मैं पिता हूँ
खुशनसीब हूँ कि मैं पिता हूँ
खुशनसीब हूँ कि मैं घर का मुखिया हूँ,
सारा घर का दायित्व मुझ पर है
अपनों के लिए दिन-रात काम करता हूँ
क्योंकि मैं पिता हूँ।
मैं क्या-क्या नहीं सहता हूँ
पर किसीसे कुछ नहीं कहता हूँ,
सारा दुख-दर्द खुद ही सहकर
अपनों को खुश रखता हूँ
क्योंकि मैं पिता हूँ।
बच्चों की माँगे पुरी करता हूँ
ख़्वाहिशों का ख्याल रखता हूँ,
जेब खाली हो जाए तो भी
उधार ही खरीदकर लाता हूँ।
क्योंकि मैं पिता हूँ।
अपनों को मैं बहुत चाहता हूँ
सभी को खुश देखकर खुश होता हूँ
उनके इच्छाओं को पूर्ण नहीं कर पाता
तब मैं बहुत दुखीत हो जाता हूँ
क्योंकि मैं पिता हूँ।
मैं पिता का कर्तव्य निभाता हूँ
इसीलिए तो पिता कहलाता हूँ,
पिता का स्थान कोई नहीं ले सकता
यह बातें सभी को समझाता हूँ
क्योंकि मैं पिता हूँ।
गोपाल नेवार ‘गणेश’ सलुवा