रामा श्रीनिवास ‘राज’ की गज़ल

जहाँ हैरतों का शहर कुछ नहीं,
दिलों को वहाँ दर-बदर कुछ नहीं।

चला हूँ खुदी को मनाकर यही,
कटी राह सा हमसफर कुछ नहीं।

खुशी तो मिली जिंदगी भर मुझे,
इजारे तलब का डगर कुछ नहीं।

रहे वास्ता तो सदाया रहे,
गुमां का पता बेखबर कुछ नहीं।

सुकूं भी जरा सी मिले दीद का,
उमीदों से औरे इधर कुछ नहीं।

सितारे कहीं टिमटिमाते नहीं,
वही माँग लेना जिधर कुछ नहीं।

तडप मीन की सीख जाना कभी,
सुनी फितरतें हैं लहर कुछ नहीं।

सफे ‘राज’ कोई लिखा खूब है,
वो आए तो अपनी ख़बर कुछ नहीं।

©रामा श्रीनिवास ‘राज’

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