विनय सिंह बैस, नई दिल्ली । विज्ञान वर्ग से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई हिंदी मीडियम से करने के बाद मैंने बीएससी (पीसीएम) करने हेतु कानपुर के प्रसिद्ध बीएनडी कॉलेज में एडमिशन लिया। वहां के प्रोफेसर बहुत अच्छे थे, अपने विषय के प्रकांड विद्वान। लड़कों के पास भी सिर्फ छात्र संघ चुनाव के समय राजनीति करने के बाद पढ़ाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था क्योंकि लड़कियां तो उस कॉलेज में थी नहीं। हां कुछ शौकीन लोग मॉल रोड पर स्थित सपना, सुंदर हीर, रीगल सिनेमाघरों के चक्कर लगा आया करते थे। कुल मिलाकर किसी को कोई समस्या नहीं थी।
लेकिन समस्या थी। समस्या मेरे जैसे छात्रों के साथ थी जो गांव के विद्यालय से हिंदी मीडियम से पढ़ कर आए थे। शिक्षक कितना भी अपने विषय का ज्ञाता हो, अगर भाषा का बैरियर सामने आ जाए तो सारी मेहनत व्यर्थ हो जाती है। गणित में तो खैर हिंदी-अंग्रेजी का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सवाल दोनों भाषाओं में लगभग समान ही होते हैं। फिजिक्स भी काफी हद तक गणित जैसी है लेकिन मुख्य समस्या रसायन विज्ञान के साथ आती थी। केमिस्ट्री में भाषा बैरियर बड़ी समस्या बन रही थी।
इस भाषा बैरियर का निदान ढूंढने के लिए मैंने कोचिंग का सहारा लिया। कानपुर से यशोदा नगर के व्हाइट हाउस के पास “पी स्क्वेयर (P2)” कोचिंग सेंटर उस समय प्रसिद्ध हुआ करता था। पी स्क्वेयर कोचिंग सेंटर यानी प्रेमपाल यादव कोचिंग सेंटर। वह अपने विषय के पारंगत नहीं थे। लेकिन मेरे जैसे गांव से आए हुए हिंदी मीडियम से पढ़े हुए बच्चों के लिए किसी वरदान से कम न थे क्योंकि वह रसायन विज्ञान को हिंदी में पढ़ाते, समझाते और लिखाते थे। आज मुझे लगता है कि अंग्रेजी में ऐसा क्या मुश्किल है लेकिन एक समय मैंने सिर्फ भाषा की समस्या के कारण लगभग-लगभग बीएससी की पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय ले लिया था।
आज जब मध्य प्रदेश सरकार तकनीकी शिक्षा (एमबीबीएस की पढ़ाई) को हमारे जैसे तमाम गांव से पढ़े हुए हिंदी मीडियम लोगों के लिए हिंदी भाषा में शुरू कर रही है तो कुछ अपने ही लोग उसके अनुवाद को लेकर खिल्ली उड़ा रहे हैं। कुछ मीम शेयर कर रहे हैं और कुछ हिंदी की शुद्धता का बॉलीवुड फिल्मों की तरह उपहास कर रहे हैं।
अनुवाद सेवा में होने के कारण मुझे भी पता है कि है एमबीबीएस की पाठ्य पुस्तकों का हिंदी अनुवाद ठीक नहीं बन पड़ा है। लेकिन यह प्रयास ही युगान्तकारी है। तमाम ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी मीडियम से होना किसी वरदान से कम नहीं है। पाठ्यक्रम चलता रहा तो अनुवाद अगले दो-चार सालों में सुधर ही जाएगा लेकिन जिन छात्रों का जीवन केवल एक विदेशी भाषा न आने के कारण बिगड़ सकता था, उसकी भरपाई न हो पाती ।
रूस, चीन, जापान, जर्मनी आदि देश अपनी भाषाओं में तकनीकी शिक्षा वर्षों से प्रदान कर रहे हैं और बहुत सफल रहे हैं। एक हम ही हैं जो अंग्रेजी को सिर पर बैठाए घूम रहे हैं। हमने पता नहीं क्यों ऐसा मान लिया कि अंग्रेजी के बिना तकनीकी विषयों की पढ़ाई हो ही नहीं सकती। जब किसी नए और बड़े कार्य की शुरुआत होती है तो स्वाभाविक रूप से कुछ बाधाएं आती हैं। छोटा बच्चा जब शुरुआत में लड़खड़ा कर चलता है तो हम तालियां बजाकर उसका उत्साहवर्धन करते हैं, उसका उपहास नहीं करते।
(विनय सिंह बैस)
अनुवाद अधिकारी