।।एक हकीकत।।
डॉ. आर.बी. दास
रिश्तों के आईने चटक रहे हैं,
हम पत्थर बने भटक रहे हैं।।
सच से परहेज करते हैं,
झूठ को साबुत गटक रहे हैं।।
कहने को हम एक हैं मगर,
एक दूसरे को खटक रहे हैं।।
पैसे को पीठ पर लादकर,
जिम्मेदारियों को पटक रहे हैं।।
घमंड में इतना फूल चुके हैं कि,
सादगी के रास्ते में अटक रहे हैं।।
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