“मां का जीवन”
मेरी माँ है तो आंगन है,
तुलसी है, घर है..
चूल्हा है, चौक है,
बाजरे की रोटी, गुड़,
दूध-दलिया,
बथुआ का पींडा,
हरा साग है..
आरती की थाली है,
धूप-दीप, संध्या-वंदन..
दादी है नानी है,
मौसी-मामी-बुआ-ताई..
प्रेम है, सद्भावना, वात्सल्य है,
मां की छांव तले
हर दिन उत्सव सा है..
ना कोई चिंता ना फ़िक्र..
दुआएं है, हुलसती आंखों की ममता,
भीगा आँचल है,
माँ से ही परिपूर्ण ये जीवन मेरा है.
-घनश्याम प्रसाद… ✍️