पटना। कल्याणपुर घूमाकर गया तो था पत्नी को पोलो ग्राउंड मुंगेर रावण-दहन दिखाने!
कि, रावण से अचानक ही भेंट हो गयी मेरी!
ये घास-फूस और पटाखे भरा रावण नही था!
सच्ची-मुच्ची का रावण था!
कम हाईट का, बैचैन सा, पोलो ग्राउंड मुंगेर की मेले की भीड मे भटकता रावण! वैसे तो उसे बतौर रावण पहचान पाना नामुमकिन ही था! रावण को जलते देखने आई भीड मे अक़ेला छूट गया बच्चा ही लगा मुझे वो!
मुझे लगा अपने गार्जियन की ऊँगली छूट जाने से इस खो गये बच्चे की मदद करनी ही चाहिये!
जाहिर है मैने उससे उसका नाम – पता जानना चाहा!
जवाब मिला रावण!
रावण!
आज के जमाने मे अपने बच्चे का नाम रावण कौन रखता है? ग़ौर से देखने पर मैने पाया कि वो लगने के बावजूद बच्चा है नही!
अच्छा खासा अधेड़ बंदा है!
पूछताछ करने पर और बतौर आईडियेन्टिटी उसकी जली नाभि देखने के बाद ही तस्दीक हो सकी कि ये बालक – सा दिखता आदमी लंका का राजा रह चुका रावण ही है!
पर आप तो किसी कोण से रावण नही दिखते?
हमारी धार्मिक किताबे तो बताती है रावण हट्टा-कट्टा गामा पहलवान टाईप बंदा था!
वैसा ही था मै!
था मतलब?
आप के जमाने मे मुझसे बेहतर रावण के सैफ अली खान जैसे एडीशन आ चुके कि मारे शर्मिंदगी के ऐसा छोटा हो चला हूँ मै!
पर हम तो हर साल इस घास-फूस वाले रावण को चार-छह फ़ुट और ऊँचा कर देते है!
वो मै नही! वो तुम खुद हो!
तुम्हारा मन खुद मंजूर करता है कि अनाचार और बुराइयाँ पिछले साल से ज्यादा बढी है, नतीजन इस पुतले की हाईट अपने आप बढ जाती है!
पर आपके बारे मे तो खबर यही है कि दस सर थे आपके?
दस सर जैसी कोई बात कभी नही थी!
लोगो का मानना था कि दस आदमियो जितनी बुद्धि थी मेरे पास, इसलिये लिखने वालो ने यह बात बना ली!
पर आप इतने परेशान से क्यो हैं?
मै अपनी पहचान छोटी होते देखकर परेशान हूँ !
हिंदुस्तान मे लाखो-लाख ऐसे फिर रहे है जो दस से ज्यादा चेहरे लगाये हुये है!
वो वक्त – जरूरत जंचने वाला चेहरा लेकर सोसायटी से मुखातिब होते है! उनके कारनामे मुझे मात करने वाले है!
मै शर्मिंदा और डरा हुआ हूँ और इन्ही वजह से लगातार छोटा होता जा रहा हूँ!
अब ऐसा क्या कर दिया हम लोगो ने?
अब हँसा रावण!
हाँलाकि उसकी हँसी वैसी कतई नही थी, जैसा वो फ़िल्मों और टीवी – स्क्रीन पर हँसते देखा जाता है! आँसुओं से भीगी हँसी थी ये और इस हँसी के बावजूद वो रावण ही था!
क्या नही किया आप लोगो ने, क्या नही कर रहे आप लोग! लडकियो को पैदा होने के पहले मारने वाले लोग है आप लोग! क्या आपके शहर मे कोई लडकी शाम को सड़कों पर बिना डरे अकेली आ-जा सकती है?
आपके शहरों मे कुछ मकान सोने के और कुछ खपड़ा के है पर आप इसे लेकर शर्मिंदा नही है! अनगिनत भूखे – लोगो के बीच कुछ लोग ज्यादा खाने की वजह से मर रहे हैं पर आपको यह बात अजीब नही लगती?
आप खुद डरे हुये है और सब को डरा कर रखना चाहते हैं! जमीन-जंगल, नदियाँ-पहाड़ सब कुछ खा जाने की आपकी भूख मुझे लज्जित करती है! आपके जमाने मे साँस लेने तक के लिये साफ हवा हासिल नही! आप वो लोग है जो किसी भी दूसरे आदमी को उसके विचारों, उसके धर्म, उसके कपड़ों या उसके खाने की थाली को देख कर ही उसे मार देने का फैसला कर सकते हैं और ऐसा करने के बाद भी आपकी आत्मा आपको धिक्कारती नही?
मेरे वक्त ऐसा नही था!
ना ऐसी सोच रखने वाले ही आसपास थे मेरे!
मेरे राज्य मे सभी निर्भय और सुखी थे!
मैने कभी सिद्धान्तों से समझौता नही किया!
मै पीठ – पीछे वार करने वालो मे से नही था!
मै वो था जो अपने शत्रु को भी सच्चे मन से विजयी होने का आशीर्वाद दे सकता था!
सही बात तो ये है कि आप नफरत की खाद पर पलते खरपतवार से है!
लालची, कायर, बडी-बडी बाते करने वाले छोटे लोग है आप लोग; जो मेरे पुतले को जलाने का तमाशा भर कर सकते हैं और फिर ,
मुझे मारने खुद राम आये!
उनके आने से सम्मानित हुआ मै!
पर तुम लोगो ने बुराई को भी उस निकृष्ट स्तर पर ला दिया है कि राम भी शायद दूर ही रहना चाहे तुम लोगो से!
रावण सच मे नाराज था!
मै हक्का-बक्का था!
शर्मिंदा होने की बारी अब मेरी थी!
भीड मे एक बार फिर खो गये रावण की ऐसी खरी-खरी सुनने के बाद मै एक ही काम कर सकता था और वही किया मैने!
मै रावण दहन के पहले ही घर लौट आया!
अमिताभ अमित – mango people