रिया सिंह की कविता : “प्रेम”

“प्रेम”

उन अंजान राहों में हुई थी
मुलाकात उनसे
जाने अंजाने में हुई थी बात उनसे
सहम सा गया था ये दिल
कुछ अंधविश्वासों से
कुछ इसी तरह के दर्द मुझे दिखे
उनकी सुर्ख बातों में
हुआ दीदार जब उनकी आंखो से
कुछ ख्वाब से बनने लगे
उन लम्हों से
जीवन में कुछ रंग यूं बिखरने लगे
वह मेरे कदमों से कदम
मिलाकर जब चलने लगे
वह शाम भी हसीन लगने लगी
जो कभी जीवन में
श्राप सी बनी
साथ उसके सारा जहां झूठा
लगने लगा
बात उसकी सच्ची वह समय
अच्छा लगने लगा
मेरी खामोशी में वह पूछ लेता
यह नमी कैसी है
तेरे चेहरे पर आज ये
कमी कैसी है
नज़रों से दूर ही सही,पर
मेरे दिल में वो बसता है
वह आइना है इस दिल का
तभी तो यह दिल उसपे मरता है
यूं अंजान राहों में हुई थी
मुलाकात उनसे
जाने अंजाने में हुई बात उनसे।
-रिया सिंह  ✍🏻
स्नातक, तृतीय वर्ष, (हिंदी ऑनर्स)

टीएचके जैन कॉलेज

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