गोपाल नेवार, “गणेश” सलुवा की गज़ल

भूली बिसरी पलों की जब याद आती है
तन्हाई में अपनों की बहुत याद आती है।

तुम्हारे दिए दर्द छलक जाएंगे आँसू बनकर
मिलकर गुजरे वो सारे पल बहुत याद आती है।

मुझसे फासला बडा़कर क्या मिला है तुझको
रात दिन वो हँसी मजाक बहुत याद आती है।

कुछ तुम कुछ हम सह लेते तो क्या होता
पहले लड़कर मिलने की बातें बहुत याद आती है।

हुई हमसे गुनाह अब जाना गुनाह करने के बाद
गुनाह को भूला देने की बातें बहुत याद आती है।

गोपाल नेवार, “गणेश” सलुवा

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