हम जड़ता में जकड़े लोग (तर्कहीन समाज)

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

दुनिया अनुभव से सबक सीखती है और अनावश्यक अनुपयोगी अतार्किक बातों से पल्ला झाड़कर सही दिशा को भविष्य में आगे बढ़ती रहती है लेकिन हम खुद को समझदार विवेकशील आधुनिक जानकर कहने वाले लोग सदियों से अंधविश्वास और जड़ता की बेड़ियां खुद पहने वहीं ठहरे हुए हैं जहां सैंकड़ों साल पहले खड़े थे। काश हम चिंतन करते कि जिन चीज़ों का कोई हासिल नहीं है

उनको खुद पर ओढ़े या लादे हुए बोझ की तरह को खुद से अलग कर वास्तविकता के धरातल पर अपने पांव जमाकर आगे बढ़ते। ज़िंदगी के सच्चे अनुभव और तजुर्बे से बढ़कर सबक कोई किताब नहीं सिखला सकती है। ईश्वर है ये विश्वास करने के बाद भी क्या भगवान और धर्म का अर्थ वही है जो हमने समझा और हमको समझाया गया इस पर विचार करना कोई बुरी या खराब बात नहीं है। सांच को आंच नहीं फिर जो सत्य है उसे सवालों से बचने घबराने की क्या ज़रूरत है और अगर कोई कहता है ये सत्य है मगर इस पर शंका नहीं की जा सकती तो फिर ऐसा सत्य सच नहीं हो सकता है कल्पना को सच मान सकते हैं सबित नहीं कर सकते हैं।
जैसे हमने ख़्वाब में कुछ देखा मगर जागने पर समझ लिया कि वो सपना था वास्तविकता नहीं। कुदरत अपने ढंग से सभी को समझाती है और कुदरत की बातों को समझना भविष्य को बेहतर और सुरक्षित बनाता है उसको नहीं समझ कर हम किसी पौराणिक कथा की तरह आंखें मिलने पर भी अपनी आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बांधे चलते रहते हैं और बंद आंखों से चलते चलते रास्ते पर पांव को छूने वाले हीरे जवाहरात को कंकर पत्थर समझ ठोकर लगते चलते रहते हैं। ऐसे लोग मिलने पर भी कीमती चीज़ को खो देते हैं , ये कथा पढ़ी है उसको सीखा नहीं जाना नहीं समझने की कोशिश नहीं की।
      कोरोना क्या है उनको भी समझ नहीं आया जो समझते हैं उनको पता है दुनिया कब कैसे बनी और कुदरत के रहस्य क्या हैं। चांद पर मंगल पर जीवन की खोज कल्पना और खुद को सब कुछ करने में सक्षम समझने की नासमझी ने विचार करने नहीं दिया कि ज़रूरत किस बात की है अपनी धरती अपनी दुनिया को अच्छा बनाने की संवारने की या उसको बर्बाद करने की विनाशकारी हथियार और साज़ो-सामान बनाने की। कोरोना को मिटाने में कुछ भी काम आया नहीं आपकी विज्ञान भी बेबस और आपकी हर पद्धति नाकाफी साबित हुई अर्थात सब कुछ आपके बस में होने की बात छोड़ो कुछ भी आपके बस में नहीं है कुदरत जब चाहे आपकी औकात दिखला सकती है।
सत्ता सरकार की ताकत धन दौलत शोहरत और महानता का दंभ चूर चूर हो जाता है पल भर में मगर हम झूठे अहंकारी लोग मानते ही नहीं है। कल तक जो एलोपैथिक डॉक्टर आयुर्वेद को आधुनिक विज्ञान के तराज़ू पर खरा साबित नहीं होने की बात कहते थे आज बिना किसी सबूत परख के सभी को काढ़े और देसी नुस्खे आज़माने की सलाह देते हैं ये क्या है जीत है या उनकी हार है जो उन बातों को लैब में साबित करने को कहते थे जिनको हमने हज़ार साल से उपयोग किया और अनुभव कर सही पाया है। मगर सिद्ध करने को आपकी कोई लैब सक्षम नहीं है तो वे गलत नहीं हैं इतनी बात नहीं समझी।
  आस्था की बात करते हैं चलो बताओ किसी ईश्वर किस खुदा किस मंदिर मस्जिद मजार में कोई है जो सब करने में सक्षम है जो वहां आने वाले की मुराद पूरी करता है चलो उसी से कोरोना से बचने की बात करते हैं। सभी धर्म वालों ने मान लिया उनका भगवान खुदा देवी देवता भी कोरोना फैलने से रोक नहीं सकता है। मतलब उन जगहों पर सर्वशक्तिमान ईश्वर खुदा अल्लाह नहीं है केवल पूजा आरती ईबादत करने की जगह हैं जो कहीं भी की जा सकती है फिर आस्था के नाम पर लंबा चौड़ा कारोबार किनकी चाल है। इंसान के रहने को घर नहीं हैं और हमने इक भगवान के रहने को इतने इतने आलीशान भवन बना दिए बनाते जा रहे हैं। नहीं इसको धर्म कहना उचित नहीं है।
ये आस्तिकता नास्तिकता की बात नहीं है मानवता की बात है हमने इंसान और इंसानियत को नहीं समझा और कुछ लोगों के स्वार्थ के कारोबार को धर्म समझते रहे हैं। आज कोई धर्मगुरु कोई साधु संत कोई खुद को मसीहा कहने वाला आपके किसी काम नहीं आया तब भी उनकी वास्तविकता को समझे बिना हम उनकी महिमा का गुणगान करते हैं तो हमसे अधिक नासमझ कौन है। अब अगर कोरोना से हमको विवेक से सोच समझ कर इतना भी सबक मिलता है सीखने को तो शायद हम भविष्य में वास्तविक ढंग से आगे बढ़ सकते हैं अपनी जड़ता और अंधविश्वास की बेड़ियां छुड़वाकर।

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