नई दिल्ली । हरितालिका व्रत का पालन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को सधवा महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र और कुंवारी लड़कियों द्वारा सुंदर, सुशील, धनवान वर की कामना हेतु किया जाता है। चूंकि इस व्रत में पूरे 24 घंटे निराहार और निर्जला रहा जाता है, इसलिए यह अत्यंत कठिन व्रत तो है ही, इसमें मुझे कभी कोई संशय नहीं रहा है।
हालांकि इस व्रत कथा की पुस्तिका का पहला पृष्ठ यह दावा करता है कि कथा सरल हिंदी में लिखी गई है। लेकिन आज मैंने व्रत कथा जरा ध्यान से और पूरे मन से पढ़ी तो पाया कि संस्कृत के श्लोकों, दोहों और चौपाइयों के साथ साथ इस कथा में –
“व्रत माहात्म्य, उद्यापन विधि, भविष्योत्तर, अनुष्ठान, कदली स्तंभ, शोडषोपचार, ब्रह्मरूपिणी, निराजन, दिगंबर, अनुष्टुप, ग्रीष्म ऋतु, अति हर्ष, मुखमंडल, शेषसायी, वाग्दान, व्याकुल, भाद्रपद शुक्ल पक्ष, लज्जायुक्त, अर्धांगिनी, वचनभंग व्रत-अनुष्ठान, स्नानादि, विसर्जित, व्याघ्र, प्राण-विसर्जन, सौभाग्यवती पृथक-पृथक, व्रतराज, सौभाग्यशालिनी, सुवर्ण, चंदोवा, मृदंग, द्रव्य, श्रद्धायुक्त, अर्पण पुष्पांजलि, कुलीन, वैधव्य, पुत्र शोक, शूकरी, उत्तमधाम ”
जैसे हिंदी के अत्यंत क्लिष्ट और तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है।
पुस्तक के लेखक का दावा कुछ भी हो, लेकिन मेरा विचार यह है कि जितना कठिन यह व्रत है, उतनी ही कठिन इस व्रत की हिंदी में कथा भी है। खैर, नारी शक्ति को हरितालिका व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं।