सन 2005 की बात है!!
उस समय मैं कुछ-कुछ वामपंथी था। पूजा पाठ को ढोंग और धर्म (सिर्फ हिंदू धर्म) को अफीम समझता था। एक बार मैं घर से छुट्टी बिताकर वापस आया हुआ था और उस दिन हिंदुओं के पवित्र माह सावन का पहला सोमवार था। श्रीमतीजी ने हमेशा की भांति व्रत रखा हुआ था और सुबह की पूजा के बाद पूजा की थाली लिए हुए मेरे पास आई। मैं यूनीफॉर्म पहनकर ड्यूटी जाने के लिए तैयार बैठा हुआ था। उन्होने एक छोटा सा तिलक मेरे माथे पर लगा दिया।
मैं फटाफट तैयार होकर ऑर्डरली रूम रिपोर्ट करने पहुंच गया। रिपोर्ट करके वापस आते समय कॉरिडोर में एक स्क्वाड्रन लीडर साहब दिखे तो मैंने उन्हें सैलूट किया, उन्होंने भी जवाब दिया और आगे बढ़ गए। पर पता नहीं क्या सोचकर मुड़े और मुझे वापस बुलाया। जैसे ही मैं उनके पास पहुंचा। वे बोले- “तुमने ये क्या नाटक कर रख रखा है?”
“सर, मैंने ऐसा क्या कर दिया!” मैं हतप्रभ था
“Are you supposed to apply Tilak on forehead while in uniform?? “स्क्वाड्रन लीडर साहब ने अपना आरोप स्पष्ट किया।
“सर, एक्चुअली सुबह घर में छोटी सी पूजा थी——” मैंने स्पष्टीकरण देना चाहा।
“So what. I am Brahmin by caste but I do not wear any religious sign while wearing uniform.” स्क्वाड्रन लीडर साहब ने पूरी सेक्युलरिज्म मुझ पर उड़ेल दी।
“सर, मैं अभी इसे हटा दूंगा।” मैंने बात समाप्त की।
“Ok, do it just now and don’t repeat it in future.” स्क्वाड्रन लीडर साहब ने मुझे चेतावनी देकर छोड़ दिया।
“Right Sir” मैंने सैलूट किया और वहां से सीधे बाथरूम गया। शीशे के सामने तिलक पोंछा और वापस जाकर ड्यूटी जॉइन कर लिया।
बात आई-गई हो गई। कुछ वर्षों बाद जब मेरा सेक्युलरिज्म का नशा कुछ कम हुआ तो मैं स्वयं से प्रश्न पूछता कि “मुसलमानों के दाढ़ी रखने” और “सिखों के पगड़ी पहनने” से तो वायुसेना की यूनिफॉर्म की पवित्रता कभी भंग नहीं होती। लेकिन मेरे छोटा सा तिलक लगाने या कलावा पहनते ही सेक्युलरिज्म कैसे खतरे में पड़ जाती है?? क्या सेक्युलरिज्म और यूनीफॉर्म की पवित्रता भी धर्म सापेक्ष है???
फिर अमरीका जैसे विकसित और मॉडर्न देश ने भी हिंदू सैनिकों को यूनीफॉर्म में तिलक लगाने की अनुमति दे रखी है। अभी कुछ दिन पहले भारतीय मूल के वायुसैनिक दर्शन शाह को यूनीफॉर्म के साथ तिलक लगाने की आधिकारिक अनुमति अमरीका की वायुसेना ने दी है। तो क्या इससे अमरीका की वायुसेना कमजोर हो गई या उनके देश का धर्मनिरपेक्ष ढांचा चरमरा गया???
खैर, इन प्रश्नों का जवाब तो मुझे आज तक नहीं मिला। लेकिन चूंकि अब मैं सिविलियन हूँ और हिंदू धर्म में मेरी अटूट आस्था है इसलिए अब किसी भी दिन और विशेषकर सावन के सोमवार को मुझे तिलक लगाने से –
“नो बडी कैन रोक मी”
जय भोलेनाथ।
विनय सिंह बैस (पूर्व धर्मनिरपेक्ष)
(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)