पर्यावरण संरक्षण की मुहिम में जुटे डॉ विक्रान्त तिवारी

Environmental protection campaign,(अनिल बेदाग, मुंबई) : पर्यावरण संरक्षण पर काम करने वाले डॉ विक्रान्त तिवारी पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी नैनीताल के नाई गांव में चाल खाल बना रहे हैं। उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से पानी रोकने के लिए बनाए जाने वाले तालाबों को चाल व खाल कहते हैं, इनकी वजह से जमीन में नमी बनी रहती है और आग कम फैलती है। इस वर्ष पर्यावरण प्रेमी एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले डॉ विक्रान्त तिवारी एक हजार से ज्यादा चाल खाल बनवा रहे हैं।

डॉ विक्रान्त तिवारी ने बताया कि इन चाल खाल से लगभग चालीस लाख लीटर वर्षा का पानी सालाना संचय होगा। इन चाल खाल से न केवल भूमि का जल स्तर बढ़ेगा बल्कि मिट्टी कटाव कम होगा, यहां के वन्य प्राणी को भी फायदा होगा। नमी के स्तर को बढ़ा देने से जंगलों में आग लगने की संभावना भी कम होती है।

Dr. Vikrant Tiwari engaged in environmental protection campaign

“जब सभी कहते हैं कि पहाड़ों की जवानी और पानी ठहरती नही है तो उसके लिए मजबूत और सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है। और इन्ही को रोकने के लिए डॉ विक्रान्त तिवारी बिना किसी विलंब के लाखों लीटर पानी बचाने का प्रयास स्थानीय लोगों के साथ मिल कर रहे हैं।”

वर्ल्ड अर्थ डे, पर शुरू किया गया यह काम आगामी विश्व पर्यावरण दिवस तक पूरा कर लिया जाएगा। गौरतलब है कि डॉ विक्रान्त तिवारी पर्यावरण के क्षेत्र में देश भर में पहले से ही 2 करोड़ से ज्यादा वृक्षारोपण द्वारा लोगों को जागरूक कर रहे हैं। उत्तराखंड में भी लाखों पौधे पिछले कई वर्षों में उन्होंने लगवाया है। निजी स्तर पर लाखो लीटर वर्षा जल संचयन का यह प्रयास स्थानीय लोगों द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने वाले पर्यावरण प्रेमी डॉ विक्रान्त तिवारी ने अब तक 2 करोड़ से ज्यादा पौधों का वृक्षारोपण किया है, उत्तराखंड में भी लाखों पौधे पिछले कई वर्षों में उन्होंने लगवाया है। डॉ विक्रान्त तिवारी इस वर्ष एक हजार से ज्यादा जल स्रोत को रिचार्ज करने में अहम योगदान दे रहे हैं।

जिसमें वर्षा जल जमा हो रहा है, जो न केवल वन्यजीवों की प्यास बुझा रहा है बल्कि, जल स्रोत को पुनर्जीवित कर रहा है। चाल खाल में पानी जमा होने से जमीन को काफी फायदा मिलता है। जंगली जानवरों को पानी मुहैया होने के साथ मैदानी इलाकों में बाढ़ जैसी घटनाओं को रोकने में सहायक होता है।

 

तेज बारिश में पानी पहाड़ों से सीधे उतरकर नदी नालों में जाता है. जिससे जलस्तर बढ़ जाता है, जो आगे जाकर सैलाब का रूप ले लेता है और तबाही मचाता है. ऐसे में चाल खाल का निर्माण करवाकर बारिश के पानी को रोककर नदियों में जाने से रोका जा सकता है।

Dr. Vikrant Tiwari engaged in environmental protection campaign

जलवायु परिवर्तन का असर पूरी

दुनिया पर पड़ रहा है, लेकिन पहाड़ी इलाकों में इसके गंभीर बदलाव देखने को मिल रहे हैं। खेती-किसानी सहित लोगों की आजीविका को भी जलवायु परिवर्तन गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। सबसे ज्यादा समस्या जल की है। गहराता जल संकट भविष्य की एक गंभीर चुनौती के रूप में लोगों के सामने आ रहा है, लेकिन यही पानी अधिक बारिश के रूप में पर्वतीय इलाकों के लिए तबाही भी ला रहा है। डॉ विक्रान्त तिवारी वर्षा जल संरक्षण के लिए चाल, खाल और खंतियां बनाकर पहाड़ को जल संकट से उभारने का प्रयास कर रहे हैं। इस कार्य में डॉ विक्रान्त तिवारी के साथ नाई गांव के लोग भी विशेष रूप से योगदान दे रहें हैं।

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