संदर्भ : यूपी बोर्ड परीक्षा में 7.9 लाख छात्र हिंदी में अनुतीर्ण
विनय सिंह बैस, नई दिल्ली । “बड़ा पेड़” गिरने के बाद धरती हिलकर लगभग शांत हो चुकी थी। मैं पापा के साथ मुंबई घूमने गया था, अपने नाना के घर। चूंकि उन दिनों किसी घर का दामाद पूरे मुहल्ले का जमाई हुआ करता था। अतः नाना के एक रिश्तेदार जो उसी मुहल्ले में रहा करते थे, एक दिन उन्होंने पापा को और मुझे भोजन के लिए आमंत्रित किया हुआ था।
उनके घर पहुंचने पर उन्होंने दामाद जी (बैस) कहकर पापा का स्वागत किया और पापा ने “हवलदार भाई साहब” कहकर उनका अभिवादन किया। जिज्ञासावश मैंने पापा से पूछा कि क्या ये आर्मी में हैं?? तो पापा ने बताया कि इनका नाम ही ‘हवलदार सिंह’ है। आर्मी से इनका दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है। पेशे से ये शिक्षक हैं।
यह मेरे लिए पहला आश्चर्य था!!
दूसरा यह कि बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वे ‘हिंदी का ट्यूशन’ पढ़ाते हैं तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा?? हिंदी का भी कोई ट्यूशन पढ़ता है क्या?? ट्यूशन की बात छोड़ो, हमारे यहाँ तो दसवीं-बारवीं कक्षा के विज्ञान वर्ग के लड़के हिंदी के पीरियड के दौरान मैथ के क्वेश्चन सॉल्व करते रहते हैं।
हिंदी की किताब तो परीक्षा के एक दिन पहले ही खुलती है और उसके जुड़े, चिपके हुए पेज फाड़े जाते हैं।
पापा ने मेरी जिज्ञासा इस तरह शांत की कि जैसे तुम्हारे लिए मराठी कठिन है, क्योंकि तुम्हारी भाषा नहीं है। वैसे ही इन लोगों के लिए हिंदी दुःसाध्य है, क्योंकि हिंदी इनकी मातृभाषा नहीं है। तेरे को, मेरे को, काये कू, किधर कू जैसी बॉलीवुड छाप हिंदी बोलना एक बात है और शुद्ध हिंदी बोलना तथा लिखना अलग बात है। अतः यहाँ हिंदी पढ़ाने वालों की खूब मांग है। उस समय पापा के तर्क से मुझे सहमत होना पड़ा था।
लेकिन कबीर, सूर, तुलसी जैसे महाकवियों और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जैसे गद्यकारों की जन्म और कर्मभूमि उत्तर प्रदेश की वर्ष 2022 की बोर्ड परीक्षा में 7.97 लाख छात्रों का हिंदी विषय मे अनुत्तीर्ण होना हम जैसे हिंदी प्रेमियों के लिए किसी सदमे से कम नहीं है।
हिंदी ओढ़ने-बिछाने वाले भैया लोगों और हर बात को हिंदी में समझाने की धौंस देने वाले UPians की Generation Next को आखिर हो क्या गया है???
(विनय सिंह बैस)
लोगों को हिंदी में अपनी बात समझाने वाले