आशा विनय सिंह बैस की कलम से : यक्ष-यक्षिणी

आशा विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। कहते हैं कि यक्ष-यक्षिणी में देवताओं की तरह दैविक चमत्कारिक शक्ति होती है। पौराणिक ग्रंथो में हमारी पृथ्वी में दैत्य, दानव, गंधर्व, किन्नर, यक्ष-यक्षिणी, भूत-प्रेत, रीछ, वानर, नाग, नाग कन्या और डाकिनी-शाकिनी जैसी बहुत सारी जातियां थी। कई लोग यक्ष-यक्षिणी को भूत और पिशाच की श्रेणी में मानते हैं लेकिन यह लोगो की गलत अवधारणा है। यक्ष-यक्षिणी एक प्रकार की देवयोनि है। यह वह देवता हैं जो कुबेर के सेवक और उसकी निधियों के रक्षक माने जाते हैं। यक्ष धन का रक्षक और प्रहरी होता है, उसे कभी भोगता नहीं है।

इसीलिए हमारे देश के कुबेर यानि बैंकों के बैंक यानि भारतीय रिजर्व बैंक के मुख्य द्वार पर यक्ष-यक्षिणी की मूर्ति लगाई गई है। इन नयनाभिराम मूर्तियों को कुल्लू से प्राप्त शिवालिक बलुआ पत्थर पर बंगाल के रामकिंकर बैज ने पूरे 12 वर्षों के अथक परिश्रम से गढ़ा है और उन्होंने अपनी बांग्ला भाषा में इन्हें ‘जोक्खो-जोक्खी’ कहा है।

यक्ष के एक हाथ में चक्र और दूसरे हाथ में मनी बैग है जो उद्योग के माध्यम से समृद्धि का प्रतीक है। ऐसी मान्यता रही है कि समृद्ध व्यक्ति तोंदू होता है, अतः यक्ष का पेट बाहर निकला हुआ है। यक्षी के एक हाथ में फूल और दूसरे हाथ में धान के गुच्छे कृषि के माध्यम से समृद्धि का प्रतीक हैं।

अपनी अद्भुत शिल्प कला के माध्यम से पुरातन को नवीन से जोड़ने के लिए स्वर्गीय रामकिंकर बैज को पद्य भूषण से सम्मानित किया गया था।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

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