चित्रकार के चित्रों की भाषा ही सब समझते हैं, इसे सहज और सरल रखें – रागिनी उपाध्याय

 

नेपाल के कला जगत में रागिनी उपाध्याय ग्रैला एक बेहद सम्मानित नाम हैं, रागिनी उपाध्याय ने छात्रों से किया कला संवाद
कला क्षेत्र में महिलाओं को स्थापित होंने के लिए विवेकशीलता और दूरदृष्टि रखनी चाहिए – रागिनी उपाध्याय

लखनऊ। मंगलवार को देश की राजधानी लखनऊ के सबसे पुराने कला संस्थान कला एवं शिल्प महाविद्यालय में कला संवाद श्रृंखला के अंतर्गत लखनऊ कला महाविद्यालय की पूर्व छात्रा और पूर्व चांसलर, नेपाल ललित कला अकादमी छापाचित्रकार रागिनी उपाध्याय ग्रैला के कला यात्रा पर एक संवाद कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम में रागिनी उपाध्याय ने अपने कलाकृतियों को प्रस्तुत करते हुए महाविद्यालय के छात्रों के साथ एक संवाद किया साथ ही कला महाविद्यालय में छात्र जीवन की भी कई संस्मरण भी साझा किये। निरंतर कला साधना ने उन्हें न केवल नेपाल बल्कि विश्व की एक महत्वपूर्ण कलाकार के रुप में एक पहचान दिलवायी है। हालाँकि रागिनी कैनवास पर तैल चित्र के माध्यम से अपने को अभिव्यक्त करती हैं। किन्तु छापाकला में भी विशेषज्ञता हासिल कर रखी है। संस्मरण के दौरान उन्होंने अपने कला गुरुओं को याद करते हुए मदन लाल नागर, श्रीखंडे, अवतार सिंह पंवार और जय कृष्ण अग्रवाल को याद करते हुए कहा की आज मैं जो कुछ भी हूँ इस कला महाविद्यालय और इन कला गुरुओं के बदौलत हूँ। मेरी कला यात्रा में इनका बड़ा योगदान रहा है। लखनऊ यात्रा के दौरान नेपाल काठमांडू से आयी छापाचित्रकार रागिनी उपाध्याय ने अपने ढेर सारे संस्मरण को साझा किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए सर्वप्रथम अलोक कुमार कुशवाहा ने रागिनी के बारे में विस्तृत जानकारी दी और उनका स्वागत कला महाविद्यालय के डीन डॉ. रतन कुमार ने पुष्प गुच्छ देकर किया।

कलाकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने इस कार्यक्रम की जानकारी देते हुए बताया की रागिनी उपाध्याय ग्रैला लखनऊ कला महाविद्यालय से वर्ष 1982 में अपनी कला शिक्षा पूरी की उसके बाद वे नई दिल्ली स्थित गढ़ी स्टुडिओं ललित कला अकादमी में कार्यशाला में काम किया। वहाँ दिग्गज कलाकारों जी.आर. संतोष, मंजीत बावा, गोगी सरोज पाल आदि के साथ काम किया। वहां काम करते हुए उन्हें लगा की उनके काम में इन कलाकारों का प्रभाव आ रहा है तो उन्होंने वापस एकांत में जाकर काम करने का निर्णय लिया और अपनी स्वयं की एक शैली बनाने का प्रयास किया और यहीं से अपने कला यात्रा की एक नई शुरुआत करती हैं। उन्होंने कहा कि इस कला के क्षेत्र में खास तौर पर महिलाओं को बहुत संघर्ष करनी पड़ती है। यह संघर्ष मैंने भी किया लेकिन हिम्मत नहीं हारी और सिर्फ काम करते करते अपने आपको समकालीन कला में स्थापित किया और आजभी एक सीखने का ही प्रयास कर रही हूँ। उन्होंने कहा कि मैं उस दौर कि बात कर रही हूँ जब लड़कियों को घर से दूर नहीं जाने दिया जाता था तब मैं देश विदेश में जा कर अपने कलाकृतियों की प्रदर्शनी और कार्यशालाएं की। यदि आप हिम्मत और लगन के साथ काम करते हैं तो आपको रास्ते अवश्य मिलते हैं और आप सफल होते हैं यही मेरे जीवन का मूल मन्त्र रहा हैं। उन्होंने कहा की हमें अपने कला और कला संस्थान को अपने कला गुरुओं को नहीं भूलना चाहिए साथ ही उनके योगदान को भी।

रागिनी ने संवाद कार्यक्रम के दौरान अपने कुछ चुनिंदा कलाकृतियों की एक प्रेजेंटेशन “नेचर स्पीक” भी किया। जिनमे कोरोना काल के भयावहता और प्रकृति के प्रति एक लगाव और उनके संरक्षण, उनकी सुंदरता को प्रदर्शित किया है उन्हें दिखाया और उन पर अपने भाव प्रस्तुत किये। रागिनी के काम माइथोलॉजिकल और प्रकृति के प्रति संवेदना को दर्शाती है। उन्होंने कहा चित्रों की भाषा हर भाषा से अलग होती है जिसे हर भाषा हर वर्ग के लोग अच्छे से समझ सकते हैं इसलिए हमें चित्रों की ही भाषा रखनी चाहिए और अपनी बात आसानी से लोगों तक पंहुचा सकते हैं। जिस प्रकृति ने हमे एक माँ की तरह पालती और पोसती है उसका ध्यान हम इंसानो को रखनी चाहिए। लेकिन दुःख होता है हम उस प्रकृति को ही नष्ट कर रहे हैं। कोरोना काल इसी का मूल स्रोत रहा है। छात्रों ने रागिनी से छापाकला को लेकर कुछ प्रश्न भी किये जिसका उत्तर बड़े ही सहज भाव में देकर छात्रों को संतुष्ट भी किया उन्होंने कहा भारत में प्रिंटमेकिंग को लेकर बहुत काम जागरूकता है यूरोपीय देशों की अपेक्षा। वहां लोग प्रिंट को भी अन्य विधाओं की कला के तरह पसंद करते हैं। हमें इसके प्रोत्साहन के लिए लगातार काम करने की आवश्यकता है। जिसका रागिनी उपाध्याय पूर्व चांसलर, नेपाल ललित कला अकादमी (2014-2018), पूर्व निदेशक, आर्टिस्ट प्रूफ गैलरी, नेपाल, पूर्व अध्यक्ष, नेपाल की महिला कलाकार समूह (वैगन), रही हैं और वर्तमान में सदस्य, बीपी कोइराला भारत-नेपाल फाउंडेशन (बीपीकेएफ), सदस्य, बारबरा फाउंडेशन, नेपाल, निदेशक, रागिनी कला केंद्र,अध्यक्ष, शिवता लव फाउंडेशन, नेपाल हैं।

1983-85 आर्टिस्ट कॉर्नर-ललित कला अकादमी, गढ़ी, नई दिल्ली, भारत में प्रिंट की तकनीकों का अध्ययन किया। उसके बाद 1987 पीकॉक प्रिंटमेकर, एबरडीन, स्कॉटलैंड, ब्रिटिश काउंसिल द्वारा प्रायोजित फ़ेलोशिप और 1988 ऑक्सफ़ोर्ड प्रिंटमेकर, इंग्लैंड, ब्रिटिश काउंसिल द्वारा प्रायोजित फ़ेलोशिप में भी गयीं। 1989 कुन्स्टे अकादमी, स्टटगार्ड, ड्यूश-नेपालिसचेन हिल्फ़्सगेमिंसचाफ्ट ई.वी., स्टटगार्ट, जर्मनी द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में भी गयीं। रागिनी को उनके कला के नाते अनेकों श्रेष्ठ राष्ट्रिय व् अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मनित भी किया जा चुका है। उन्होंने ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, फिनलैंड, नीदरलैंड, स्वीडन, जर्मनी, पोलैंड, भारत, चीन, पाकिस्तान, जापान सहित 63 एकल प्रदर्शनी की हैं। हांगकांग, नेपाल और नीदरलैंड, यू.के. इटली में कई ग्रुप शो। बेल्जियम, थाईलैंड, बांग्लादेश, जर्मनी, पाकिस्तान, भारत और नेपाल। उनकी रचनाएँ ऑस्ट्रेलिया,ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, फ़्रांस, यू.के., जर्मनी, स्वीडन, फ़िनलैंड, नॉर्वे, नीदरलैंड, यू.एस.ए., चीन, भारत, पाकिस्तान और नेपाल में निजी संग्रह में हैं। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्यशालाओं में भाग लें। उनकी कृतियाँ सार्क बिल्डिंग, काठमांडू, त्रिभुवन हवाई अड्डे, नेपाल टेलीविजन, विदेश मंत्रालय, स्वर्गीय राजा बीरेंद्र आर्ट गैलरी, विश्व बैंक कार्यालय – काठमांडू, विश्व बैंक संग्रहालय संग्रह – मुख्यालय-यू.एस.ए. के संग्रह में हैं। राज्य अकादमी लखनऊ – भारत, संस्कृति मंत्रालय – बीजिंग, चीन, फुकुओका एशियाई कला संग्रहालय, फुकुओका – जापान और ब्रैडफोर्ड संग्रहालय, ब्रैडफोर्ड, यू.के. में भी हैं। कार्यक्रम में अखिलेश निगम, राजीव, रविकांत, अतुल हुंदु, अनुराग डिडवानिआ सहित समस्त कला अध्यापक और छात्र उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सञ्चालन अलोक कुमार ने किया अंत में धन्यवाद महाविद्यालय के डीन डॉ. रतन कुमार ने किया।

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