लखनऊ। कृषि विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का मानना है कि कीटनाशकों और रासायनिक खाद का अंधाधुंध इस्तेमाल न सिर्फ मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है बल्कि इसे भविष्य में पारिस्थितिक संतुलन भी गड़बड़ हो सकता है। इंटरनेशनल यूनियन फ़ॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर की पादप एवं जंतु प्रजाति की लाल सूची के मुताबिक भारत में 97 स्तनधारी, 94 पक्षियों एवं 482 पादप प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। स्वाभाविक है कि इसमें अन्य वजहों के साथ खेतीबाडी में प्रयोग होने वाले कीटनाशकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
आने वाले समय में जहरीली खेती की यह परंपरा हमारे पूरे परिस्थितिक संतुलन को गड़बड़ कर सकती है जबकि सहअस्तित्व के लिए यह संतुलन जरूरी है।सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की निदेशक एवं पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा था कि पिछले 150 वर्षों के दौरान विश्व भर में कीटों की पांच से दस फीसद प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं।
इनकी संख्या ढाई से पांच लाख तक की होगी। इसका एक मात्र तरीका है कि हम उस खेती की ओर लौटें जो रोगों एवं कीटों के प्रति प्रतिरोधी हों। अगर ये फसलें कम पानी, कम समय में हों तो और अच्छी बात। इन सबका एक जवाब मोटे अनाज का प्रचुर मात्रा में उत्पादन है। अन्तरराष्ट्रीय मिलेट (मोटा अनाज) वर्ष 2023 में केन्द्र और उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकारें मोटे अनाजों को लोकप्रिय बनाने पर खासा जोर दे रहीं है।
मोटे अनाज पैदा करने वाले प्रमुख देश भारत, नाइजर, सूडान हैं जिनमे भारत की हिस्सेदारी करीब 41 फीसद है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार थोड़ा प्रयास करके इसे 50 फीसद तक करना संभव है। सर्वाधिक उत्पादन के बावजूद निर्यात में भारत का नंबर पांचवां है। पहले तीन नंबर पर क्रमशः नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त अरब आते हैं। भारत को निर्यात के मामले में यूक्रेन एवं रूस से कड़ा मुकाबला करना पड़ता है।
अगर भारत उपज एवं हिस्सेदारी बढ़ा ले तो उत्पादन के साथ निर्यात में भी यह दुनिया में नंबर एक हो सकता है। प्रमुख बाजरा उत्पादक राज्य के नाते इसका लाभ उत्तर प्रदेश और इसके किसानों को भी मिलेगा। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि योगी सरकार ‘मोटा खाएं निरोग रहें’ के थीम पर प्रदेश के 51 जिलों में मिलेट की खूबियों के प्रति किसानों को एवं आम आदमी को जागरूक करने के लिए 2023 में आक्रामक प्रचार अभियान भी चलाएगी।