गुरु प्रदोष व्रत की महिमा, कथा पूजन विधि, जानें सब कुछ यहां

दिन के हिसाब से प्रदोष व्रत का महत्व भी अलग अलग होता है
==============================
पं.मनोज कृष्ण शास्त्री, बनारस : प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है। ये व्रत भोलेनाथ को अति प्रिय है और व्यक्ति की हर मनोकामना को पूरा करने वाला है।
प्रदोष व्रत को शास्त्रों में काफी श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है। ये व्रत महादेव को समर्पित है और हर माह कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। दिन के हिसाब से प्रदोष व्रत का महत्व भी अलग अलग होता है। मार्गशीर्ष माह का कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत 2 दिसंबर गुरुवार के दिन रखा जाएगा।
गुरुवार के दिन ये व्रत पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष कहा जाता है। प्रदोष व्रत महादेव को अति प्रिय है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं व सभी कष्टों को दूर करते हैं। शास्त्रों में प्रदोष व्रत को दो गायों के दान करने के समान पुण्यदायी बताया गया है। इस व्रत में शिव की पूजा हमेशा प्रदोष काल में कही जाती है।

गुरु प्रदोष व्रत का महत्व :
================
शास्त्रों में प्रदोष व्रत को लेकर कहा गया है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और भक्त को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि ये व्रत भक्त के भाग्य को जगाने वाला है। इस व्रत को रखने से कुंडली में चंद्र की स्थिति भी मजबूत होती है। इससे व्यक्ति की मानसिक स्थिति बेहतर होती है।

व्रत के दौरान ऐसे करें पूजन :
==================
सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लें। संभव हो तो दिन में आहार न लें। अगर नहीं रह सकते तो फलाहार ले सकते हैं। शाम को प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पहले के समय में भगवान शिव का पूजन करें। पूजन के लिए सबसे पहले स्थान को गंगाजल या जल से साफ करें। फिर गाय के गोबर से लीपकर उस पर पांच रंगों की मदद से चौक बनाएं। पूजा के दौरान कुश के आसन का प्रयोग करें। पूजन की तैयारी करके ईशानकोण यानी उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और भगवान शंकर का ध्यान करें। पूजन के दौरान सफेद कपड़े पहनना अत्यंत शुभ माना जाता है। भगवान शिव के मंत्र ‘ओम नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल, चंदन, पुष्प, प्रसाद, धूप आदि अर्पित करें। इसके बाद प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें। आरती करें और अंत में क्षमायाचना करें। फिर भगवान का प्रसाद वितरण करें।

दिन के मुताबिक मिलता है फल :
====================
1. सोमवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

2. मंगलवार के दिन व्रत रखने से बीमारियों से राहत मिलती है।

3. बुधवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

4. बृहस्पतिवार को व्रत रखने से दुश्मनों का नाश होता है।

5. शुक्रवार को व्रत रखने से शादीशुदा जिंदगी एवं भाग्य अच्छा होता है।

6. शनिवार को व्रत रखने से संतान प्राप्त होती है।

7. रविवार के दिन व्रत रखने से अच्छी सेहत व उम्र लम्बी होती है।

गुरु प्रदोष व्रत कथा :
=============
इस व्रत की कथा के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे। बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे दूं।

वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया। वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- ‘हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।’ चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- ‘हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!’

माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं- ‘अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्‍वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।’ जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना।

गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- ‘वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है अत हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।’ देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई। अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें
जोतिर्विद दैवज्ञ
पं.मनोज कृष्ण शास्त्री
9993874848

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *