जान जोखिम में डाल पर्यावरण प्रेमी ने चील को बचाया

जलपाईगुड़ी। एक चील 3 दिनों से पेड़ पर लटका हुआ था, उसके पंखों में धागा फंसा हुआ था। स्थानीय लोगों ने एनिमल हेल्प लाइन जलपाईगुड़ी फाउंडेशन नामक एक पशु प्रेमी संस्था के सदस्यों को सूचित किया कि चील मर जाएगा उसे बचाये वे इस दुखद दृश्य को नहीं देखना चाहते हैं। खबर मिलते ही संगठन के सदस्य मौके पर पहुंचे। संगठन के सदस्य अपनी जान जोखिम में डालकर चील को खतरे से बचाने के लिए पेड़ की पतली टहनी पर चढ़ गए और बांस के डंडे से धागा तोड़ दिया।

एनिमल हेल्प लाइन जलपाईगुड़ी फाउंडेशन के निदेशक कृष्णयन दासगुप्ता ने कहा कि खबर मिलने के बाद हम तीन लोग एक साथ दिनबाजार पहुंचे। हमलोगों ने पहले एक पतला बांस जुगाड़ किया। फिर हमारे दो सदस्य अभिजीत और देवाशीष पेड़ के ऊपर क्लैम्प लेकर चढ़े और क्लैम्प की मदद से धागे को काटा। धागा कटते ही चिड़िया वापस आसमान में उड़ गई। इस तरह हमने चील को बचाया। उन्होंने कहा कि हमारा अनुरोध है कि यदि आप किसी भी वन्य जीव को खतरे में देखें तो कृपया हमें सूचित करें।

शयनकक्ष में घुसा जहरीला सांप

जलपाईगुड़ी। जलपाईगुड़ी जोहरी तालमा क्षेत्र में एक व्यक्ति के बेडरूम में सांप घुस आया तो घर की पालतू बिल्ली के साथ सांप की लड़ाई छिड़ गई। पांच फीट लंबे सांप ने गृहस्वामी के बेडरूम में शरण ली थी लेकिन बिल्ली ने उसे पकड़ लिया। अंत में पर्यावरण प्रेमी बिस्वजीत दत्ता चौधरी को घटना की खबर दी गई। खबर सुनते ही विश्वजीत चौधरी घर के अंदर से सांप को छुड़ाया और उसे जंगल में छोड़ दिया।

जलाशयों के रख-रखाव के अभाव में नरारथली व रसिकबिल में घट रही है प्रवासी पक्षियों की संख्या

कूचबिहार। जलाशयों व झरनों में जहर या करंट से मछली पकड़ना, संरक्षित वन क्षेत्रों में पिकनिक का आयोजन तथा जलाशयों के रख-रखाव के अभाव में प्रवासी पक्षियों की खाद्य आपूर्ति प्रभावित हो रही है। नतीजतन विभिन्न जलाशयों में शीतकालीन प्रवासी पक्षियों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से घट रही है। पक्षी प्रेमियों और पर्यावरणविदों ने अन्य मौसमों की तुलना में इस सर्दी में प्रवासी पक्षियों की अपेक्षाकृत कम संख्या पर चिंता व्यक्त की है। पिछले दो दिनों से वन विभाग और पश्चिम बंगाल जैव विविधता बोर्ड के सहयोग से उत्तर बंगाल के दो जलाशयों में प्रवासी पक्षियों का सर्वेक्षण किया गया।

हिमालयन नेचर एंड एडवेंचर फाउंडेशन (नैफ) यह सर्वे करवाता है। उत्तर बंगाल के दो जलाशयों अलीपुरद्वार में नरारथली और कूचबिहार में रसिकबिल में सर्वे किया गया। सर्वेक्षण के अंत में नैफ ने प्रारंभिक गणना भी की। नैफ के कोऑर्डिनेटर अनिमेष बसु ने बताया कि अलीपुरद्वार के नरारथली जलाशय में पिछले साल की तुलना में प्रवासी पक्षियों की संख्या कम आई है। हालांकि, पक्षियों की प्रजातियों की संख्या में वृद्धि हुई है। इस साल पहली बार नरारथली और रसिकबिल में आने वाली प्रजातियां जिले के अन्य जलशयों में पहले ही देखी जा चुकी हैं। लेकिन सर्वे की फाइनल रिपोर्ट आने के बाद मामला और साफ होगा।

हाल ही में हुए सर्वे के मुताबिक इस साल रसिकबिल में 40 प्रजातियों के 5000 पक्षी पहुंचे हैं। पिछले साल इस बिल में 47 प्रजातियों के 6000 पक्षी पहुंचे थे। इस बार पक्षियों की सात प्रजातियां कम आने से पक्षियों की संख्या करीब 1000 कम हो गई है। नरारथली के आंकड़े भी इसी तरह के हैं। पिछले साल 33 प्रजातियों के 1600 पक्षी वहां आए थे। इस वर्ष पक्षियों की प्रजातियों की संख्या में वृद्धि हुई है लेकिन कुल संख्या में कमी आई है। नरारथली में इस साल 40 प्रजातियों के 1200 पक्षी आए हैं। कम संख्या के बावजूद सात नई प्रजातियां इस जलाशय में पहुंची हैं।

कूचबिहार में रसिकबिल पूरे राज्य में सबसे अच्छे प्रवासी पक्षी अभयारण्यों में से एक हुआ करता था। इस जलाशय में पिछले 10 साल के मुकाबले पक्षियों की कम प्रजातियां आ रही हैं। पर्यावरणविद् जीबनकृष्ण राय ने कहा कि जलशयों का रखरखाव ठीक से नहीं किया जा रहा है। कबाड़ से भरा हुआ। नतीजतन पक्षियों की संख्या कम होती जा रही है। उत्तर बंगाल के जलाशयों में प्रवासी पक्षियों के लिए अच्छा आवास है। सिर्फ मेंटेनेंस जरूरी है। जलाशयों के रख-रखाव के साथ-साथ आसपास के वातावरण को पक्षियों के अनुकूल बनाया जाए। हम अंतिम रिपोर्ट तैयार करेंगे और इसे वन विभाग, पश्चिम बंगाल जैव विविधता परिषद और वेब लैंड इंटरनेशनल को भेजेंगे।

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