नई दिल्ली। अब सुबह घास में पड़ने वाली ओस सूरज की पहली किरण पड़ते ही मोतियों सी चमकने लगी है। सुबह -शाम गुलाबी ठंडक पड़ने लगी है। शरद पूर्णिमा का चांद आज अपनी समस्त कलाओं के साथ प्रकट होगा। इस धवल, उज्जवल चंद्रमा की किरणें पृथ्वी पर रात भर अमृत वर्षा करेंगी। अम्मा ने जो छत पर खीर रखी है उस पर भी यह अमृत कण गिरेंगे और इसे भोग लगाने वाले समस्त जन निरोग और दीर्घायु हो जाएंगे। मां लक्ष्मी का आज प्राकट्योत्सव भी है तथा आज की ही रात भगवान कृष्ण का महारास भी होगा। यानि प्रेम के, रस के, धन-धान्य के दिन आने वाले हैं।
कातिक का महीना बड़ा पवित्र माना जाता है। आज सुबह पूजा करने के बाद अजिया ने सबके हाथों में मिश्री का प्रसाद देते हुए सबको चेता दिया है कि अब से गोधन कुटाए तक घर में मास मच्छी, अंडा मुर्गी सब बंद। बाहर से भी खाकर नहीं आना है। नहीं तो देवता घर में पांव नहीं धरेंगे। आज से, अभी से ई सब मल्लेच्छन वाला काम बंद।
कातिक अवश्य ही फागुन का जुड़वा भाई होगा क्योंकि यह महीना सब तरह से अच्छा होता है। त्योहारों की बहार रहती है, सूरज का जन्मदिन होता है। मौसम भी कितना सुहावना होता है। धूप कोमल रहती है और सर्दी भी गुलाबी रहती है। न भीषण गर्मी, न कड़ी सर्दी। सुबह-शाम सीत्कार भरती ठंडी हवाएं हौले से कानों को छूकर निकल जाती हैं। दिन चढ़ते ही सूरज की तपिश गुड़ वाले गुनगुने दूध सी महसूस होती है। अंधेरा होने के बाद घर के पीछे खुले मैदान में रात भर टप टप गिरे हरसिंगार के फूल एक तिलस्मी सुगंध से महौल को सराबोर कर देते हैं।
हालांकि त्योहारों का मौसम कुआर से चल ही रहा है। नवरात्र अभी समाप्त हुई है, देवी मां की अगले नवरात्र में आने के लिए विदाई हो चुकी है। दशहरा के दिन रावण जल चुका है, बच्चे मेला का आनंद ले चुके हैं। अब भगवान राम लंका से अयोध्या नगरी वापस लौटेंगे, तब दीपावली मनाई जाएगी। घर के कोने-कोने की सफाई होगी और अमावस्या की अंधेरी रात में भगवान राम के स्वागत में घर, आंगन, खेत, खलिहान को दियों से रोशन किया जाएगा। उस दिन बच्चे पटाखे फोड़ेंगे और बनिया नया खाता शुरू करेंगे।
उसके बाद विशेषकर पूर्वांचल और बिहार में लोकआस्था के महापर्व छठ की धूम मचेगी। हमारे बैसवारा में कतकी गंगा स्नान (कार्तिकी पूर्णिमा) की तैयारियां शुरू हो जाएंगी। कतकी स्नान के बाद त्योहारों का मौसम होली तक के लिए रुक जाएगा।
लेकिन समय का चक्र चलता रहेगा। खेती-किसानी चलती रहेगी, फसलें काटी और बोई जाती रहेंगी। अभी खेतों में धान के पौधों के तने और पत्तियां अभी हरी हैं लेकिन उनकी मोटी और हवा के साथ लहराती बालियां पककर सोने की रंगत ले चुकी हैं। दूर से देखने पर ऐसे लगता है मानो किसी हरी साड़ी वाली गोरी ने गले में सोने का बड़ा सा हार पहन लिया हो।
अजिया ने भी कल ही सारे रजाई-गद्दे धूप में डाल दिए हैं। कह रही थी अब मोटे चद्दर से भी काम नहीं चलेगा, तड़के कुछ ज्यादा ही ठंड हो जाती है। बाबा भी बात कर रहे थे कि इससे पहले कि आंधी-पानी आए, कोई काज-परोजन पड़े, उसके पहले फसल घर आ जानी चाहिए। इसलिए वह धान काटने वालों मजूरों की गिनती कर आए हैं। मजूर धान काटेंगे, फिर एक-आध हफ्ता उनको खेत में सूखने में लगेगा। उसके बाद धान की फसल के बोझ बांधकर आफर (खलिहान) लाये जाएंगे।
अभी काफी समय है इसलिए बारिश में ऊबड़ खाबड़ हुआ खलिहान फरुआ (फावड़े) से बराबर किया जा रहा है। जिस दिन धान के बोझ खलिहान आएंगे उसके एक दिन पहले बाबा चार -छह छीटा गोबर और 10 -12 बाल्टी पानी खलिहान में पहुंचा देंगे। फिर पूरा खलिहान गोबर से लीपा जाएगा।
