नई दिल्ली। मैंने किशोरावस्था में ही अपना होमटाउन लालगंज बैसवारा छोड़ दिया। इसका फायदा यह हुआ कि मुझे जल्दी नौकरी मिल गई और जिस उम्र में मेरे कुछ सहपाठी अभी भी TGT/PGT की तैयारी कर रहे थे, मैं वायुसेना से रिटायर होकर पेंशन लेकर घर आ गया।नुकसान यह हुआ कि इन वर्षों के दौरान लालगंज में हुए परिवर्तन से मैं लगभग अनजान ही रहा। गंदी गली, विकास नगर बन गया। गांधी चौराहा, पंडित दीनदयाल चौराहा बन गया। लक्ष्मी टाकीज, बारात घर बन गई और भारतीय स्टेट बैंक की ब्रांच बड़ी बिल्डिंग से शिफ्ट होकर सड़क के दूसरी तरफ चली गई।

लालगंज के लेटेस्ट डेवलपमेंट और जियोग्राफी में हुए परिवर्तन से अपडेट न रहने के कारण होता यह कि जब भी मैं परिवार के किसी शादी समारोह में घर आता तो परिवार के लोग मुझे बाजार से कोई सामान लेने भेजने से कतराते थे। उनको लगता था कि जितनी देर में इसको गली, दुकान, मकान का रास्ता समझाया जाएगा, उतनी देर में कोई दूसरा सामान लेकर घर आ जाएगा।

अब चूंकि काज-परोजन में सबको कुछ न कुछ तो काम देना ही पड़ता है। तो मेरे लिए सही काम का चुनाव करने में घर वालों को काफी माथापच्ची करनी पड़ी। समय से बाजार से सामान लाना मेरे बस की बात नहीं थी और इस उम्र में मुझसे झाड़ू पोछा करवाना ठीक नहीं समझा गया, तो सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि मुझे शादियों में “व्यवहार” लिखने का काम दिया जाए। इस निर्णय को मैंने मन मसोसकर स्वीकार कर लिया।

किसी भी शादी में सबसे उबाऊ और जिम्मेदारी का काम व्यवहार लिखना होता है। जहां एक तरफ बारात आ रही है, लोग नाच-गाना कर रहे हैं। परिवार के लोग नात-रिश्तेदारों, मित्रों-हमजोलियों से बतिया रहे हैं। कुछ लोग हर आधे घंटे के बाद कार की डिग्गी खोलकर प्लास्टिक वाले गिलास में कुछ काला/लाल पीकर रिचार्ज हो रहे हैं और दूसरी तरफ आप एक डायरी, कई चेन वाला काला बैग और बॉल पेन लिये मुंशीगीरी/मुनीमगीरी कर रहे हैं।

पता नहीं मैंने व्यवहार लिखने का कार्य और पैसे-रुपये का हिसाब सचमुच अच्छी तरह से किया या घर वालों को मेरे लायक और कोई काम सूझा नहीं। जो भी कारण रहा हो पिछले कुछ वर्षों से परिवार की किसी भी लड़की की शादी में “व्यवहार” लिखने का कार्य हम ही करते हैं। यहां तक तो खैर फिर भी शुक्र था। अभी पिछले महीने मेरी ससुराल की ससुराल यानी श्रीमती जी के मामा की लड़की की अमेठी में शादी थी। मुझे लगा कि मैं अमेठी वालों के दामाद का दामाद यानी ‘मान’ का भी ‘मान’ हूँ तो मेरी बड़ी अच्छी तरह आवभगत और खातिरदारी होगी।

कोई मुझे गलती से भी घराती न समझ ले इसलिए मैं वहां पहुंचते ही नहा-धोकर तैयार हो गया। बढ़िया से कपड़े पहने। अपने बचे-खुचे बालों को ढंग से संवारा, चेहरे पर कोई सफेद पाउडर सा लगाया और सेंट-परफ्यूम लगाकर तैयार हो गया। शुरू के एक दो घंटे मेरे साथ रिश्तेदार जैसा ही व्यवहार हुआ। नाश्ता-पानी आया, चाय पकौड़ी भी पेश की गई। लेकिन कुछ देर बाद शायद मेरे पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए बड़े मामा ने बड़ी इज्जत और अधिकार से मुझे ‘व्यवहार’ लिखने का काम सौंप दिया।

फिर वही हुआ जो होना था। एक तरफ बाराती और घराती तमाम पकवानों, व्यंजनों का घूम घूम कर स्वाद लेते रहे। कुछ लोग जाति-धर्म-उम्र का बंधन तोड़कर रात वाली दवाई के सुरूर में डूबते रहे और कुछ युवा तथा कुछ रात वाली दवाई के प्रभाव से युवा हुए लोग “गोरी तोरी चुनरी हो लाल लाल बा” पर तड़क-फड़क-बेधडक डांस करते रहे और मैं निःसहाय पूरी रात-
1.श्री रामचरण सिंह, भौंसिंहपुर , 501/-रुपये
2. शिवचरन पासी, पुन्नपुर, 51/- रुपये
3. दिल्ली वाली बुआ- एक साड़ी, पेटीकोट, ब्लाउज, मेकअप का सामान” लिखता रहा।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

आशा विनय सिंह बैस (शादी-ब्याह में व्यवहार लिखने वाले)

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