झूठों के सिरमौर हम हैं
हमारा सोशल मीडिया अपने देश की बात कम और देशों की चिंता अधिक करता है। आज चर्चा है कि चीन ने अपने आंकड़े गलत बताये थे अब बदल कर बढ़ाकर बता रहा है। मुझे कोई मतलब नहीं उनके किसी भी आंकड़े के सच झूठ होने के। मुझे अपने देश के सही आंकड़े ज़रूरी लगते हैं और जो भी सरकार बताती है भरोसा करते हैं। मगर क्या हम भूल गए हैं या भूल जाना चाहते हैं अथवा भुला देना होगा कि हमारे देश का आदर्श वाक्य है।
“सत्यमेव जयते
” यहां की राजनीति में सत्य का कोई स्थान ही नहीं है। थोड़ा सा अपने दल पर दबदबा कायम हुआ तो क्या मज़ाल कोई अपनी बात को उचित अनुचित के पैमाने पर खरा खोटा समझने की बात करे। टीवी वाले जिनका धर्म था जागरूकता और निष्पक्षता से खबर बताना वो सभी किसी जिस्मफ़रोशी के बाज़ार की तरह बिकने को सज संवर तैयार हैं कोई पैसा विज्ञापन देकर उनकी कीमत चुका जो चाहे उनसे अपनी धुन पर नचवा ले गुणगान करवा ले। और यहां पर कोई शख़्स झूठ बोलने के तमाम पुराने रिकॉर्ड तोड़ने का कीर्तिमान स्थापित कर चुका है।
और हम उनके अनगिनत झूठों को सच से भी बढ़कर समझते रहे हैं। सच के झंडाबरदार उसी की महिमा गाते हैं जिसकी सत्ता की थाली से झूठन खाते हैं। दुम हिलाते हैं। जब भी किसी को कुछ भी कहना हो अपने सामने आईना रखना चाहिए ताकि खुद अपनी वास्तविकता को समझते रहें। जब ताइवान जैसा देश चीन के बहुत करीब होने के बावजूद भी अपने देश में कोरोना को नहीं फैलने देने को गंभीरता से कठोर कदम उठा रहा था।
उस समय हम किसी गहरी नींद में उन सब घटनाओं से अनजान अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प का नमस्ते ट्रम्प का शानदार आयोजन करने में लगे हुए थे जिस में विदेश से आने वाले कोई पांच सौ मेहमानों की कोई जांच किये बिना सभा में शामिल होने का कार्य कर रहे थे। जब तक हम कोरोना को लेकर चिंता करते ताइवान के शिक्षित सत्ताधारी लोग अपने अनुभव और ज्ञान का उपयोग कर अपने देश को बचाने का कार्य सफलतापूर्वक कर चुके थे।
नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत हैं । इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।