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।।ज़िन्दगी का सफ़र।।
गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा
आलिशान महल बना लिए हो
तो क्या हुआ
कीमती गाड़ी खरीद लिए हो
तो क्या हुआ,
यह सारे कल किसीका था
आज तुम्हारा है
फिर कल किसीका हो जाएगा
तो क्या हुआ।
हलवा-पुड़ी, पराठें खाते हो
तो क्या हुआ
शूट-बूट, पहनकर निकलते हो
तों क्या हुआ,
माना समय ने साथ दिया है
आज तुम्हारा है
कोई गरीबी में काट लेते हैं ज़िन्दगी
तों क्या हुआ।
यहां हर सख्श परेशां है
ख़ुद को ऊपर उठाने में
कुछ तो लगे रहते है
औरों को नीचे गिराने में,
इतना जरूर याद कर लेना ज़नाब
भागती-दौड़ती जिंदगी में
कमंबख्त उम्र जो लगे रहते है
ज़िन्दगी को ही तमाम करने में।
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