आशा विनय सिंह बैस की कलम से : क्या सचमुच औरतों के पेट में बात हजम नहीं होती??

नई दिल्ली। पापा रोज शाम को कहते- “मेरी पार्टी वाले लोग मेरे पास आ आओ। अम्मा की पार्टी वाले, अम्मा की तरफ जाओ। “इतना सुनते ही मैं पापा की तरफ भागता और बड़े भैया अम्मा की तरफ। छोटी बहन और भाई निर्दलीय थे, अतः किंगमेकर थे। जिस तरफ चले जाते, उधर बहुमत हो जाता। मेरी और भैया की पार्टी तो पक्की थी, इसलिए पापा और अम्मा दोनों ही प्यार से, लालच से निर्दलीयों को अपने पक्ष में रखने की कोशिश करते।

1991 की बात है। हमारे पास हीरो मैजेस्टिक मोपेड हुआ करती थी। उसको चलाने में मुझे उतना ही आनंद आता था जितना आज के किसी मॉडर्न युवा को फ़रारी चलाने में आता होगा। लेकिन समस्या यह थी कि किशोर होने के कारण मुझे मोपेड चलाने का मौका कम ही मिल पाता था।

एक दिन अम्मा को लालगंज से किसी समारोह में शामिल होने के लिए गांव (बरी) जाना था। पापा की बोर्ड की कापियां चेक करने हेतु रायबरेली में ड्यूटी लगी हुई थी, इसलिए उनका जाना संभव न था। मैंने पापा की थोड़ी बटरिंग की और अम्मा को मोपेड से गांव ले जाने की अनुमति मांगी। पापा ने साफ मना कर दिया। बोले- “तुम्हें अकेले तो ठीक से चलानी आती नहीं, अम्मा को बैठाकर तो तुम जरूर कहीं गिरा दोगे। साईकल से ले जाना है तो जाओ।”

पापा, दिल से अटल बिहारी वाजपेयी थे, यह तो पूरी दुनिया जानती थी। अमूमन, उनको मनाना इतना मुश्किल नहीं होता था। इसलिए मैंने पुनः मनुहार की। लेकिन उस दिन पापा मान ही नहीं रहे थे। अन्ततः, मैंने ब्रह्मस्त्र का उपयोग कर डाला- “अगर आज आपने मुझे मोपेड नहीं दी, तो मैं आपकी पार्टी में नहीं रहूँगा।”

ब्रह्मस्त्र काम कर गया। पापा को मानना ही पड़ा। लेकिन साथ ही बहुत सारी हिदायतें कि- “30 के आगे बिल्कुल न चलाना, सड़क पर बाएं रहना, आराम से जाना आदि आदि” और साथ में सख्त चेतावनी भी कि अगर कोई गड़बड़ हुई या शिकायत मिली तो आज के बाद मोपेड चलाना भूल जाना।

कुछ शर्तों के साथ ही सही, काम बन गया। अम्मा वैसे तो विपक्षी पार्टी की थी लेकिन उन्होंने कोई प्रतिरोध न किया। हम दोनों तैयार होकर गांव के लिए निकल लिए। मुझे पापा की सारी शर्ते याद थी, अतः बड़ी सावधानी से बिक्की (मोपेड) चला रहा था।

अब पक्की सड़क खत्म हो चुकी थी, कच्चा रास्ता शुरू हो गया था। कुछ ही दूर चले होंगे कि देखता हूँ कि किसी समाजवादी, सेक्युलर व्यक्ति ने सरकारी संसाधनों पर अपना पहला हक़ समझकर सड़क को बीच से काटकर नाली बना रखी थी। मुझे रुकना पड़ा। अम्मा को उतारा, पैदल चलकर मोपेड को नाली पार कराई, अम्मा को फिर से बिक्की में बैठने को कहा और चल दिए।

गांव के नजदीक पहुंचने पर मैंने अम्मा से पूछा कि जिसके घर दावत है, पहले वहाँ चलना है या अपने घर? अम्मा ने कोई जवाब नहीं दिया। मैंने पुनः पूछा, फिर कोई जवाब नहीं आया। मैंने मोपेड रोक दी। क्या देखता हूँ कि अम्मा तो पीछे बैठी ही नहीं हैं। अब मुझे काटो तो खून नहीं। मेरा तो दिमाग ही सुन्न हो गया। क्या अम्मा रास्ते में गिर गईं या कुछ और मेरे मन मे बेहद बुरे खयाल आ रहे थे।

मैंने तुरत ही मोपेड उलटी दिशा में मोड़ दी। हे भगवान!! सब अच्छा हो। अम्मा की रक्षा करना। यही सब प्रार्थना करते हुए वापस जा रहा था। कुछ आगे जाकर देखता हूँ कि अम्मा पैदल चली आ रहीं हैं। उनको सुरक्षित देखकर मेरी जान में जान आई। मैंने अम्मा के पास मोपेड रोकी और मासूमियत से पूछा- “अम्मा कहाँ रह गई थी?? ”

अम्मा का मुँह गुस्से से लाल हो रखा था। उन्होंने एक सांस में मुझे हजार बातें सुना डाली। मारने को भी हुई, फिर पता नहीं क्या सोचकर हाथ रोक लिए। फिर गुस्से से बोली- “बहरे, नाली पार करने के पश्चात, मैं वापस बैठती, इस से पहले ही तुम चल दिये। मैं पुकारती रही, तुम पता नहीं कहाँ खोए हुए थे कि सुना ही नहीं।”

“अम्मा, जो कहना है, कह लो। पीटना है, तो पीट भी डालो। लेकिन पापा को मत बताना, नहीं तो मुझे आज के बाद दोबारा मोपेड न मिलेगी।” मैंने कातर स्वर में कहा। लेकिन अम्मा, कुछ ज्यादा ही गुस्से में थी। बोली- “पापा की छोड़ो, मैं सबको बता दूंगी कि यह आवारा पता नहीं कौन सी धुनकी में रहता है, इसके साथ कभी कोई मोपेड में न बैठना।”

मैंने अम्मा के पैर पकड़ लिए- “बस इस बार माफ कर दो, दोबारा कभी ऐसा न होगा।” मैं रुआंसा हो गया।
अम्मा कुछ न बोली। चुपचाप मोपेड पर बैठ गई। हम गांव गए, समारोह में शामिल हुए और शाम को सुरक्षित वापस आ गये। तब तक पापा भी रायबरेली से कॉपी चेक करके आ गए थे। उन्होंने अम्मा को देखते ही पूछा,
“गांव से वापस आ गई, कोई दिक्कत तो नहीं हुई?”

मेरी धड़कने तेज हो रखी थी। भविष्य मुझे साफ-साफ दिख रहा था। अब अम्मा पूरी घटना पापा को बताएंगी और आज के बाद मुझे कभी भी मोपेड चलाने को न मिलेगी। लेकिन आशा के विपरीत अम्मा ने छोटा सा जवाब दिया,”हां, सब ठीक रहा।” मुझे अपने कानों पर जैसे विश्वास ही न हुआ।

“तो क्या हुआ?? अम्मा बाद में तो जरूर ही पापा को बता देंगी।” मेरी अंतरात्मा ने कहा। आज, इस घटना को बीते 30 बरस से अधिक हो चुके हैं। पापा हम सबको छोड़कर भगवान के पास चले गए लेकिन अम्मा ने इस घटना की चर्चा किसी से नहीं की।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

#मातृदिवस

(आशा विनय सिंह बैस)
अब अम्मा की पार्टी वाले

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