गोपाल नेवार की कविता : “पिता की दुआ”

पिता की दुआ

*रहना सुखी ससुराल में बेटी*
*लेती जा दुआ मेरी बेटी ।*

*भारी मन से विदा कर रहा हूँ*
*अपनों से जुदा कर रहा हूँ,*
*विधि का विधान ही यही है*
*गलत मुझे न समझना बेटी ।*
*रहना सुखी ससुराल में बेटी—–*

*विदा लेकर चली तो जाओगी*
*घर सारा सुनसान कर जाओगी,*
*मुमकिन नहीं तुम्हें भुला पाना*
*हमारे दिल में सदा रहेगी बेटी ।*
*रहना सुखी ससुराल में बेटी—–*

*बचपन बीता इसी आँगन में तेरी*
*हँसती इठलाती मासूम अदा तेरी,*
*न जाने ऐसा क्यों लग रहा है*
*गोद में अब भी खेल रही है बेटी ।*
*रहना सुखी ससुराल में बेटी—–*

*आ भी जाए याद मायके की कभी*
*पलकों में आँसू न लाना कभी,*
*कर लेना समझौता परिस्थितियों से*
*रख देना लाज हमारी बेटी ।*
*रहना सुखी ससुराल में बेटी—–*

*बदनामी न हो मायके की कभी*
*अनजाने में भी न हो भूल कभी,*
*जीत लेना वहाँ सभी का मन*
*घर की लक्ष्मी कहलाना बेटी।*
*रहना सुखी ससुराल में बेटी—–*

*जो प्यार बाँटी है तूने यहाँ*
*वही प्यार बिखेरती रहना वहाँ,*
*सर्वदा ही दोनों परिवार के बीच*
*श्रद्धा का सेतु बनकर रहना बेटी ।*
*रहना सुखी ससुराल में बेटी—–*

*डोली निकले बाबुल के घर से*
*अर्थी निकले पति देव के घर से*
*यही सुहागन नारी की है पहचान*
*इसी  धर्म पथ पर चलना बेटी ।*
*रहना सुखी ससुराल में बेटी—–*

*गोपाल नेवार,  गणेश   सलुवा ।*

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