अस्सी घाट पर पैर रखा है ना तुलसी मैं नाही कबीरा

  • अपनी भाषा और संस्कृति की उपासना करना भी राष्ट्र उपासना करने के समान है

उज्जैन। हर व्यक्ति को अपनी मातृभाषा का उपयोग संरक्षण संवर्धन तथा उसमें साहित्य सर्जन करना चाहिए यह उत्तरदायित्व साहित्यकारों का विशेष रूप से बनता है। उपयुक्त उदगार राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अपने दो वरिष्ठ सदस्यों नागरी लिपि परिषद के अध्यक्ष दिल्ली के डॉक्टर हरिसिंह पाल एवं इंदौर के हिंदी परिवार के अध्यक्ष के हरेराम वाजपेई के जन्मदिवस पर मालवीएवं निमाड़ी कवि सम्मेलन में व्यक्त किए।

इस अवसर पर उज्जैन के डॉक्टर शैलेंद्र शर्मा ने कहा कि दोनों साहित्यकार भाषा साहित्य के उपासक हैं पुणे से डॉक्टर शहाबुद्दीन शेख ने कहा कि नागरी लिपि और हिंदी साहित्य सेवियो का जन्मदिन क्षेत्रीय भाषाओं को सम्मान देने के साथ आयोजित किया गया यह प्रशंसनीय कार्य है। कार्यक्रम की प्रस्तावना महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने विस्तार से बताई। दोनों साहित्यकारों के कृतित्व व व्यक्तित्व पर ओस्लो नार्वे से सुरेश चंद्र शुक्ल मुंबई से सुवर्णा जाधव भुवनेश्वरी जायसवाल आदि ने अपने उद्गार व्यक्त किए।

कवि सम्मेलन में श्रीराम शर्मा परिंदा वीरेंद्र द सोंधी निमाड़ी में तथा डॉ. शशि कला अवस्थी भोली बहन डॉ. शशि निगम एवं भीम सिंह पवार ने मालवीय में रचनाएं सुनाई जिनमें विभिन्न विषयों को प्रस्तुत किया इनके अलावा विजय शर्मा आदि ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। सम्मान संदर्भ उद्गार व्यक्त करते हुए डॉक्टर पाल ने कहा कि मातृभाषा की सेवा करना उत्कृष्ट रूप से जन्मदिन मनाना है।

साहित्यकार हरेराम वाजपेई ने धन्यवाद के साथ अपनी दो पंक्तियां सुनाई। अस्सी घाट पर पैर रखा है ना तुलसी में ना ही कबीरा। सुख-दुख को सामान माना है क्या कृष्णा क्या मीरा। कार्यक्रम का संचालन रायपुर से डॉ. पूर्णिमा कौशिक ने किया उन्होंने दोनों साहित्यकारों की जीवन पर एक छोटी सी फिल्म भी प्रस्तुत की जिसे सभी लोगों ने बहुत सराहा। अंत में आभार महाराष्ट्र के डॉक्टर बालासाहेब तोरस्कर ने व्यक्त किया। इस आभासी कार्यक्रम में डॉक्टर जी डी अग्रवाल डॉ. वीके जैन संस्था अध्यक्ष वीके शर्मा डॉ. रश्मि चौबे मुक्ता कौशिक सविता इंगले आदि कई साहित्यकारों ने सहभागिता की।

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