विनय सिंह बैस । बी.आर. चोपड़ा कृत ‘महाभारत’ हमारी किशोरावस्था का सबसे लोकप्रिय धारावाहिक था। प्रत्येक रविवार को सुबह 9 से 10 के बीच दूरदर्शन पर आने वाले इस धारावाहिक का लोगों में जबरदस्त क्रेज था। उस एक घंटे के दौरान शहरों और कस्बों में सड़कें सुनसान हो जाया करती थी। गांव में भी लोग पूरे श्रद्धा भाव से इसे देखा करते थे।
तब मैं लालगंज बैसवारा में पढ़ता था। एक दिन गांव गया हुआ था। सोचा कि अपने बचपन वाले लंगोटिया दोस्त से भी मिलता चलूँ। उसके घर गया तो पता चला कि वह खेतों की तरफ गया हुआ है। चाची बोली- “मुन्ना बैठो। मैं चाय बना देती हूं, वह भी आता ही होगा।”
इस बीच वह यह भी बताती रही कि
इसका तो पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लगता है। किताब हाथ मे लेते ही इसे नींद आने लगती है। तुम खुद ही देखो न, सारी कॉपी- किताबे कैसे मेज पर फैला रखी हैं।
टाइम पास करने के लिए, मैं अपने दोस्त की किताबें यूँ ही उलटने लगा। तभी क्या देखता हूँ कि एक मोटी सी किताब के बीच मे हाथ से लिखा हुआ एक तुड़ा- मुड़ा पुराना सा कागज पड़ा है। उत्सुकतावश उसे खोला तो उसमें लिखा था- “मेरी जान ####
अगर तुम्हें मुझसे सच्चा वाला प्यार है तो कल महाभारत के समय बड़े वाले महुआ के पेड़ के पास मिलना।
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा- xxxx”
उस दिन मुझे पता चला कि महाभारत गांवों में भी बेहद लोकप्रिय है और यह महाकाव्य सिर्फ युद्ध ही नहीं प्रेम भी सिखाता है।
विनय सिंह बैस
रायबरेली वाले