपरागत औजार गायब हो गये, ग्रोसरी और गैजेट दुकान में आ गये तो हिंदी में कहने के लिए बचा क्या? लिखें चाहे रोमन में या देवनागरी में शब्दावली तो अंग्रेजी के हैं। जब हमारे शब्द मरने लगते हैं तो भाषा को कोई नहीं बचा सकता हम केवल प्रयोग कर सकते हैं बोल नहीं सकते।

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प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”
युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार

युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
ईमेल : prafulsingh90@gmail.com

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