लिपाई सूख जाने के बाद बाबा खलिहान के बीचो बीच तखत, सरावनि या लकड़ी का कोई बड़ा कुंदा (टुकड़ा) रख देंगे, जिस पर मजूर धान पीट सकेंगे। वह लोग धान पीटने के बाद पैरा (पुआल) एक तरफ फेंकते जाएंगे और धान एक जगह इकट्ठा करके उसकी कूरी (ढेर) बनाई जाएगी।
पूरा धान पीटने और धान एक तरफ और पुआल दूसरी तरफ करने से पहले घर के किसी सदस्य का खलिहान में वैसे तो कोई काम नहीं है। लेकिन त्योहारों के कारण सूरज के स्कूल में लंबी छुट्टी है। मतलब पढ़ाई का कोई बोझ नहीं है। इसलिए वह भी गांव आया हुआ है। अब सूरज कभी मजूरों को पानी पूछने के बहाने, कभी बैलों को धूप में बांधने के बहाने खलिहान की तरफ कनखियों से निहारता जाता है। वह यह देखकर खुश है कि रूपा भी धान पीटने आई हुई है।
राम जाने यह कातिक का कमाल है या लंबे अंतराल के बाद मिलने का असर, रूपा अब पहले से ज्यादा सुंदर और मोहक लग रही है। उसका रंग भी पहले से कुछ अधिक साफ हो गया है। आषाढ़ में जब धान रोपने आई थी, तब कितनी चिलचिलाती गर्मी थी। शायद इसीलिए उसका रंग सांवला हो गया था।
रूपा को भी सूरज की उपस्थिति का भान हो चुका है। पहले वह सीधे सूरज को बुला लिया करती थी, सबके सामने उससे खुलकर बात भी कर लिया करती थी। लेकिन अब शायद वह बड़ी हो गई है इसलिए अपनी अम्मा की नजर बचाकर सूरज की तरफ देखकर मुस्कुरा भर देती है और झट से नजर फेर लेती है। डर यह की कहीं सूरज और रूपा की आँखें चार होने से पहले उसकी अम्मा की आँखें लाल न हो जाएं इसीलिए रूपा नजर मिलते ही, नजरे नीची कर वापस धनपिटनी में लग जाती है।
आज पूरा धान पीटा जा चुका है। पुआल बाहर की तरफ और धान का ढेर खलिहान के बीचोबीच लग चुका है। अब बाबा आएंगे। वह 12 डलिया धान अपनी तरफ रखेंगे और एक डलिया धान रूपा की अम्मा की बोरी या पुरानी लेकिन मजबूत धोती या चद्दर में डाल देंगे। रूपा की अम्मा एक डलिया धान में कभी नहीं मानी इसलिए बाबा को चौथाई डलिया धान और देना ही पड़ता है। क्योंकि एक बार जब बड़े बाबा बीमार हो गए थे और छोटेबाबा ने चौथाई डलिया धान अलग से नहीं डाला था तो अगले साल रूप की अम्मा पूरे 5 दिन बाद धान काटने आई थी। बिना कुछ कहे वह सब कुछ कह गई थी। तबसे कोई भी बाबा रुपा की अम्मा से पंगा नहीं लेते।
अब शाम होने को है। रूपा, रूपा की अम्मा और उनके संगी साथी मजूरी लेकर हंसी-खुशी अपने घर जा रहे हैं। उनकी हफ्तों की मेहनत का आज पारिश्रमिक मिला है, इसलिए वह लोग खुश हैं। आज रात चैन की नींद सोएंगे।
लेकिन सूरज को आज पूरी रात ठीक से नींद नहीं आएगी। उसने रूपा की सहेली अनीता को उसे छेड़ते हुए देखा है। वह मंद मंद मुस्कराते हुए शायद सूरज को सुनाते हुए कह रही थी कि जबसे कातिक शुरू हुआ है, तब से रूपा सुबह मुंह अंधेरे उठ कर नहा लेती है क्योंकि मानता है कि ब्रह्ममुहुर्त में कातिक नहाने से कुंवारी कन्याओं को मनचाहा जीवन साथी मिलता है।
अब कुआर की पूर्णमासी को सूरज बिस्तर में लेटे हुए सोच रहा है कि रूपा किसको पाने के लिए इतने जतन कर रही है, कष्ट सह रही है? मनचाहा जीवनसाथी?? क्या सुबह कातिक नहाते हुए रूपा के मन में जीवन साथी के रूप में मेरी तस्वीर उभरती होगी?? शायद हां, शायद नहीं!!
इसका उत्तर तो राम ही जानें लेकिन सूरज पता नहीं क्यों मन ही मन खुश हुआ जा रहा है। शरीर कुछ हल्का सा लग रहा है, सांसे महकने लगी हैं। वह सपनों की सुनहरी दुनिया की सैर कर रहा है। अब रातभर रूपा उसके सपने में आती रहेगी, मुस्कराती रहेगी और सूरज को ख्वाबों की हसीन दुनिया की सैर कराती रहेगी।
(विनय सिंह बैस)
सूरज के गांव वाले दोस्त
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