विनय सिंह बैस की कलम से… राजू श्रीवास्तव

नई दिल्ली । मैं कल से ही सोच रहा हूं कि स्टैंड अप कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव के जाने का इतना दुख क्यों है??
क्या इसलिए कि वह हास्य कलाकार थे?
लेकिन हास्य कलाकार तो सेकुलर कपिल शर्मा और तथाकथित मुनव्वर फारूकी जैसे भी है।
नहीं!! मुझे लगता है कि राजू श्रीवास्तव के जाने का दुख इसलिए है की वह फूहड़, कुंठित और एजेंडा वाला हास्य नहीं परोसते थे।

उनके जाने का दुख इसलिए भी है कि उन्होंने प्रसिद्धि किसी गॉडफादर की कृपा से नहीं पाई बल्कि अपनी प्रतिभा और मेहनत से अपने लिए हास्य कला के क्षेत्र में ऊंचा स्थान अर्जित किया। वह हम सबके बीच के, सामान्य परिवार के व्यक्ति थे। इसीलिए वह हमारे आसपास की छोटी-मोटी घटनाओं, शादी-ब्याह, लोकल ट्रेन, बाबा के प्रवचन में हास्य ढूंढ लेते थे।

सजीव की छोड़िए। ट्यूबलाइट, पंखा, भोजन की थाली, मिर्च जैसी निर्जीव चीजों के माध्यम से भी वह दर्शकों को गुदगुदा दिया करते थे।

उनके जाने का दुख इसलिए है कि उनका हास्य आमजन का हास्य था। उनका हास्य तनावग्रस्त पढ़े लिखे, बुद्धिजीवी वर्ग को तो तनाव रहित करता ही था साथ ही गांव-गिरांव के लोगों को, ठेले-खोमचे वालों को, सब्जी, रिक्शा-टेंपो वालों को भी कनेक्ट करता था। ऐसा लगता था कि जैसे राजू श्रीवास्तव उनकी ही कहानी कह रहे हों।

उनके जाने का असीम दुख इसलिए भी है कि वह बड़े मंचों पर भी मेरी अपनी बोली अवधी में चुटकुले सुनाने में बिल्कुल भी संकोच नहीं करते थे। फिर वह अपने कानपुर के तो थे ही।

कॉमेडियन पहले भी हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे। लेकिन राजू श्रीवास्तव जैसा खांटी देशी स्टैंड अप कॉमेडियन अब शायद ही दोबारा देखने को मिले।
अलविदा गजोधर भाई!

(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

Vinay Singh
विनय सिंह बैस

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