गणिका डाकू और सिपहसलार (व्यंग्य-कथा) : डॉ लोक सेतिया

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

जाने कितने आशिक़ थे उस के जो उसकी अदाओं पर फ़िदा थे। उसका नाच देखते गाना सुनते और उस पर अपनी दौलत उड़ाते रहते। इक डाकू उस से दिल लगा बैठा और उसे कहा बाकी सब को अपने ठिकाने पर आने से रोक दो बस मेरे लिए नाचना गाना होगा। गणिका भला किसी एक की होकर कैसे रहती उसने नगर के सिपहसलार को संदेसा भिजवा कर अपने ठिकाने बुलवा लिया।

जैसे सभी को अपनी सच्ची मुहब्बत का भरोसा दिलवाना जानती थी सिपहसलार को भी अपने प्यार के जाल में फंसा लिया। जब लगा वो पूरी तरह बस में है तो डाकू से बचाने की बात कह दी। सिपहसलार ने अपने कितने राज़ गणिका को बता दिए जिसे जानकर गणिका को लगने लगा कि शायद डाकू उसको माफ़ कर भी दे गलती मानने पर लेकिन ये जो नगर का सुरक्षा का काम करने को नियुक्त किया गया है शासक द्वारा डाकू से अधिक खतरनाक है। काफी समय तक गणिका दोनों से मुहब्बत का दिखावा करती रही निभाती रही अपने ठिकाने पर किसी को भी नहीं आने दिया और उन दो सिरफिरे आशिक़ों से उनके अपनी माशूक़ा को दिए ठिकानों पर मिलती रही।
राजदरबार में गणिका की अच्छी जान पहचान बढ़ती गई और कई रईस नवाब उसको छुपकर अकेले में मिलते रहे। धीरे धीरे गणिका का रुतबा राजा के दरबार से उसके महल तक होता गया। इक गणिका और चाहने वाले तमाम लोग आपसी रंजिश हो गई और बढ़ते बढ़ते जान से मरने का खेल होने लगा। ऐसे में जो कभी नहीं होना संभव था हो गया जब खुद गणिका को कोई इतना भाया कि नगर छोड़ उसके साथ किसी और राजा के राज्य में चली गई।
मगर जाने से पहले डाकू को भी और सिपहसलार को भी खत लिख कर दोनों को दूसरे पर अपहरण करने की धमकी देने की बात बता गई ताकि वो आपस में उलझे रहे और उसे कहीं तलाश नहीं करें। सिपहसलार ने अपने सिपाही डाकू को पकड़ मारने को भेज दिए मगर डाकू को पहले ही जानकारी मिल गई थी और डाकू  गिरोह ने सिपहसलार के सिपाही को मार डाला। ये खबर होते ही सिपहसलार ने जाकर डाकू का ठिकाना तहस नहस कर दिया जब उसको पकड़ नहीं सका।
बस हर तरफ शोर मच गया सिपहसलार के सिपाही डाकू के शिकार हो गए हैं। आखिर उसने इक इक कर डाकू के सारे साथी मौत के घाट उतार डाले मगर सरगना को नहीं पकड़ सका। मगर फिर इक और गणिका ने डाकू को बचाने और सिपहसलार से समझौता करवाने का वादा किया और अपने पास डाकू को हिरासत में पकड़वा दिया। सौदेबाज़ी में कोई गड़बड़ नहीं हुई मगर उस से दूर जाने पर सिपहसलार ने अपनी माशूक़ा गणिका को लेकर पूछा तो बात बिगड़ गई और सिपहसलार के सिपाहियों ने उसके आदेश पर डाकू को कत्ल कर दिया।
जिस गणिका के पास कितने ही राज़ थे उसका कभी कोई पता नहीं चला और राजा ने अपने सिपहसलार को मौत की सज़ा दे दी ये सोचकर कि उसने गणिका को कहीं अपने पास रख लिया है। गणिका अभी भी नाच रही होगी किसी और को खुश करने को जो उसकी बाज़ारी मुहब्बत जो बिकती है सिक्कों की खातिर को असली समझ जान लेने जान देने का खेल खेलने को तैयार हैं।

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