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1. सतयुग : एक पौराणिक प्रसंग के अनुसार सबसे पहले ब्रह्मा तथा विष्णु ने ज्योतिर्लिंग के माध्यम भगवान शंकर के ब्रह्मस्वरूप की पूजा की थी। इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने कहा- आज तुमने मेरे चिन्मय स्वरूप का अर्चन किया है। इससे मैं प्रसन्न हुआ हूं। मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम दोनों अपने-अपने कार्यों में सफल हो जाओगे। आज की यह तिथि जगत में ‘महाशिवरात्रि’ के नाम से प्रसिद्ध होगी। इस तिथि में जो मेरे लिंग अथवा मूर्ति की पूजा करेगा, वह पुरुष जगत की उत्पत्ति-पालन आदि कार्य भी कर सकेगा।
2. त्रेतायुग : मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका विजय से पूर्व रामेश्वरम नामक स्थान पर समुद्र के तट पर भगवान शिव की पूरे विधि विधान से पूजा की और परिणामस्वरूप, काल को भी अपने पैरों तले दबाकर रखने वाले महाबली राक्षसराज रावण का वध करने में सफल रहे। तत्पश्चात रामराज्य स्थापित किया। सदियों के बाद आज भी रामराज्य को आदर्श राज माना जाता है।
3. द्वापरयुग : वनवास के दौरान महान धनुर्धर अर्जुन ने वर्तमान में पश्चिम सिक्किम के किरातेश्वर नामक स्थान पर भगवान भोले शंकर का शिवलिंग स्थापित करके कठिन तपस्या की थी। तब भगवान शंकर ने पहले किरात के वेश में आकर अर्जुन की परीक्षा ली और बाद में खुश होकर उन्हें अमोघ पाशुपत अस्त्र दिया। इसी पाशुपत अस्त्र से अर्जुन ने जयद्रथ का वध किया औऱ महाभारत का युद्ध जीता।
4. कलयुग : 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी जी ने उत्तराखंड के केदारनाथ की 12250 फीट की ऊंचाई पर स्थित गुफा में भगवान शंकर का ध्यान किया था और औघड़ दानी भोलेनाथ ने उनकी पार्टी को झोली वोटों से भर दी थी।
और
अभी कुछ दिन पूर्व एनडीए की राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने भोलेनाथ के वाहन नंदी के कान में अपने मन की बात कही थी। नंदी ने उनकी इच्छा कैलाशपति तक पहुंचाई और आज देखिये महादेव की कृपा से श्रीमती द्रौपदी मुर्मू विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र की प्रथम आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन गई हैं।
जय भोलेनाथ
(विनय सिंह बैस)
शिव भक्त
(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)