वाराणसी। पूजा समय पर बना है अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त, शत्रु होंगे परास्त। प्रदोष व्रत को करने से सुख, भाग्य, धन आदि बढ़ता है। इस बार गुरु प्रदोष व्रत के पूजा समय पर अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त बना है। माघ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को गुरु प्रदोष व्रत है। प्रदोष व्रत को करने से सुख, भाग्य, धन आदि बढ़ता है। दुख दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। गुरु प्रदोष व्रत करने से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। ऐसे ही जो लोग शनि प्रदोष व्रत रखते हैं, उनको पुत्र की प्राप्ति होती है। दिन अनुसार प्रदोष व्रत का फल भी अलग-अलग होता है। इस बार गुरु प्रदोष व्रत की पूजा के समय अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त बना हुआ है।
गुरु प्रदोष व्रत की तिथि : पंचांग के अनुसार, माघ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 19 जनवरी दिन गुरुवार को दोपहर 01 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 20 जनवरी शुक्रवार को सुबह 09 बजकर 59 मिनट पर होगा। इस व्रत में त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल की पूजा का मुहूर्त महत्वपूर्ण होता है, इसलिए गुरु प्रदोष व्रत 19 जनवरी को ही रखा जाएगा।
गुरु प्रदोष व्रत का पूजा मुहूर्त : इस दिन तो सुबह से ही पूजा पाठ प्रारंभ हो जाता है, लेकिन शाम की पूजा का महत्व है। 19 जनवरी के गुरु प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ समय शाम 05 बजकर 49 मिनट से प्रारंभ है। यह प्रदोष मुहूर्त रात 08 बजकर 30 मिनट तक मान्य है। इस मुहूर्त में विधिपूर्वक भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
गुरु प्रदोष की पूजा समय पर अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त : इस बार गुरु प्रदोष व्रत के पूजा समय पर अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त बना है। यह शाम 05 बजकर 49 मिनट से लेकर शाम 07 बजकर 30 मिनट तक है। यह मुहूर्त पूजा पाठ या शुभ कार्य के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके बाद से चर सामान्य मुहूर्त प्रारंभ हो जाएगा। गुरु प्रदोष व्रत वाले दिन सुबह से ही ध्रुव योग बना हुआ है। यह रात 11 बजकर 04 मिनट तक रहेगा।
गुरु प्रदोष पर शिववास भी : गुरु प्रदोष व्रत के दिन शिववास भी है। इस दिन नंदी पर भगवान शिव का वास दोपहर 01 बजकर 18 मिनट तक है। शिववास रुद्राभिषेक के लिए महत्वपूर्ण होता है। जिस दिन शिववास होता है, उस दिन ही रुद्राभिषेक कराया जा सकता है। शिववास की भी कई स्थितियां, जिसमें रुद्राभिषेक नहीं होता है।
गुरु प्रदोष व्रत का महत्व : जो लोग अपने विरोधियों या शत्रुओं से परेशान हैं। वे आप पर हावी है, तो उनके प्रभाव को खत्म करने के लिए आप गुरु प्रदोष व्रत रख सकते हैं। इस दिन भगवान शिव की प्रदोष काल में विधिपूर्वक पूजन करें और गुरु प्रदोष व्रत कथा का श्रवण करें। शिव जी की कृपा से आपकों शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी।
गुरु प्रदोष व्रत कथा : एक समय की बात है। वृत्तासुर की सेना ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया, देव और असुरों में भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें असुर सेना हार गई। जब इसकी सूचना वृत्तासुर को हुई, तो वह क्रोधित हो उठा और स्वयं युद्ध करने का निर्णय लिया। वह मायावी था, उसने विकराल रूप धारण कर लिया। उसे देखकर सभी देवता डर गए और भागकर देव गुरु बृहस्पति के शरण में गए। तब देव गुरु बृहस्पति ने वृत्तासुर के बारे में देवताओं को बताया. वृत्तासुर ने गंधमादन पर्वत पर वर्षों तक कठोर तप किया था, जिसके परिणाम स्वरूप भगवान शिव प्रसन्न हुए थे। उससे पूर्व वह राजा चित्ररथ था। वह एक बार कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के पास पहुंचा, वहां उसने माता पार्वती को भगवान शिव के बाएं बैठे देखा, तो उसने उनका उपहास उड़ाया।
तब माता पार्वती ने क्रोधित होकर कहा कि दुष्ट! तुमने उनको और उनके आराध्य भोलेनाथ का अपमान किया है। इस वजह से तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम राक्षस बनकर अपने विमान से नीचे धरती पर गिर पड़ेगा। उस श्राप के कारण ही राजा चित्ररथ राक्षस योनि में चला गया और वह वृत्तासुर बन गया। देव गुरु बृहस्पति ने देवराज इंद्र से कहा कि वृत्तासुर अपने बाल्यकाल से ही भगवान शिव का परम भक्त रहा है। ऐसे में आप सभी देव गुरु प्रदोष व्रत करें और भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करें।
देव गुरु के बताए गए व्रत विधि को ध्यान में रखकर इंद्र देव ने गुरु प्रदोष व्रत विधि विधान से किया। भगवान शिव के आशीर्वाद से देवराज इंद्र ने वृत्तासुर को परास्त कर दिया। उसके बाद से देवलोक में शांति की स्थापना हुई। इस प्रकार से जो भी लोग गुरु प्रदोष व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं, वे अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। शिव कृपा से शत्रुओं को परास्त करने में सफलता मिलती है।
ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848