आशा विनय सिंह बैस की कलम से : आज के समय की रेल यात्रा

आशा विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। एक समय था जब ट्रेन का टिकट लेने के लिए घंटों लाइन लगानी पड़ती थी। तत्काल टिकट के लिए ₹500 प्रति व्यक्ति अलग से घूस देनी पड़ती थी। किस ट्रेन में और किस दिन टिकट उपलब्ध है, यह सिर्फ बुकिंग क्लर्क को पता होता था। वेटिंग मिल जाने के बाद टीटी की मर्जी और घूस की मात्रा पर निर्भर करता था कि वह किसको सीट अलॉट करेगा। टिकट कैंसिल करना उसका रिफंड लेना भी श्रमसाध्य कार्य था। पेपर टिकट अगर गलती से गुम हो गई या पैंट के साथ धुल गई, तो अपनी पहचान साबित करना टेढ़ी खीर होता था।

ट्रेन किस प्लेटफार्म पर आएगी, कितना लेट है, यह सब भी स्टेशन जाकर ही पता चलता था। सामान, बैग, सूटकेस उठाकर चलना और फिर स्टेशन की सीढियों पर उसे लेकर चढ़ना अत्यंत मुश्किल कार्य हुआ करता था। ट्रेन में पेंट्रीकार है तो रेलवे के घटिया और महंगे खाने पर निर्भर रहना पड़ता था। नहीं है तो किसी स्टेशन पर उतर कर मुंह-मांगे दाम पर खरीदना पड़ता था। बाथरूम, ट्रेन सामान्यतः बहुत गंदे रहते थे। प्लेटफार्म पर खूब गंदगी, कोनों में लाल पीक और पटरियों पर मल-मूत्र बिखरा रहता था। शिकायत करने का कोई आसान साधन नहीं था। हालांकि स्टेशन मास्टर और टीटीई के पास शिकायत पुस्तिका रहती थी लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता रहता था और जिनको पता भी रहता था उन्हें यह लोग आसानी से शिकायत दर्ज नहीं करने देते थे। ट्रेन और स्टेशनों में बम विस्फोट की घटनाएं आम हुआ करती थी। “कोई भी लावारिस वस्तु या खिलौना बम हो सकता है” की चेतावनी हर जगह लिखी मिलती थी।

आज सब कितना आसान हो गया है। घर बैठे मोबाइल या लैपटॉप पर रिजर्वेशन कर सकते हैं। टिकट का प्रिंट लेने की जरूरत नहीं है मोबाइल पर सब कुछ आ जाता है। किस ट्रेन में औऱ कब टिकट उपलब्ध है, सब कुछ एक क्लिक पर उपलब्ध है। अगर वेटिंग लिस्ट है तो कंफर्म होगी या नहीं, इसका भी आईडिया मिल जाता है। टिकट कैंसिल करना है तो कुछ पैसे कटेंगे जरूर लेकिन दो दिन बाद रिफंड आपके अकाउंट में आ जाएगा।

अब व्हील वाले 360 डिग्री वाले सूटकेस आ गए हैं, जिनको बच्चे भी आसानी से इधर-उधर ले जा सकते हैं। रेलवे स्टेशन पर एस्केलेटर और लिफ्ट की सुविधा उपलब्ध है। आप बिना हांफे और थके हुए अपना सामान इधर से उधर ले जा सकते हैं। प्लेटफार्म पहले की अपेक्षा साफ सुथरे हैं, देश की गुटखा राजधानी कानपुर में भी कोने पीक से लाल नहीं दिखते हैं तथा बायो टॉयलेट लग जाने से पटरियों पर मल मूत्र गिरना बंद हो गया है। ट्रेन कितना लेट है, किस प्लेटफार्म पर आएगी, कोच पोजीशन क्या है; सब कुछ पहले से पता रहता है।

भोजन आप चाहे तो स्विग्गी, जोमैटो से कहीं भी ऑर्डर कर सकते हैं। चाहें तो अपनी सीट पर तमाम साधनों से मंगवा सकते हैं। ट्रेन में या बाथरूम में गंदगी होने पर या किसी अन्य प्रकार की समस्या होने पर आप सीधे रेलवे या रेल मंत्री को ट्वीट कर सकते हैं। टीटीई ने किसको सीट अलॉट की है, आप ऑनलाइन देख सकते हैं। महिला हेल्पलाइन, पुलिस हेल्पलाइन आदि की सहायता फोन करके ले सकते हैं। अब स्टेशन, ट्रेन के अंदर और बाहर भी आतंकी घटनाएं लगभग बंद हो चुकी हैं। लावारिस वस्तुओं में बम रखने वाले देश में यहां तक कि विदेश में भी सुरक्षित नहीं हैं।

अभी कुछ दिन पहले लखनऊ जाना हुआ तो पाया कि कोलकाता के हावड़ा स्टेशन की तरह चारबाग स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 6 पर ट्रेन के कोच के बिल्कुल पास तक आप अपनी गाड़ी से जा सकते हैं। आपके पास कितना भी सामान हो, छोटे बच्चे हों, बुजुर्ग हों, बीमार हों, आपको दूर तक पैदल चलने की जरूरत नहीं है।

हालांकि फेस्टिवल सीजन और कुछ विशेष रुट पर रिजर्वेशन न मिलना, तत्काल टिकट बुक करते समय वेबसाइट हैंग हो जाना, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश को जाने वाली रेलगाड़िया में पैर रखने की जगह न होना, फ्लेक्सी फेयर जैसी अनेक समस्याएं अभी भी हैं। लेकिन कुल मिलाकर रेल यात्रा अब पहले की अपेक्षा आसान और बेहतर हो गई है।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

20 − 10 =